केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार के दूसरे कार्यकाल को एक साल पूरा हो रहा है. पिछले साल इसी वक्त जब भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की, तो नज़ारा पूरी तरह से 2014 के चुनाव के बाद जैसा था. लेकिन इस बार एक अंतर था क्योंकि तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने इस बार लोकसभा का चुनाव लड़ा था. मंत्रिमंडल बना तो इस बार अमित शाह भी इसमें शामिल हुए और उनके गृह मंत्री बनते ही ये तय हो गया कि इस सरकार में नंबर दो कौन होगा.
दूसरे कार्यकाल की शुरुआत से लेकर अबतक अमित शाह का दबदबा इस सरकार में दिखा है. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने जैसा कठिन फैसला हो, नागरिकता संशोधन एक्ट को पेश करना हो, संसद के भीतर विपक्ष को झेलना हो या फिर चुनावी पिच पर फ्रंटफुट पर बैटिंग करना हो. अमित शाह दूसरे कार्यकाल में हर मोर्चे पर डटे रहे और अपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे बड़े सिपहसालार बनकर उभरे.
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मोदी सरकार में नंबर दो अमित शाह!
पहले कार्यकाल में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने, तो हर किसी की नज़र इसबात पर रहती थी कि सरकार में नंबर दो कौन है. अरुण जेटली या फिर राजनाथ सिंह. लेकिन, इस बार जब ये तय हुआ कि अमित शाह मंत्रिमंडल का हिस्सा होंगे तो साफ हो गया कि इसबार नंबर दो कौन होगा.
अमित शाह की चुनावी रणनीति ने 2014 के बाद उन्हें भारतीय राजनीति में अलग पहचान दिलवाई. पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी की चर्चा हर जगह होने लगी, इस बीच पहले अमित शाह राज्यसभा में आए और फिर चुनाव के जरिए लोकसभा में एंट्री ली. अमित शाह ने भाजपा दिग्गज लालकृष्ण आडवाणी की सीट गांधीनगर पर चुनाव लड़ा.
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जब शाह ने किया पहला बड़ा फैसला!
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल को अभी दो ही महीने हुए थे कि अगस्त की शुरुआत में अमरनाथ यात्रा को रोक दिया गया. अचानक अमरनाथ यात्रा रुकने के बाद देश की राजनीति में अचानक भूचाल आया और फिर भाजपा की ओर से अपने सभी सांसदों से राज्यसभा-लोकसभा में उपस्थित रहने को कहा गया.
5 अगस्त 2019 को अमित शाह ने राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने की घोषणा कर दी, उन्होंने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के संकल्प को संसद में पढ़ा और इसी के साथ इसपर तुरंत चर्चा का ऐलान कर दिया. अमित शाह के इस ऐलान से संसद में अचानक शोर बढ़ गया और हर कोई हैरान हो गया कि ये क्या हुआ. क्योंकि करीब सत्तर साल से अनुच्छेद 370 हटाने को लेकर चर्चाएं जारी थी, भाजपा की ओर से लंबे वक्त से इसकी मांग की जा रही थी.
अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के अलावा राज्य के पुनर्गठन का प्रस्ताव रखा, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश बन गया और लद्दाख एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बन गया.
जान दे देंगे...
इसी पर सदन में चर्चा के दौरान अमित शाह कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी पर भड़क गए थे और उन्होंने तब कहा था, ‘जम्मू-कश्मीर, भारत का अभिन्न अंग है. जब भी मैं जम्मू-कश्मीर कहता हूं तो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) और अक्साई चीन भी इसके अंदर आता है. क्या कांग्रेस पीओके को भारत का हिस्सा नहीं मानती है. हम इसके लिए जान दे देंगे.’
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नागरिकता संशोधन एक्ट ने खींची नई लकीर
सरकार के शुरुआती 6 महीने में ही अमित शाह ने संसद में एक और नया प्रस्ताव रखा. नागरिकता संशोधन एक्ट, इस बिल के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन, यानी गैर मुस्लिम लोगों को भारत की नागरिकता मिल पाएगी.
सरकार के इस प्रस्ताव के साथ ही देश में हंगामा शुरू हो गया और जगह-जगह विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ. कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष ने इसका विरोध किया और इस कानून को देश को बांटने वाला बताया. लेकिन अमित शाह और सरकार इस बिल पर पीछे नहीं हटे, साथ ही उन्होंने देशभर में NRC लाने की बात भी कही. हालांकि, बहुत ज्यादा विवाद होने के बाद सरकार ने NRC से पीछे हटने की बात कही.
इसी कानून के विरोध में दिल्ली के शाहीन बाग में एक प्रदर्शन शुरू हुआ, जिसके बाद उसकी तर्ज पर पूरे देश में इस तरह के प्रदर्शन हुए और दुनियाभर में इसने सुर्खियां बटोरीं.
संसद में दिखा अमित शाह का दबदबा
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में संसद का नज़ारा इस बार पूरी तरह से अलग दिखने लगा. लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदन में अमित शाह का दबदबा दिखा, फिर चाहे विपक्ष को आगे बढ़कर करारा जवाब देना हो या फिर किसी तरह का नया बिल पास करना हो. अमित शाह हर मोर्चे पर सबसे आगे दिखे.
पहले अनुच्छेद 370, फिर नागरिकता संशोधन एक्ट, उसके बाद विधि-विरुद्ध क्रियाकलाप निवारण संशोधन विधेयक (UAPA बिल) पेश किया गया, अमित शाह की अगुवाई में सभी बिल लोकसभा से लेकर राज्यसभा दोनों आसानी से पास हुए. जबकि, राज्यसभा में भाजपा बहुमत के आंकड़े से कुछ दूर थी.
इसके अलावा देश में राम मंदिर का फैसला आ गया और सबकुछ शांति से बीत गया. जबकि कई बार ऐसा कहा गया कि फैसले से देश का माहौल बिगड़ सकता है. लेकिन अमित शाह की अगुवाई में कानून व्यवस्था सही रही.
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दिल्ली हिंसा, NRC समेत कई मसलों पर बवाल
ऐसा नहीं रहा कि अमित शाह को पूरे साल किसी तरह के विरोध का सामना नहीं करना पड़ा. इस साल की शुरुआत में राजधानी दिल्ली में हुई हिंसा के बाद अमित शाह पर विपक्ष ने सवाल दागे. तीन दिन तक दिल्ली में हिंसा होती रही और इस दौरान दिल्ली पुलिस पूरी तरह से फेल दिखी. यही कारण रहा कि अमित शाह बतौर गृह मंत्री विपक्ष के निशाने पर आए.
दूसरी ओर NRC को लेकर देश में कई तरह की अफवाहें फैलीं, सरकार ने कहा कि अभी NRC पर चर्चा नहीं हुई है. लेकिन अमित शाह का एक बयान जिसमें वह CAA के बाद NRC की क्रोनोलॉजी की बात करते हैं वो लगातार वायरल होता रहा और सरकार की मंशा पर सवाल खड़े होते रहे.
साथ ही दिल्ली में जामिया मिलिया, जेएनयू में दिल्ली पुलिस के द्वारा की गई कार्रवाई ने भी गृह मंत्रालय पर सवाल खड़े किए. और अब जब देश में लॉकडाउन लागू है, तब भी अमित शाह की गैर मौजूदगी को कई बार विपक्ष ने मुद्दा बनाया.
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