केंद्रीय पूर्वोत्तर विकास राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), कार्मिक जन शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने रविवार को तीन दिवसीय भारत-अफ्रीका स्वास्थ्य विज्ञान सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित करते हुए चिकित्सा अनुसंधान में ‘सरकारी-निजी भागीदारी’ मॉडल की आवश्यकता पर बल दिया है.
भारत और अफ्रीका के चिकित्सा अनुसंधानकर्ताओं ने हिस्सा लिया
विभिन्न अफ्रीकी राष्ट्रों के स्वास्थ्य मंत्रियों, भारत और अफ्रीका से प्रमुख चिकित्सा अनुसंधानकर्ताओं और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने सम्मेलन में हिस्सा लिया. डॉ. सिंह ने सुझाव दिया कि निजी क्षेत्र के चिकित्सा कालेजों और संस्थानों में आईसीएमआर की यूनिटों की स्थापना की जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि एक ऐसी व्यवस्था विकसित की जानी चाहिए, जिसमें आईसीएमआर या अन्य पंजीकृत अनुसंधान निकाय की यूनिट रखने वाले प्राइवेट संस्थानों को कुछ प्रोत्साहन दिए जा सकें और दूसरी तरफ आईसीएमआर अनुसंधान में रुचि रखने वाले युवा चिकित्सकों की प्रतिभा से लाभान्वित हो सकें.
चिकित्सा क्षेत्र में आया बदलाव
डॉ. सिंह ने कहा कि आज चिकित्सा अनुसंधान और पद्धति के क्षेत्र में व्यापक बदलाव आए हैं. एक समय था जब 1970 और 1980 के दशक में क्षय रोग और यौन संबंधी बीमारियों जैसे संचारी रोगों पर अनुसंधान पर बल दिया जाता था, लेकिन पिछले दो दशकों में मधुमेह जैसे गैर-संचारी रोगों पर भारतीय परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए अनुसंधान पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि अनुसंधान की पद्धति में भी व्यापक बदलाव आए हैं. अनुसंधानकर्ताओं को पहले संदर्भ सामग्री जुटाने के लिए दर-दर भटकना पड़ता था, लेकिन आज इंटरनेट और अत्याधुनिक स्रोतों ने अनुसंधानकर्ताओं का काम आसान कर दिया है.
रंग लाएगा प्रयास
डॉ. जितेंद्र सिंह ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत-अफ्रीका के संयुक्त प्रयासों की सराहना की और उम्मीद जाहिर की कि अनुसंधान और शिक्षा के लिए बनाए जाने वाले विभिन्न समूह स्वास्थ्य देखभाल और अनुसंधान के क्षेत्र में अफ्रीकी महाद्वीप और भारतीय प्रायद्वीप के बीच सहयोग बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे.