नए आर्मी चीफ की नियुक्ति को लेकर जारी सियासी घमासान के बीच दिलचस्प बात यह है कि मोदी सरकार में सुरक्षा के मोर्चे पर बड़ी जिम्मेदारी संभाल रहे तीन बड़े अफसर उत्तराखंड से ताल्लुक रखते हैं. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, नए आर्मी चीफ बिपिन रावत और नए रॉ प्रमुख अनिल कुमार धस्माना, ये तीनों ही उत्तराखंड से आते हैं.
शनिवार को सरकार ने नए सेनाध्यक्ष के तौर पर लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत और नए एयरफोर्स चीफ के तौर बीएस धनोवा के नाम को हरी झंडी दी. इससे पहले शनिवार को ही सरकार ने नए आईबी चीफ के तौर पर राजीव जैन और रॉ के नए मुखिया के तौर पर अनिल कुमार धस्माना की नियुक्ति को मंजूरी दी. बिपिन रावत की नियुक्ति दो सीनियर अफसरों को नजरअंदाज कर की गई है.
हालांकि सेना प्रमुखों की नियुक्ति का विशेषाधिकार केंद्र सरकार के पास होता है, लेकिन बीते कई वर्षों से सीनियरटी के आधार पर ही ये नियुक्तियां हो रही थीं. वैसे यह पहला मौका नहीं है जब सरकार ने सेना प्रमुखों की नियुक्ति में वरिष्ठता को नजरअंदाज किया है. 1983 में तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने ए एस वैद्य को आर्मी चीफ बनाया था जबकि एसके सिन्हा उनसे सीनियर थे. 1988 में एयर मार्शल एमएम सिंह की सीनियरटी को नजरअंदाज करते हुए एयर चीफ मार्शल एस के मेहरा को एयरफोर्स का चीफ बनाया गया था. 2014 में एडमिरल आर धवन वाइस एडमिरल शेखर सिन्हा से जूनियर होने के बावजूद नेवी के चीफ बने थे.
काबिलियत को तरजीह!
ले. जन. रावत के चयन को लेकर हो रही आलोचना के बीच सूत्र कह रहे हैं कि आर्मी चीफ का सेलेक्शन देश की मौजूदा सुरक्षा जरूरतों को ध्यान में रखते हुए किया गया है. सितंबर 2016 में आर्मी के वाइस चीफ बने बिपिन रावत को आतंकरोधी ऑपरेशंस और नियंत्रण रेखा पर काम करने का 10 वर्षों का अनुभव है. 1978 में सेना में बतौर अफसर शामिल हुए बिपिन रावत ने पाकिस्तान सीमा के साथ-साथ चीन की सीमा पर भी लंबे समय तक कार्य किया है. ऐसे में वो नियंत्रण रेखा पर सामने आने वाली चुनौतियों को अच्छी तरह समझते हैं. साथ ही वो चीन से लगी वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी से जुड़े हर खतरे से भी वाकिफ हैं.
रावत को पूर्वोत्तर में घुसपैठ रोधी अभियानों में 10 साल तक काम करने का भी अनुभव है. पिछले साल जून में जब मणिपुर में नगा उग्रवादियों ने 18 जवानों को मारा था तो इसके तीन दिनों के भीतर ही रावत के नेतृत्व में सेना ने म्यांमार में घुसकर उग्रवादियों के कैंप ध्वस्त कर दिए थे. सेना के इस ऑपरेशन में 38 उग्रवादी मारे गए थे. इस ऑपरेशन का सुझाव रावत का था जिसे पीएम मोदी ने मंजूरी दी थी और इसकी निगरानी एनएसए डोभाल कर रहे थे. इस साल सितंबर में पीओके में हुए सर्जिकल स्ट्राइक हुई थी तो पर्दे के पीछे कमान बिपिन रावत के हाथ में ही थी. रावत तब तक डिप्टी आर्मी चीफ बन चुके थे.
उत्तराखंड के गढ़वाल के निवासी बिपिन रावत के पिता एल एस रावत भी सेना में लेफ्टिनेंट जनरल रहे. वो डिप्टी आर्मी चीफ के पद तक पहुंचे थे. बिपिन रावत की शुरुआती पढ़ाई देहरादून के कैंब्रियन हॉल बोर्डिंग स्कूल से हुई थी. इसके बाद उनका दाखिला शिमला में सेंट एवर्ड्स में हुआ. बिपिन रावत के पिता भी गोरखा रेजिमेंट में अफसर थे. पिता और बेटे, दोनों ही 5/11 गोरखा रायफल्स यूनिट के मुखिया रह चुके हैं.
