केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने कहा है कि सरकारी अधिकारी आरटीआई कानून के तहत सूचना न देने के लिए 'फाइलें गायब होने' का बहाना नहीं बना सकते. आयोग ने कहा है कि पारदर्शिता लाने के लिए बनाए गए आरटीआई कानून के तहत ऐसे दावों की कोई वैधता नहीं है.
सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु ने अपने आदेश में कहा, 'जब तक यह साबित न हो जाए कि फाइलें नष्ट करने या उसे रोक कर रखने की नीति के तहत दस्तावेज नष्ट किए गए, तब तक यह माना जाएगा कि अधिकारी ने उसे अपने पास रखा है.'
सीआईसी के पास यह मामला तब आया जब ओम प्रकाश नाम के एक व्यक्ति ने दिल्ली सरकार के भूमि एवं भवन विभाग से सरकार द्वारा अधिगृहीत अपनी जमीन के एवज में एक वैकल्पिक प्लॉट के आवंटन के बाबत सूचना मांगी.
विभाग ने आयोग के सामने स्वीकार किया कि संबंधित फाइल गायब है और आरटीआई आवेदन प्राप्त करने के बाद अधिकारियों द्वारा व्यक्तिगत तौर पर भूमि एवं भवन विभाग के कमरे का निरीक्षण करने के बाद भी उनका पता नहीं चल सका. विभाग की तरफ से पेश हुए अधिकारी ने बताया कि गायब हुई फाइल मिलने की अब कोई संभावना नहीं है.
सूचना आयुक्त ने कड़ाई बरतते हुए कहा कि जिन दस्तावेजों को हमेशा रखना होता है और उनका रखरखाव करना होता है, यदि वे गायब हो जाएं और किसी मामले में उन्हें सबूत माना जाए तो अधिकारियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 201 के तहत शिकायत दर्ज की जा सकती है. इसकी गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस मामले में दोषी पाए जाने पर 7 से 10 साल तक की जेल की सजा हो सकती है.
आयुक्त ने कहा, फाइल गायब होने या नहीं मिल पाने के दावे की कोई वैधता नहीं है क्योंकि इसे आरटीआई कानून द्वारा अपवाद नहीं माना गया है. फाइल गायब होना लोक अभिलेख कानून, 1993 के उल्लंघन की तरह है जिसके जुर्म में 5 साल तक की जेल की सजा या जुर्माना या दोनों ही हो सकते हैं.