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अयोध्या केस में मध्यस्थता से सुब्रमण्यम स्वामी सहमत नहीं, बोले-इसका कोई मतलब नहीं

Ayodhya hearing सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में मध्यस्थता एक निष्फल अभ्यास है. मध्यस्थता पैनल का कोई उपयोग नहीं है, इसका कोई काम नहीं है. क्योंकि केंद्र सरकार पहले ही सभी पैरामीटर सेट कर चुकी है.

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बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी (फाइल फोटो)
बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी (फाइल फोटो)

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अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता के लिए पक्षकारों से नाम मांगे हैं. शीर्ष कोर्ट ने बुधवार को संबंधित पक्षकारों से कहा है कि वे इस विवाद के सर्वमान्य समाधान की खातिर संभावित मध्यस्थों के नाम उपलब्ध कराएं. लेकिन वहीं बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में मध्यस्थता एक निष्फल अभ्यास है.

स्वामी ने कहा, 'राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में मध्यस्थता एक निष्फल अभ्यास है. मध्यस्थता पैनल का कोई उपयोग नहीं है, इसका कोई काम नहीं है. क्योंकि केंद्र सरकार पहले ही सभी पैरामीटर सेट कर चुकी है. यह जमीन सरकार की है. अगर सुन्नी वक्फ बोर्ड इस मुकदमे को जीत भी जाता है तो भी उसे जमीन मिलने नहीं जा रही है. ज्यादा से ज्यादा उन्हें इसका मुआवजा मिल सकता है.

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स्वामी ने नरसिम्हा राव सरकार के उस बयान का जिक्र किया जिसमें कहा गया था कि अगर मंदिर के सबूत मिलते हैं तो इस जमीन को हिंदुओं को दे दिया जाना चाहिए. बीजेपी नेता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की बेंच पहले ही कह चुकी है कि मस्जिद को कहीं भी स्थानांतरित किया जा सकता है क्योंकि यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है.

गौरतलब है कि मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एस. ए. बोबडे, जस्टिस धनन्जय वाई. चन्द्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की पांच सदस्यीय संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है. शुरू में निर्मोही अखाड़े के अलावा अन्य हिन्दू संगठनों ने इस मामले को मध्यस्थता के लिए भेजने के कोर्ट के सुझाव का विरोध किया जबकि मुस्लिम संगठनों ने सुझाव का समर्थन किया. हालांकि बाद में हिंदू संगठन मध्यस्थता के लिए नाम देने पर सहमत हो गए.

सुनवाई के दौरान यूपी सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि शीर्ष न्यायालय को यह मामला उसी स्थिति में मध्यस्थता के लिए भेजना चाहिए जब इसके समाधान की कोई संभावना हो. उन्होंने कहा कि इस विवाद के स्वरूप को देखते हुए मध्यस्थता का रास्ता चुनना उचित नहीं होगा. राम लला विराजमान की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन ने भी पीठ से कहा कि पहले भी कई प्रयासों के बावजूद मध्यस्थता का कोई नतीजा नहीं निकला था. वैद्यनाथन ने कहा कि इस बारे में कोई विवाद नहीं है कि रामलला का जन्म अयोध्या में ही हुआ था, लेकिन विवाद राम जन्म स्थान को लेकर है.

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उन्होंने कहा कि जन्म स्थान के मुद्दे पर मध्यस्थता नहीं हो सकती है. दूसरी ओर, मुस्लिम संगठनों ने मध्यस्थता के बारे में न्यायालय के सुझाव का समर्थन किया और कहा कि ऐसा बंद कमरे में ही होना चाहिए और इसकी अंतिम रिपोर्ट मिलने तक किसी को भी इसकी कार्यवाही की जानकारी देने की इजाजत नहीं होनी चाहिए. इस बीच, बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने शीर्ष अदालत से कहा कि अध्योध्या में विवादित भूमि सरकार की है. स्वामी ने कहा, पी वी नरसिंह राव की सरकार ने 1994 में शीर्ष अदालत को यह आश्वासन दिया था कि यदि यह पता चलता है कि वहां पर मंदिर था तो यह भूमि मंदिर निर्माण के लिए दे दी जाएगी.

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