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यहां किसानों के सबसे बड़े दुश्मन हैं हाथी

हाथियों से परेशान ग्रामीण पंचनाग महतो बताते हैं, हाथी रोज दिन ढलने के बाद गांव की तरफ बढ़ आते हैं. वो न सिर्फ फसल बर्बाद करते हैं बल्कि गांवों में लोगों और झोपड़ियों को भी कुचल चुके हैं.

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खेत में घुस आए हाथियों को भगाते ग्रामीण
खेत में घुस आए हाथियों को भगाते ग्रामीण

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पश्चिम बंगाल के तीन जिलों और लगभग तीन सौ गांवों के लोग हाथियों के आतंक से परेशान हैं. हाथियों का झुंड आए दिन किसानों के खेतों में घुस जाता है और उनकी मेहनत और पूंजी से खड़ी फसल तबाह कर देता है. इससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है. पश्चिमी मिदनापुर, बानकुरा और पुरुलिया जिलों में तो आदमी और हाथी का संघर्ष आम बात हो गई है.

हाथियों से परेशान ग्रामीण पंचनाग महतो बताते हैं, हाथी रोज दिन ढलने के बाद गांव की तरफ बढ़ आते हैं. वो न सिर्फ फसल बर्बाद करते हैं बल्कि गांवों में लोगों और झोपड़ियों को भी कुचल चुके हैं. मैंने खेती के लिए एक तालाब बनाया था लेकिन हाथियों ने उसे बर्बाद कर दिया.' हाथियों को भगाने के लिए बीस से पच्चीस लोगों की जरूरत होती है. हम आग जलाकर उन्हें भगाते हैं. लेकिन हाथियों का जब जी चाहता है वो दोबारा आ जाते हैं.

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खड़गपुर डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर अंजन गुहा कहते हैं हाथियों से सबसे ज्यादा नुकसान खेती और किसानों को हो रहा है. हाथियों के गांव की तरफ रुख करने के पीछे जंगल में उनके लिए पर्याप्त खाना मौजूद न होना एक वजह हो सकती है. इस इलाके में लगभग 200 हाथी हैं जिनमें से 140 घुमंतू हैं. ये हाथी दलमा के जंगलों से शहर में आते हैं. स्थानीय किसान इन हाथियों के आतंक से त्रस्त हो चुके हैं. मिदनापुर के विधायक श्रीकांत महतो का कहना है कि समय के साथ लोग हाथियों की समस्या से निपटना सीख गए हैं. अब जब भी हाथियों का झुंड हमला करता है लोग ज्यादा संगठित होकर उनका मुकाबला करते हैं और उन्हें भगाने में कामयाब हो रहे हैं. लोग आग और पटाखें जलाकर हाथियों को भगाते हैं. सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए मोबाइल टीम और हुल्ला दल बनाए हैं. हम वन विभाग के अधिकारियों की भी मदद ले रहे हैं.

हाथियों से मुठभेड़ गांववालों के लिए कोई नई बात नहीं है. स्थानीय निवासी रंजीत राणा बताते हैं, सालों से यहां हाथियों का आतंक है. कई लोगों ने हाथियों के हमलों में अपनी जान गंवा चुके हैं. अंजन गुहा कहते हैं कि सरकार इस समस्या के प्रति गंभीर है. उन्होंने कहा, 'हमने पांच साल पहले मयूरझरना हाथी अभ्यारण शुरू करने की योजना बनाई थी. इस योजना का मकसद हाथियों को जंगल तक सीमित रखना था. हमें उम्मीद है इस साल इस योजना को मंजूरी मिल जाएगी. और अगले पांच-सात सालों में हम यह अभ्यारण बना पाएंगे. वन विभाग के सर्वे के मुताबिक पश्चिम बंगाल में वन क्षेत्र में 1.3% का इजाफा हुआ है. हालांकि इसने हाथियों के खेतों में घुसने पर लगाम नहीं लग सकी.

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हाथियों के बढ़ते हमलों के कारण पर चर्चा करते हुए अंजन गुहा बताते हैं, 'हाथी पड़ोसी राज्य झारखंड और दलमा के जंगलों से यहां आते हैं. हमने यह भी देखा है कि अब ये हाथी पड़ोसी राज्य ओड़िशा की तरफ भी बढ़ रहे हैं. हाथियों को हमारे इलाके में खाना मिल रहा है. वहीं दूसरे राज्यों में जंगलों की कटाई और खनन के कारण भी हाथी वहां से दूसरी जगहों पर पलायन कर रहे हैं. हमने इस संबंध में ओड़िशा सरकार और भारत सरकार को लिखा है.

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