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मोदी सरकार 2.0 का एक साल: मोदी के लिए पूरे साल चुनौती पेश करती रही दिल्ली

राजधानी दिल्ली में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को पिछले एक साल में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. फिर चाहे दिल्ली चुनाव में भाजपा की हार हो या फिर दिल्ली में भड़की हिंसा हो.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए चुनौती बनी दिल्ली (AP)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए चुनौती बनी दिल्ली (AP)

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  • मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल को एक साल
  • एक साल में दिल्ली से आई कई चुनौतियां
  • चुनाव में हार, हिंसा और प्रदर्शन ने बढ़ाई चिंता

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल को एक साल पूरा हो रहा है. शुरुआती एक साल में मोदी सरकार ने कई अहम फैसले लिए जिन्हें ऐतिहासिक माना गया. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना हो या फिर नागरिकता संशोधन एक्ट को पास करना हो, बड़े फैसलों के मोर्चे पर मोदी सरकार ने आक्रामक रुख अपनाया. लेकिन इन्हीं फैसलों की वजह से कई बार विरोध का सामना भी करना पड़ा और इसका सबसे ज्यादा असर दिखा राजधानी दिल्ली में.

मोदी सरकार के लिए दिल्ली एक अलग तरह की चुनौती पेश करती रही, जिसकी कसक लगातार बरकरार रहेगी. फिर चाहे नागरिकता संशोधन एक्ट के खिलाफ प्रदर्शन हो या फिर दिल्ली चुनाव में भाजपा को मिली करारी हार हो. इसके बाद दिल्ली में हुई हिंसा या फिर तबलीगी जमात का कार्यक्रम जिसके कारण कोरोना के मामलों में अप्रत्याशित तेज़ी देखने को मिली. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले साल में दिल्ली हर कदम पर चुनौती पेश कर रही थी.

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नागरिकता संशोधन एक्ट का तीखा विरोध

दिसंबर 2019 में जब केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार नागरिकता संशोधन एक्ट लेकर आई, तो समाज के कई तबकों ने इसका घोर विरोध किया. बिल के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान से आने वाले गैर-मुस्लिम लोग जिनका कभी भारत से संपर्क रहा हो, वो वापस आ सकते हैं उन्हें नागरिकता भी मिल सकती है. विपक्ष की तरफ से इसे धर्म के नाम पर बांटना बताया गया, केंद्र पर निशाना साधा गया.

लेकिन, इसको लेकर दिल्ली में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए जो शुरुआत में छात्रों के द्वारा बुलाए गए. जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी, जामिया मिल्लिया के छात्रों द्वारा विरोध प्रदर्शन किया गया, लेकिन देखते ही देखते हालात बेकाबू होते नज़र आए. दिल्ली के कई इलाकों में हिंसक प्रदर्शन हुआ, यूनिवर्सिटी में दिल्ली पुलिस का एक्शन हुआ, जिसको लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय की काफी किरकिरी भी हुई.

इस बीच दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में एक अलग तरह का विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ, यहां मुस्लिम समुदाय की महिलाओं ने सड़क पर जाम लगाया, धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया. दिसंबर महीने में शुरू हुआ ये प्रदर्शन देखते ही देखते एक सिंबल बन गया, जिसकी चर्चा दुनियाभर में हुई. देश में भी शाहीन बाग की तर्ज़ पर सैकड़ों विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. ये प्रदर्शन मार्च तक चलता रहा, जबतक देश में कोरोना वायरस का खतरा नहीं बढ़ गया.

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दिल्ली विधानसभा चुनाव में करारी हार

नागरिकता संशोधन एक्ट के खिलाफ जारी प्रदर्शन के साये में ही दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए. 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत हासिल कर आई भाजपा को उम्मीद थी कि इस बार दिल्ली में बेड़ा पार हो जाएगा. सीएए जैसे मुद्दे को लेकर भाजपा ने राष्ट्रवाद का नारा बुलंद किया, अमित शाह की अगुवाई में बीजेपी ने आक्रामक प्रचार भी किया. लेकिन अंत में बीजेपी को चुनाव में बड़ा झटका लगा.

बीजेपी लगातार दूसरी बार दिल्ली में दहाई का आंकड़ा भी नहीं पार कर पाई, जो मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में भाजपा के लिए पहला बड़ा झटका साबित हुआ. चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी नेताओं के बयान, शाहीन बाग के खिलाफ तीखी बयानबाजी बीजेपी के चुनाव प्रचार का हिस्सा रही लेकिन ये रणनीति पूरी तरह से फेल ही रही.

