प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के चार साल पूरे हो रहे हैं. 1980 में दो सांसदों के साथ शुरू हुई बीजेपी पहली बार 2014 में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई और इस जीत का श्रेय नरेंद्र मोदी के नाम रहा. 2014 में मोदी के नेतृत्व में शुरू हुआ 'विजय रथ' लगातार आगे बढ़ रहा है. आज देश की सत्ता के साथ-साथ 20 राज्यों में पार्टी की सरकार है और बीजेपी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है. मोदी के साथ उनके भरोसेमंद नेताओं की एक मजबूत टीम है, जो प्लानिंग से लेकर उसे अमलीजामा पहनाने तक का काम करती है.
1. अमित शाह
अमित शाह को नरेंद्र मोदी का हनुमान कहा जाता है. मौजूदा समय में वे पार्टी के अध्यक्ष हैं. 2013 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित किए गए तो उन्होंने अपने सबसे करीबी अमित शाह को पार्टी में महासचिव की जिम्मेदारी दिलाई. शाह को यूपी का प्रभारी बनाया गया. उन्होंने ऐसी रणनीति बनाई कि 2014 के चुनाव में यूपी की 80 में से 71 सीटों पर जीत दर्ज की. मोदी देश के पीएम बने तो शाह पार्टी अध्यक्ष बने. इसके बाद शाह-मोदी की जोड़ी एक के बाद एक राज्यों की चुनावी जंग फतह करने में जुट गई. शाह के नेतृत्व में बीजेपी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनी. उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम तक में बीजेपी ने जीत की पताका फहराई.
2. भूपेंद्र यादव
भूपेंद्र यादव को पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह का बेहद करीबी माना जाता है. वे व्यवहार में बहुत कुछ अपने अध्यक्ष की तरह ही नजर आते हैं. भूपेंद्र रैली में जाकर भाषणबाजी के जरिए चुनाव लड़ने के बजाए वॉर रूम में रहकर चुनावी रणनीति बनाना पसंद करते हैं. पर्दे के पीछे बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव के पद पर कार्यरत भूपेंद्र की प्लानिंग का ही कमाल था जिसने मोदी और शाह के गृह राज्य गुजरात के विधानसभा चुनाव में लगातार छठी बार पार्टी को जीत दिलाई. यूपी में 14 साल के सत्ता के वनवास को खत्म कराया. भूपेंद्र राजस्थान के अजमेर से आते हैं और 2012 से राज्यसभा सांसद हैं. वे कई भाषाओं के अच्छे जानकार हैं. पेशे से वकील रहे और सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस कर चुके हैं.
राम माधव, बीजेपी के सबसे भरोसेमंद चेहरों में से एक हैं. आमतौर पर सुर्खियों से दूर रहते हैं, लेकिन संगठन पर उतनी ही मजबूत पकड़ है. माधव 22 अगस्त 1964 को आंध्र प्रदेश के अमलापुरम में पैदा हुए थे. बीजेपी में आने से पहले राम माधव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में थे. वे बचपन से ही संघ से जुड़े रहे, फिलहाल वे पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं. 2014 में बीजेपी में आने से पहले राम माधव आरएसएस के राष्ट्रीय प्रवक्ता थे. जम्मू-कश्मीर के अलावा पूर्वोत्तर के राज्यों में बीजेपी की सरकार बनाने में राम माधव की अहम भूमिका रही है. विदेशों में पीएम मोदी के मेगा शो को सफल बनाने के पीछे भी राम माधव की बहुत बड़ी भूमिका रही है.
