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मसरत विवाद: कश्मीर में संघर्ष का नया दौर शुरू

साल 2010 के सितंबर में अलगाववादियों ने माचिल में हुए एक एनकाउंटर को फर्जी बताते हुए दंगे की रूपरेखा बना डाली. हुर्रियत के धड़े मुस्लिम लीग ने अगुवाई की. उसका नेता मसरत आलम लोगों को भड़का रहा था. आजादी के नारे. सरकारी इमारतों और वाहनों में आगजनी. पुलिस और सेना से सीधे भिड़ंत. उस संघर्ष में 112 लोगों की जान गई थी.

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मसरत
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साल 2010 के सितंबर में अलगाववादियों ने माचिल में हुए एक एनकाउंटर को फर्जी बताते हुए दंगे की रूपरेखा बना डाली. हुर्रियत के धड़े मुस्लिम लीग ने अगुवाई की. उसका नेता मसरत आलम लोगों को भड़का रहा था. आजादी के नारे. सरकारी इमारतों और वाहनों में आगजनी. पुलिस और सेना से सीधे भिड़ंत. उस संघर्ष में 112 लोगों की जान गई थी.

ऐसे ही 27 और मामलों के आरोपी मसरत को पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) के तहत हिरासत में ले लिया गया था. लेकिन पिछले दिनों उसे अचानक रिहा कर दिया गया. बाहर आते हुए मसरत ने दोहराया कि वह हुर्रियत की योजनाओं को अंजाम देता रहेगा. ऐसे में इस रिहाई पर कुछ सवाल उठने ला‍जमी हैं-

1. कहा जा रहा है कि एक न्यायिक व्यवस्था के तहत मसरत को रिहा किया गया. तो क्या रिहाई का मतलब यह हुआ कि वह बखौफ फिर से दंगा भड़का सकता है? क्योंकि वह बात तो फिर से वैसी ही कर रहा है.

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2. जम्मू-कश्मीर में मुफ्ती सरकार बनने के कुछ दिन बाद ही पीडीपी के आठ विधायकों ने मांग की थी कि अफजल गुरु के अवशेष लौटाए जाएं. तो क्या मुफ्ती सरकार अलगाववादियों और कट्टरपंथियों को संतुष्ट करने का ही काम करेगी?

3. संसद पर हमले की साजिश रचने वाले अफजल गुरु के अवशेष नहीं मिले तो क्या अपनी काबिलियत साबित करने के लिए मुफ्ती सरकार ने अचानक मसरत को रिहा करने का फैसला कर लिया?

4. अफजल गुरु को जब फांसी पर लटकाया गया तो केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी. और कश्मीर में कांग्रेस के गठबंधन से चल रही नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार. तब गुरु को फांसी देने पर मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने वैसा ही तल्ख विरोध नहीं दर्ज कराया था, जैसा अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जता रहे हैं? कहीं ये दिखावा तो नहीं है?

5. अफजल गुरु की फांसी हो या सेना का आतंकियों से संघर्ष. मकसद एक ही है कि कश्मीर में अशांति को खत्म कर देना. मुफ्ती के इस फैसले से अलगाववादियों और आतंकियों के हौसले बुलंद नहीं होंगे?

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