मक्का ब्लास्ट के एक प्रमुख आरोपी देवेंद्र गुप्ता को सोमवार को NIA की विशेष अदालत ने रिहा कर दिया, लेकिन वास्तविक यह है कि उन्हीं को एक साल पहले अजमेर शरीफ ब्लास्ट केस में इसी तरह की अदालत के द्वारा दोषी माना गया था और आजीवन कारावास की सजा दी गई थी.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, बम विस्फोट की ये दोनों घटनाएं साल 2007 में पांच माह के अंतराल पर हुई थीं. एनआईए के अनुसार दोनों का तरीका एक ही था. सेंट्रल फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (CFSL) से हासिल साक्ष्य के आधार पर एनआईए ने कहा था कि दोनों में बमों को ट्रिगर करने के लिए सिम कार्ड वाले मोबाइल फोन का इस्तेमाल किया गया था.
एनआईए का गठन साल 2009 में हुआ था, लेकिन उसे मक्का मस्जिद केस साल 2011 में सौंपा गया. इस मामले में असीमानंद की गिरफ्तारी नवंबर 2010 में हुई थी. अजमेर मामले की जांच भी साल 2011 तक राजस्थान पुलिस द्वारा की जा रही थी.
अजमेर ब्लास्ट केस के दोषी देवेंद्र गुप्ता और भवेश पटेल को जयपुर की एनआईए कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. देवेंद्र गुप्ता कम उम्र में ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का सदस्य बन गए थे. उन्होंने 1999 में इंदौर में संघ के संगठन सेवा भारती में अपना कार्य शुरू किया. साल 2001 में उनका संपर्क संघ के प्रचारक सुनील जोशी से हुआ जिन्होंने उन्हें इंदौर में ही तहसील प्रचारक बना दिया. इसके बाद संघ के जिला प्रचारक के रूप में देवेंद्र को झारखंड के जामताड़ा इलाके की जिम्मेदारी मिली थी.
मक्का मस्जिद केस में NIA के लिए बड़ी शर्मिंदगी की बात यह है कि इस मामले का मुख्य आरोपी राजेंद्र चौधरी, जिस पर बम रखने का आरोप है, फरार है. एक सवाल यह भी है कि जब स्वामी असीमानंद को समझौता और मक्का मस्जिद केस में जमानत मिल गई, तो NIA ने ऐेसे संवेदनशील मामले में जमानत को रद्द करने के लिए ऊंची अदालत में कोई अपील क्यों नहीं की.