मोदी सरकार को चार साल पूरे हो गए हैं और ये मौका है जब इस अवधि में सरकार के कार्यकाल पर नजर डालकर परखा जाए कि अलग-अलग मुद्दों पर उसने क्या और कितना काम किया. बात अगर देश की एक बड़ी आबादी यानी मुस्लिम समुदाय के बारे में की जाए तो मोदी सरकार ने कई ऐसे फैसले लिए जो समाज और देश में बड़े बदलाव लेकर आएंगे. दूसरी ओर इन चार साल में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और दमन के भी कई मामले सामने आए जिनमें मोदी सरकार के रुख पर सवाल उठे.
देश के मुसलमानों से जुड़े अहम मसलों पर कांग्रेस और दूसरी पार्टियों की सरकारें हमेशा हाथ डालने से कतराती रही हैं. वहीं, मोदी सरकार ने अपने चार साल के शासन में मुस्लिमों को लेकर बोल्ड कदम उठाए हैं. फिर चाहे वो तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाने की बात हो या फिर एक झटके में हज सब्सिडी को खत्म करने का फैसला. पीएम मोदी और उनके मंत्री खुलेआम कहते हैं कि सरकार तुष्टिकरण पर नहीं बल्कि सशक्तीकरण की राह पर चलेगी.
दुनिया के मुसलमानों की तरह भारत के मुसलमान भी सऊदी अरब हज के लिए जाते हैं. भारतीय हाजियों की यात्रा के खर्च का बड़ा हिस्सा केंद्र सरकार सब्सिडी के रूप में खुद वहन करती थी. मुस्लिम संगठनों की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने हज सब्सिडी को धीरे-धीरे खत्म करने का आदेश दिया था लेकिन मोदी सरकार ने हज सब्सिडी को एक झटके में पूरी तरह से समाप्त कर दिया. सरकार के इस फैसले का मुसलमानों के बड़े तबके ने स्वागत किया, जबकि कुछ लोग इससे नाराज भी हुए, लेकिन बीजेपी और सरकार किसी भी तरह के विरोध से बेपरवाह दिखी.
तीन तलाक के खिलाफ बिल
मोदी सरकार ने तीन तलाक से मुस्लिम महिलाओं को निजात दिलाने का बीड़ा उठाया है. तीन तलाक को जुर्म घोषित कर इसके लिए सजा मुकर्रर करने संबंधी विधेयक को 15 दिसंबर को कैबिनेट की मंजूरी मिली और 28 दिसंबर को लोकसभा ने इसे पास भी कर दिया. हालांकि राज्यसभा में एनडीए का बहुमत न होने से ये विधेयक अटका हुआ है. मोदी सरकार के इस कदम से जहां मुस्लिम महिलाएं खुश नजर आईं तो मुस्लिम संगठनों ने विधेयक के प्रावधानों को लेकर नाराजगी जाहिर की. लेकिन विरोध से बेपरवाह सरकार बिल लटका रहने पर अध्यादेश भी ला सकती है जिसमें तीन तलाक देने पर मुस्लिम पति को सजा तक का प्रावधान है.
मोदी के सत्ता में आते ही देश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ एक माहौल बनाने की कोशिश देखी गई. अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा को लेकर मोदी सरकार बार-बार कटघरे में दिखाई दी. पीएम मोदी का 'सबका साथ, सबका विकास' का नारा महज नारा बनकर रह गया. दादरी में अखलाक तो अलवर में पहलू खां की हत्या गाय को लेकर कर दी गई और सरकार व पार्टी से जुड़े लोग आरोपियों को बचाते नजर आए. झारखंड, हरियाणा, राजस्थान सहित देश के कई हिस्सों में गोरक्षकों द्वारा हिंसक घटनाएं अंजाम दी गईं.
इसी तरह लव जिहाद का जिन्न खड़ा कर मुस्लिम युवाओं को निशाने पर लिया गया. राजस्थान के ही राजसमंद में अफराजुल नामक एक शख्स की हत्या कर उसका लाइव वीडियो बनाया गया. 'ह्यूमन राइट्स वॉच' ने 'वर्ल्ड रिपोर्ट 2018' जारी करते हुए मोदी सरकार के बारे में कड़ी टिप्पणी की. रिपोर्ट में कहा गया है कि ये सरकार देश में अल्पसंख्यकों पर हमलों को नहीं रोक सकी.
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में जिन्ना की तस्वीर पर मचा बवाल हो या जामिया मिल्लिया इस्लामिया के अल्पसंख्यक दर्जे को खत्म करने की कोशिश. मोदी सरकार अल्पसंख्यकों को ये भरोसा देने में नाकाम रही कि उसके राज में उनकी जानमाल और अधिकार सुरक्षित हैं. विपक्ष ने इसे लेकर सरकार और बीजेपी को कटघरे में खड़ा किया है और वो आरोप लगाता रहा है कि मोदी सरकार आरएसएस के हिंदुत्व के एजेंडे पर चल रही है. लेकिन सरकार को इसकी परवाह है ऐसा कोई संकेत उसकी तरफ से नहीं मिला है.