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दिल्ली में हुई हिंसा

दिल्ली चुनाव के बाद हर किसी का ध्यान था अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे पर. डोनाल्ड ट्रंप का बतौर राष्ट्रपति ये पहला भारत दौरा था, जिसे अमेरिका-भारत की दोस्ती के इतिहास में नया अध्याय बताया जा रहा था. अहमदाबाद में डोनाल्ड ट्रंप के लिए हाउडी मोदी के तर्ज पर विशाल आयोजन किया गया. लेकिन, इसी के इतर 24 फरवरी को दिल्ली के कुछ इलाकों में हिंसा की खबरें आईं.

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दिल्ली के मौजपुर-जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के पास कुछ महिलाएं विरोध प्रदर्शन पर बैठीं, जिनका विरोध हुआ. इसके बाद पुलिस की तरफ से अगले दो दिनों में ही उन्हें वहां से हटाया गया, लेकिन इस बीच सीएए के समर्थकों ने हंगामा शुरू कर दिया.

इसी बीच 24 फरवरी की सुबह दस बजे दिल्ली के चांदबाग इलाके में पत्थरबाजी शुरू हुई, इस दौरान दो गुट आपस में भिड़ गए थे. इसके बाद आसपास के इलाकों में दो गुटों में पत्थरबाजी चलती रही, लेकिन देर शाम को गोकुलपुरी के बाज़ार में आग लगा दी गई. ये बवाल लगातार बढ़ता गया, दंगाइयों ने दिल्ली की सड़कों पर तांडव शुरू किया.

देखते-देखते ही उत्तर पूर्वी दिल्ली का पूरा इलाका इस भीषण हिंसा की चपेट में आ गया, जो अगले तीन दिनों तक जारी रहा. इस हिंसा में करीब 50 लोगों ने अपनी जान गंवाई. दिल्ली में हुई हिंसा मोदी सरकार के लिए बड़ी चुनौती लेकर आई, सीएए के विरोध प्रदर्शन के बाद लगातार ये दूसरी बड़ी किरकरी थी वो अभी तब जब डोनाल्ड ट्रंप दिल्ली में थे.

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दिल्ली पुलिस ने करवाई किरकरी

राजधानी दिल्ली में लगातार हो रही घटनाओं के बीच दिल्ली पुलिस इनसब के केंद्र में थी. लेकिन दिल्ली पुलिस के हर एक्शन पर विपक्ष की तरफ से सवाल खड़े किए गए, विपक्ष इसलिए भी आक्रामक रहा क्योंकि दिल्ली पुलिस सीधे केंद्र के अंतर्गत आती है व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह हर किसी के निशाने पर थे.

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पहले नागरिकता संशोधन एक्ट के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान दिल्ली पुलिस के द्वारा यूनिवर्सिटी में घुसकर एक्शन लेना, उसके बाद जामिया मिल्लिया की लाइब्रेरी में तोड़फोड़ होना फिर दिल्ली में हुई हिंसा को रोकने में नाकाम रहना, दिल्ली पुलिस पर लगातार भारी पड़ता रहा. जिसने विपक्ष को केंद्रीय गृह मंत्रालय पर सवाल खड़े करने का मौक दिया.

तबलीगी जमात ने बढ़ाई कोरोना की टेंशन

मार्च 2020 में भारत में कोरोना वायरस के मामलों ने रफ्तार पकड़ी, मार्च तक देश में कोरोना वायरस के कुल केस सिर्फ सैकड़ों में ही थे. बढ़ते मामलों को देखते हुए मोदी सरकार ने देश में लॉकडाउन लगाया लेकिन, इस बीच दिल्ली के निज़ामुद्दीन इलाके में स्थित तबलीगी ज़मात के मरकज़ का खुलासा हुआ.

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दिल्ली पुलिस के मुताबिक, यहां पर करीब 2000 हज़ार से अधिक लोग थे जो लॉकडाउन के बाद भी यहां रुके हुए थे. यहां से लोग देश के अलग-अलग इलाकों में भी पहुंचे, जिनके बाद कुछ लोग कोरोना वायरस पॉजिटिव भी पाए गए. दिल्ली में भी अचानक कोरोना के केस में उछाल आया, फिर यूपी से लेकर तमिलनाडु में कई केस बढ़े.

कोरोना की बढ़ी रफ्तार ने मोदी सरकार की चिंता बढ़ाई, तो वहीं तबलीगी जमात को लेकर जांच भी शुरू हो गई. तबलीगी जमात का मुखिया मौलान साद अबतक दिल्ली पुलिस की पकड़ में नहीं आ पाया है.

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