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नेता विपक्ष के मसले पर घ‍िरी मोदी सरकार, कई संवैधानिक पदों के लिए नाम तय नहीं

लोकसभा में नेता विपक्ष के मामले में एक बड़ा पेच फंसता नजर आ रहा है. अब तक तो इस पद के लिए कांग्रेस ही परेशान हो रही थी, पर अब मोदी सरकार को भी बिना नेता विपक्ष के मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. खुद सरकार के मंत्रालय पूछ रहे हैं कि आखिर नेता विपक्ष है कौन?

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हमारी संसद
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लोकसभा में नेता विपक्ष के मामले में एक बड़ा पेच फंसता नजर आ रहा है. अब तक तो इस पद के लिए कांग्रेस ही परेशान हो रही थी, पर अब मोदी सरकार को भी बिना नेता विपक्ष के मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. खुद सरकार के मंत्रालय पूछ रहे हैं कि आखिर नेता विपक्ष है कौन?

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दरअसल, 8 जुलाई, 2014 को मोदी के अफसरों ने कानून मंत्रालय से पूछा कि आख‍िर विपक्ष का नेता कौन है? इसका जबाव फिलहाल किसी के पास नहीं है. बिना नेता विपक्ष के जल्द ही कई बड़े संवैधानिक पद खाली रह जाएंगे, जिससे कई तरह की समस्याएं खड़ी हो जाएंगी.

संसद के बाहर और संसद के भीतर विपक्ष के नेता पद को लेकर कांग्रेस और बीजेपी की जोर-आजमाइश फिलहाल खत्म होती नहीं दिख रही है. बीजेपी संविधान के नियमों का हवाला दे रही है, तो कांग्रेस विपक्ष का रुतबा हासिल करने के लिए कोई-कसर नहीं छोड़ना चाहती है.

कांग्रेस और बीजेपी के टकराव का अंत कहां होगा, यह तो किसी को नहीं पता, लेकिन नेता विपक्ष के मुद्दे पर मोदी सरकार के मंत्रालयों में जंग जरूर छिड़ गई है.

प्रधानमंत्री के अधीन आने वाले कार्मिक मंत्रालय ने कानून मंत्रालय से नेता विपक्ष का नाम पूछा. कार्मिक मंत्रालय ने तमाम बड़े संवैधानिक पदों की नियुक्ति के मसले पर नेता विपक्ष की सहमति को जरूरी करार दिया. मंत्रालय ने यह भी पूछा कि मौजूदा लोकसभा में नेता विपक्ष का नाम अब तक तय नहीं हो पाया है, लिहाजा यह साफ किया जाए कि नेता विपक्ष किसे माना जाए. क्या सबसे बड़े विरोधी दल से नेता विपक्ष होना चाहिए या फिर विपक्षी दलों के सबसे बड़े समूह के नेता को यह दर्जा दिया जाए?

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दरअसल, कार्मिक मंत्रालय को इस बात की चिंता है कि आने वाले समय में कई बड़े संस्थान और विभागों के प्रुमख रिटायर हो रहे हैं और नए प्रमुखों की नियुक्ति में कहीं कोई संवैधानिक संकट न खड़ा हो जाए. मुश्किल यह है कि बिना नेता विपक्ष की सहमति के इन पदों पर किसी को बिठाया नहीं जा सकता. मिसाल के तौर पर:

1. मुख्य सूचना आयुक्त राजीव माथुर अगले महीने यानी अगस्त, 2014 में रिटायर हो रहे हैं. नए प्रमुख के लिए नेता विपक्ष की सहमति जरूरी है.

2. चीफ विजिलेंस कमिश्नर प्रदीप कुमार सितंबर, 2014 में रिटायर हो रहे हैं.

3. सीबीआई के डायरेक्टर रंजीत सिन्हा भी नवंबर, 2014 में रिटायर हो रहे हैं. लोकपाल एक्ट के मुताबिक अब सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति के लिए भी नेता विपक्ष की सहमति जरूरी है.

4. इसी तरह राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष केजी बालकृष्ण अगले साल रिटायर हो रहे हैं. अब उनकी जगह पर नए अध्यक्ष बनाने में नेता विपक्ष की रजामंदी जरूरी है.

फिलहाल प्रधानमंत्री के अधीन आने वाले कार्मिक मंत्रालय के अफसर इस बात से परेशान हैं कि आने वाले महीनों में सीबीआई या फिर सीवीसी के नए डायरेक्टर का नाम कैसे तय किया जाए. दरअसल सबसे पहले जब अफसरों ने लोकसभा सचिवालय से नेता विपक्ष के मुद्दे पर तस्वीर साफ करने की कोशिश की, तो लोकसभा ने साफ तौर पर यह कह दिया कि अभी तक नेता विपक्ष का मसला तय नहीं हो पाया है. इसके बाद यही सवाल अफसरों ने कानून मंत्रालय को लिखकर भेजा. सच तो यह है कि इन सवालों को लेकर पहले लोकसभा सचिवालय उलझा और अब कानून मंत्रालय उलझ गया है.

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