यूपी की पूर्व मुख्य मंत्री सुश्री मायावती ने आखिरकार लोकसभा चुनाव की रणभेरी बजा दी है. अब तक वह फैसला नहीं कर पा रही थीं कि हाथ का साथ दिया जाए या नहीं. लेकिन अब उस उधेड़बुन से निकलकर अब उन्होंने अकेले चुनाव लड़ने का इरादा जता दिया है. कांग्रेस के खिलाफ कटु वचन बोलकर उन्होंने यह बात साफ कर दी. लेकिन उनका मुख्य निशाना सपा और बीजेपी ही हैं.
मायावती ने अपने 58वें जन्मदिवस पर कोई समारोह करने की बजाय अपने चाहने वालों के नजदीक जाना ही उचित समझा. उन्होंने दिल्ली के अनुभव से सीखा कि सादगी और सीधी बातचीत के जरिये अरविंद केजरीवाल ने कैसे अपना प्रभाव जमाया. समय की आहट को पहचानने में पिछले विधान सभा में उन्होंने जो गलती की उसे अब वह दोहराना नहीं चाहतीं. मायावती कोई धुरंधर वक्ता नहीं हैं और न ही इशारों-इशारों में बात करती हैं. उनके अपने प्रसंसक हैं और अपने समर्थक जो उनकी हर बात को दिल में रख लेते हैं. इसलिए मायावती ने कोई नई बात कहने की बजाय बीजेपी और सपा को प्रमुख निशाना बनाया.
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के बढ़ते प्रभाव से वह भी चिंतित हैं और इसलिए उन्होंने उन पर जमकर निशाना साधा. बीजेपी से पुराने गिले-शिकवों की बातें उठाकर उन्होंने साफ कर दिया कि वह उसे सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी मानती हैं. उन्हें इस पार्टी से खतरा यह है कि जिस असंभव से सोशल इंजीनियरिंग को उन्होंने कर दिखाया था उसका अंत होता जा रहा है और ब्राह्मण उनसे छिटक कर बीजेपी की ओर झुकते जा रहे हैं. यह उनके लिए न केवल इस समय के लिए बल्कि आगे के लिए भी चिंता का विषय है क्योंकि सिर्फ दलित वोटों के बूते वह विशालकाय उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज नहीं हो सकतीं. मायावती ने चुनावी अभियान की शुरुआत कर दी है लेकिन इसमें काफी वक्त उन्होंने लगा दिया.
अन्य पार्टियां खासकर बीजेपी अब काफी आगे निकल गई है. नरेन्द्र मोदी को पता है कि इसस बार लाल किले का रास्ता उत्तर प्रदेश होकर ही जाएगा और इसलिए उन्होंने अपने खास सहयोगी अमित शाह को वहां का प्रभारी बनाकर बिठा दिया है. इस बार के लोकसभा चुनाव में मायावती को काफी कठिनाइयों का सामना करना पडे़गा क्योंकि उनके कई क्षत्रप उन्हें या तो छोड़ गए हैं या उन्होंने ही उनका पत्ता साफ कर दिया. कई इलाकों में उनके पास सक्रिय कार्यकर्ता भी नहीं हैं. लेकिन जो मायावती को जानते हैं वे यह भी जानते हैं कि वह अपने दम पर चुनाव लड़ती हैं. उन्हें सहारे के लिए किसी की जरूरत नहीं होती. लेकिन इस बार का चुनाव कुछ अलग है. मुद्दे अलग हैं और सबसे बड़ी बात है कि उन्हें कई प्रतिद्वंद्वियों से जूझना पडे़गा. बहरहाल यह तो वक्त ही बताएगा कि मायावती आने वाले चुनाव में क्या जलवा दिखाएंगी लेकिन इतना जरूर है कि उन्होंने शुरुआत करने में देर कर दी है.
(मधुरेंद्र प्रसाद सिन्हा वरिष्ठ पत्रकार और हमारे संपादकीय सलाहकार हैं)