4. पीयूष गोयल
रेल मंत्री पीयूष गोयल मोदी सरकार के साथ-साथ बीजेपी में भी ताकतवर होते जा रहे हैं. गोयल नए 'ट्रबलशूटर' यानि संकटमोचक बनकर उभरे हैं. वे मोदी कैबिनेट में इस समय दूसरे नंबर के नेता बन चुके हैं. अरुण जेटली के अस्वस्थ होने के कारण रेलवे के साथ वित्त मंत्रालय की अतिरिक्त जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई है. पीयूष गोयल मोदी-शाह की नई बीजेपी में वही भूमिका निभा रहे हैं जो एक वक्त में प्रमोद महाजन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में निभाते थे. 1998 में जब दिल्ली में बीजेपी की सरकार बनी तो मुंबई में चार्टर्ड अकाउंटेंट पीयूष गोयल का दिल्ली दौरा तेजी से बढ़ गया था. उस वक्त उनके पिता वेद प्रकाश गोयल पार्टी के कोषाध्यक्ष थे.पीयूष गोयल धीरे-धीरे बीजेपी में ज्यादा सक्रिय हुए और अपने पिता के बाद पार्टी के कोषाध्यक्ष बने. महाराष्ट्र से उन्हें राज्यसभा भेजा गया. जब केंद्र में मोदी सरकार बनी तो उन्हें पहले राज्यमंत्री बनाया गया और फिर प्रमोशन देकर रेल मंत्रालय जैसा अहम महकमा दिया गया. अब तो वे सरकार में नंबर-2 की भूमिका में नजर आ रहे हैं.
केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली को मोदी सरकार का सबसे बड़ा संकटमोचक कहा जाता है. मोदी सरकार जब भी विपक्ष के सवालों के घेरे में होती तो सरकार की ओर से अरुण जेटली आगे आकर सामना करते. वे पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सवालों का जवाब देते थे, अब ब्लॉग लिखकर देते हैं. जेटली ही नरेंद्र मोदी के दिल्ली में सबसे भरोसेमंद मित्र और सलाहकार माने जाते हैं. मोदी के बुरे से बुरे समय में भी जेटली हमेशा उनके पीछे मजबूती से खडे रहे. मोदी के तमाम कानूनी मामलों को अरुण जेटली देखते रहे. मोदी के करीबी अमित शाह के जब गुजरात में घुसने पर अदालत ने रोक लगा दी तो उन्होंने अरुण जेटली के घर पर शरण ली थी. राजनाथ सिंह जब क्रमिक रूप से नरेंद्र मोदी का नाम प्रधानमंत्री के रूप में आगे बढा रहे थे, तब कद्दावर पार्टी नेताओं में अरुण जेटली ही सबसे अहम शख्स थे, जो राजनाथ के इस कदम के समर्थन में खड़े थे. इसी का नतीजा है कि पीएम मोदी की कैबिनेट में वे दूसरे नंबर के मंत्री हैं.
6. धर्मेंद्र प्रधान
लो-प्रोफाइल रहने वाले केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान पीएम नरेंद्र मोदी के करीबी और भरोसेमंद माने जाते हैं. धर्मेंद्र प्रधान को राजनीति अपने पिता देवेंद्र प्रधान से विरासत में मिली है. उनके पिता भी ओडिशा से बीजेपी के एमपी रह चुके हैं जो बाद में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री भी रहे. धर्मेंद्र प्रधान ने छात्र नेता के तौर पर एबीवीपी से अपना राजनीतिक सफर शुरू किया. बाद में वह एबीवीपी और बीजेपी युवा मोर्चा के राष्ट्रीय सचिव और पार्टी महासचिव की जिम्मेदारी भी निभा चुके हैं. फिलहाल एमपी से राज्यसभा सांसद धर्मेंद्र प्रधान मोदी सरकार में पेट्रोलियम और नेचुरल गैस मंत्रालय का जिम्मा संभाल रहे हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना में बेहतरीन काम किया. यह योजना पीएम मोदी के बेहद करीब मानी जाती है. इसके तहत साल 2019 तक 5 करोड़ परिवारों को एलपीजी उपलब्ध कराने का लक्ष्य तय किया गया है. पार्टी कार्यकर्ता के तौर पर भी प्रधान ने अच्छा परफॉर्म किया. लोकसभा चुनाव में बिहार की जिम्मेदारी संभाली. झारखंड और उत्तराखंड चुनाव का प्रभारी बनाया गया था. दोनों राज्य में बीजेपी की सरकार है.
