एनडीए ने आज राष्ट्रपति कैंडिडेट के लिए दलित कार्ड खेलकर विपक्षी दलों को चित करने और शांत करने की कोशिश की है. लेकिन अब यूपीए खेमा भी इससे निपटने के लिए इससे बड़ा 'दलित महिला' कार्ड निकालने की कोशिश कर रहा है.
सूत्रों के अनुसार एनडीए के कैंडिडेट रामनाथ कोविंद से मुकाबले के लिए यूपीए खेमे में मीरा कुमार को राष्ट्रपति प्रत्याशी बनाने पर विचार हो रहा है. अगर ऐसा हुआ तो वास्तव में मुकाबला दिलचस्प होगा. हालांकि नंबर्स के खेल में फिलहाल एनडीए आगे दिख रहा है.
कोविंद कम बोलने वाले शालीन चेहरे हैं. विवादों से नाता न के बराबर रहा है. कोरी जाति के दलित हैं और उत्तर प्रदेश के कानपुर से आते हैं. कोविंद का नाम इसीलिए विपक्ष को एक झटका है. एनडीए के कुछ घटक, जो किसी अन्य नाम पर नखरे दिखा सकते हैं, शांति से कोविंद के नाम को स्वीकार कर लेंगे. इससे विपक्ष के लिए असमंजस की स्थति आ गई है. नीतीश सहित कई नेताओं के लिए कोविंद का विरोध आसान नहीं होगा. कोविंद के विरोध का मतलब एक दलित नाम का विरोध करना होगा. लेकिन अगर कांग्रेस किसी दलित महिला का नाम आगे करती है, तो खेल और भी दिलचस्प हो जाएगा.
दोनों हैं पढ़े-लिखे और योग्य
एजुकेशन के लिहाज से देखा जाए तो रामनाथ कोविंद और मीरा कुमार दोनों ही काबिल व्यक्ति हैं. लोकसभा अध्यक्ष के रूप में मीरा कुमार की सफल पारी को देश की जनता देख चुकी है. मीरा कुमार अगली पीढ़ी की दलित हैं. असल में वे पूर्व उप प्रधानमंत्री
जगजीवन राम की पुत्री हैं और उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस जैसे प्रतिष्ठित कॉलेज से पढ़ाई की है. वे 1970 में भारतीय विदेश सेवा के लिए चुनी गई थीं और कई देशों में राजनयिक के रूप में सेवा दे चुकी हैं. दूसरी तरफ, कोविंद एक
कानपुर देहात जिले के एक गांव में साधारण परिवार में पैदा हुए.
उन्होंने कानपुर के एक कॉलेज से पढ़ाई की और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ने के बाद राजनीति में प्रवेश किया. उनका प्रशासनिक अनुभव बिहार के राज्यपाल के रूप में है. दोनों ने वकालत की पढ़ाई की है. कोविंद का चयन भी प्रशासनिक सेवा के लिए हो चुका था, लेकिन उन्होंने नौकरी करने की जगह वकालत करना पसंद किया. मीरा कुमार 72 साल की हैं, जबकि रामनाथ कोविंद 71 साल के हैं.