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मट्टू मामला: प्रियदर्शिनी के पिता हतोत्साहित, सीबीआई संतुष्ट

दिल्ली विश्वविद्यालय में विधि की छात्रा प्रियदर्शिनी मट्टू के पिता ने 14 साल पहले अपनी बेटी के साथ बलात्कार और उसकी हत्या करने के दोषी संतोष कुमार सिंह को सुनाई गई मौत की सजा को आज उम्र कैद में तब्दील किए जाने के उच्चतम न्यायालय के फैसले पर निराशा जाहिर की है.

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दिल्ली विश्वविद्यालय में विधि की छात्रा प्रियदर्शिनी मट्टू के पिता ने 14 साल पहले अपनी बेटी के साथ बलात्कार और उसकी हत्या करने के दोषी संतोष कुमार सिंह को सुनाई गई मौत की सजा को आज उम्र कैद में तब्दील किए जाने के उच्चतम न्यायालय के फैसले पर निराशा जाहिर की है.

चमन लाल मट्टू ने कहा ‘इस सजा से मैं संतुष्ट नहीं हूं. इस पर केवल विधि विशेषज्ञ ही चर्चा कर सकते हैं क्योंकि यह साफ है कि उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला बरकरार रखा है.’ बहरहाल, सीबीआई के वकील ने 14 साल पुराने मामले के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि जांच एजेंसी इस बात से संतुष्ट है कि दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला बरकरार रखा गया.

यह देखते हुए कि रसूख वाले कैदी उम्र कैद की सजा के बावजूद जल्दी छूट जाते हैं, मट्टू के पिता ने कहा ‘यह स्पष्ट नहीं है कि सजा की अवधि क्या होगी.’ उन्होंने कहा कि ऐसे कई उदाहरण हैं जब दोषी छूट गए. उन्होंने कहा ‘यह खतरनाक है. उच्चतम न्यायालय ने मामले पर उस तरह विचार नहीं किया जिस तरह किया जाना चाहिए था.’
न्याय की खातिर लड़ने में समाज से मिले सहयोग के लिए मट्टू ने आभार व्यक्त किया. मट्टू के वकील अशोक भान ने कहा कि वह फैसले को पूरा पढ़ने के बाद एक पुनरीक्षण या उपचारात्मक याचिका दाखिल कर सजा बढ़ाने की मांग करेंगे.{mospagebreak}

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उन्होंने कहा ‘वह एक आम अपराधी नहीं है इसलिए यह मामला दुर्लभ से दुर्लभतम श्रेणी का है.’’ भान ने फैसले को मट्टू के परिवार के लिए एक झटका करार दिया.

उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति एच एस बेदी और न्यायमूर्ति सी के प्रसाद की पीठ ने पूर्व आईपीएस अधिकारी के पुत्र संतोष कुमार सिंह को दोषी ठहराने के उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा लेकिन उसे सुनाई गई मौत की सजा को उम्र कैद में तब्दील कर दिया.

बेटे नीतीश कटारा की हत्या के मामले में न्याय पाने के लिए जूझ रहीं नीलम कटारा ने मट्टू मामले में आए फैसले का स्वागत किया है.

उन्होंने कहा ‘‘मैं राहत महसूस कर रही हूं कि उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय का फैसला नहीं बदला. जहां तक मौत की सजा को घटा कर उम्र कैद करने का सवाल है तो मैं नहीं जानती कि किन परिस्थितियों में ऐसा किया गया.’’ नीलम ने कहा ‘‘अगर दोषी को व्यवस्था को झांसा न देने दिया जाए तो उम्र कैद की सजा भी कम नहीं होती. हमारा देश इतना परिपक्व नहीं है कि दोषी को छूट का लाभ लेने दे. विदेशों में राजनीतिज्ञों को अपराधी नहीं माना जाता.’{mospagebreak}
कृष्णमूर्ति ‘‘एसोसिएशन ऑफ विक्टिम्स ऑफ उपहार ट्रेजेडी’ (एवीयूटी) की अध्यक्ष हैं. उन्होंने कहा ‘जो हुआ, वह बहुत सकारात्मक है. इससे लोगों का न्यायपालिका में विश्वास बहाल होगा. कहा नहीं जा सकता कि किन परिस्थितियों में सजा घटाई गई.’ उन्होंने हालांकि कहा कि उम्र कैद की सजा कम नहीं होती क्योंकि दोषी को उम्र भर अपने किए पर पछतावा होता है लेकिन वह जेल से बाहर नहीं आ सकता.

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कृष्णमूर्ति ने कहा ‘पिछले कुछ वर्षों में बहुत ही कम लोगों को मौत की सजा दी गई. उन दोषियों की संख्या अधिक है जिन्हें मौत की सजा दी जानी है.’ उच्चतम न्यायालय में दोषी का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता सुशील कुमार ने फैसले पर कुछ भी कहने से इंकार कर दिया.

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