नए रॉ चीफ धस्माना
1981 बैच के आईपीएस अधिकारी अनिल धस्माना देश के बाहर काम करने वाली भारत की खुफिया एजेंसी रॉ में कई अहम भूमिका निभा चुके हैं. धस्माना कैबिनेट सचिवालय में विशेष सचिव के पद पर तैनात थे. उन्होंने बलूचिस्तान, आतंकरोधी ऑपरेशन और इस्लामिक मामलों में विशेषज्ञ के तौर पर जाना जाता है. उन्हें पाकिस्तान और अफगानिस्तान के मामलों का भी खासा अनुभव रहा है.
उत्तराखंड के पौड़ी से ताल्लुक रखने वाले धस्माना की स्कूली पढ़ाई गांव में हुई थी. उनके पिता महेशानंद धस्माना सिविल एविएशन विभाग में काम करते थे. अनिल धस्माना के बारे में कहा जाता है कि वो अपने शैक्षिक जीवन में अक्सर दिल्ली में लोदी पार्क में लैंप पोस्ट के नीचे बैठकर पढ़ाई करते थे. मध्य प्रदेश कैडर के आईपीएस अफसर धस्माना का पुलिस सेवा में करियर इंदौर के एडिशनल एसपी के तौर पर शुरू हुआ था.
एनएसए अजीत डोभाल
एनएसए अजीत डोभाल किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में जन्मे डोभाल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दाहिना हाथ माना जाता है. इनके पिता इंडियन आर्मी में थे. अजमेर मिलिट्री स्कूल से पढ़े लिखे डोभाल 1968 बैच के केरल कैडर के आईपीएस अफसर हैं. अपनी नियुक्ति के चार साल बाद ही 1972 में वो इंटेलीजेंस ब्यूरो से जुड़ गए थे. डोभाल ने करियर में ज्यादातर समय खुफिया विभाग में ही काम किया है. कहा जाता है कि वह छह साल तक पाकिस्तान में खुफिया जासूस रहे. साल 2005 में एक तेज तर्रार खुफिया अफसर के रूप में स्थापित डोभाल इंटेलीजेंस ब्यूरो के डायरेक्टर पद से रिटायर हुए. केंद्र में पीएम मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद मई 2014 में डोभाल को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया गया.
साल 1989 में अजीत डोभाल ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से चरमपंथियों को निकालने के लिए 'आपरेशन ब्लैक थंडर' का नेतृत्व किया था. उन्होंने पंजाब पुलिस और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के साथ मिलकर खुफिया ब्यूरो के अधिकारियों के दल के साथ मुख्य भूमिका निभाई थी. अजीत डोभाल साल 1999 में कंधार ले जाए गए इंडियन एयरलाइंस के विमान आईसी 814 के अपहरणकर्ताओं के साथ मुख्य वार्ताकार थे. जम्मू-कश्मीर में घुसपैठियों और शांति के पक्षधर लोगों के बीच काम करते हुए डोभाल ने कई आतंकियों को सरेंडर कराया था. अजीत डोभाल 33 साल तक नार्थ-ईस्ट, जम्मू-कश्मीर और पंजाब में खुफिया जासूस रहे हैं, जहां उन्होंने कई अहम ऑपरेशन किए हैं.
इनके अलावा सुरक्षा से जुड़े दो और बड़े पदों पर उत्तराखंड से ताल्लुक रखने वाले अफसर तैनात हैं. मसूरी के मशहूर क्रिकेट खिलाड़ी रहे एके भट्ट डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशंस यानी डीजीएमओ हैं. इन्हें कुछ दिन पहले ही रणबीर सिंह की जगह डीजीएमओ की जिम्मेदारी दी गई है. मूल रूप से टिहरी गढ़वाल में खटवार के रहने वाले लेफ्टिनेंट जनरल एके भट्ट का परिवार मसूरी में रहता है. भट्ट मसूरी में सेंट जॉर्ज कॉलेज के छात्र रहे हैं.
उत्तराखंड के चकराता से ताल्लुक रखने वाले राजेंद्र सिंह इसी साल 25 फरवरी को भारतीय तटरक्षक बल यानी कोस्ट गार्ड के डायरेक्टर जनरल के पद पर नियुक्त किए गए हैं. मसूरी से स्कूली पढ़ाई करने वाले राजेंद्र सिंह ने गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर, पौड़ी गढ़वाल से ग्रेजुएशन किया है. उन्होंने 1980 में कोस्ट गार्ड ज्वाइन किया था.