देश के ज्यादातर मध्यमवर्गीय परिवार आईआईटी, आईआईएम और मेडिकल कालेजों में अपने बच्चों का दाखिला दिलाने के लिए कोचिंग की फीस का प्रबंध करने में असमर्थ रहता है.
उद्योग चैंबर एसोचैम के अध्ययन के मुताबिक, ऐसे में अभिभावक अपने बच्चों को ऐसे क्षेत्र में जाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, जहां काउंसलिंग शुल्क कम होता है. अध्ययन के अनुसार, ज्यादातर मध्यमवर्गीय भारतीय परिवार अपने बच्चों के लिए तीन लाख रुपये की सालाना कोचिंग फीस नहीं जुटा पाता है. ऐसे में बेशक स्कूलों द्वारा उनके बच्चों की क्षमता को औसत से ऊपर आंका गया हो, वे अपने बच्चों को इच्छित पेशेवर पाठ्यक्रमों में दाखिला नहीं दिला पाते और बच्चों को अपनी क्षमता से कम के पाठ्यक्रम की पढ़ाई करनी पड़ती है.
सर्वेक्षण में कहा गया है कि ऐसे अभिभावक तब अपने बच्चों को बैंकिंग, रेलवे, बीमा या राज्य स्तर की सिविल सेवा में उतरने की सलाह देते हैं. इन पाठ्यक्रमों के लिए करियर काउंसलिंग की फीस शीर्ष तकनीकी या प्रबंधन संस्थानों की तुलना में काफी कम होती है. एसोचैम के सर्वेक्षण में दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर, कोलकाता, पुणे, चंडीगढ़, जबलपुर, चेन्नई और हैदराबाद के 4,000 परिवारों को शामिल किया गया था.
एसोचैम के महासचिव डी एस रावत ने कहा, ‘आईआईटी और आईआईएम के बाद कोचिंग संस्थान छात्रों को बैंकिंग, जीवन बीमा, सिविल सेवा, चार्टर्ड एकाउंटेंट और कंपनी सचिव आदि के लिए कोचिंग उपलब्ध कराते हैं. उन्होंने बताया कि आईआईटी, आईआईएम और मेडिकल कालेजों में दाखिले के लिए कोचिंग देने वाले संस्थानों में हर साल 6 से 8 लाख छात्र प्रवेश लेते हैं.