7. जेपी नड्डा
केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा को पीएम मोदी और अमित शाह का भरोसेमंद माना जाता है. जेपी नड्डा हिमाचल प्रदेश से आते हैं और संगठन पर उनकी काफी अच्छी पकड़ है. इसके अलावा नड्डा का मैनेजमेंट काफी मजबूत है. यही कारण है कि वो पीएम मोदी की पसंद रहे हैं. पिछले दिनों हिमाचल में हुए चुनावों के दौरान ऐसी अटकलें लगाई जा रही थीं कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है. लेकिन समीकरणों को देखते हुए ऐसा नहीं हो सका. बावजूद इसके वे मोदी सरकार में कद्दावर मंत्री हैं, उनके पास स्वास्थ्य मंत्रालय की जिम्मेदारी है. संगठन में वे महासचिव की जिम्मेदारी उठा चुके हैं.
8. ओम माथुर
राजस्थान से आने वाले ओपी माथुर को बीजेपी में हमेशा बड़ा टास्क दिया जाता है. महाराष्ट्र का विधानसभा चुनाव हो, उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव हो या फिर गुजरात का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का भरोसा हमेशा ओपी माथुर पर ही रहता है. बीजेपी की 2017 में यूपी में जीत के दौरान ओपी माथुर ही राज्य के संगठन प्रभारी बनाए गए थे. पार्टी में ओपी माथुर भाईसाहब नाम से मशहूर हैं, उन्हें राजस्थान में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के विरोधी खेमे के तौर पर देखा जाता है.
9. सुनील देवधर
त्रिपुरा में 25 साल के लेफ्ट राज का सफाया कर वहां भगवा झंडा लहराने वाले बीजेपी नेता सुनील देवधर आज की बीजेपी के नए मास्टरमाइंड हैं. सुनील देवधर ने करीब 4 साल त्रिपुरा में गुजारे और अपने मैनेजमेंट के दमपर कैडर को तैयार किया. इसी ताकत के दम पर उन्हें माणिक सरकार की जड़ें हिला दीं. बीजेपी को त्रिपुरा में करीब 50 फीसदी वोट मिले थे. बता दें कि देवधर हैं तो मराठी, लेकिन फर्राटेदार बंगाली भी बोलते हैं. वे लंबे समय से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे हैं. बताया जाता है कि जब वो मेघालय, त्रिपुरा, नगालैंड में खासी और गारो जैसी जनजाति के लोगों से मिलते हैं तो उनसे उन्हीं की भाषा में बात करते हैं. त्रिपुरा के लोगों से घुलने-मिलने के लिए उन्होंने पोर्क खाना भी सीखा था.
10. हेमंत बिस्वा शर्मा
पिछले कुछ समय में बीजेपी पूर्वोत्तर में एक बड़ी ताकत बनकर उभरी है. इसमें हेमंत बिस्वा शर्मा का अहम रोल रहा है. हेमंत पहले कांग्रेस में थे, लेकिन असम चुनावों से ठीक पहले वो बीजेपी में शामिल हुए थे. असम के बाद मणिपुर, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा में बीजेपी की सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाई थी. गौरतलब है कि हेमंत ने कांग्रेस छोड़ते वक्त राहुल गांधी पर तीखा प्रहार किया था. उन्होंने राहुल गांधी पर आरोप लगाए कि उनके घर पर हुई बैठक में वो वहां मौजूद लोगों की बात सुनने के बजाए अपने पालतू कुत्ते के साथ ही खेलने में व्यस्त थे. राहुल से अगर कोई मिलने आता है, तो वो उनके साथ मालिक-नौकर जैसा व्यवहार करते हैं.