सांख्यिकी आंकड़े एकत्र करने, संकलित करने और प्रसारित करने के मामले में सांख्यिकी व्यवस्था को स्वायत्त और पारदर्शी होना चाहिए. इसे निश्चित तौर पर राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त होना चाहिए.
भारत की सांख्यिकी व्यवस्था तब से संदेह के घेरे में है, जब 2015 में केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) ने नई जीडीपी सीरीज जारी की थी. ये आंकड़े आधार वर्ष को बदलकर 2011-12 के आधार पर जारी किए गए थे और इसमें पिछले वर्षों की तुलना में विकास की गति को तेज दिखाया गया.
तबसे कई ऐसे मौके आए हैं जब आधिकारिक आंकड़ों की विश्वसनीयता पर सवाल उठे हैं. यूपीए के कार्यकाल के आंकड़ों के साथ बदलाव करना हो, नोटबंदी के वर्ष के आंकड़ों को बढ़ा चढ़ाकर दिखाना हो, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) के रोजगार के आंकड़े को प्रसारित होने से रोकना हो, इसके विरोध में राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (NSC) के चेयरमैन पीसी मोहनन और इसकी सदस्य जेवी मीनाक्षी का इस्तीफा हो या फिर राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग को दरकिनार करना हो.
इन सबमें नीति आयोग ने बड़ी भूमिका निभाई, हालांकि, उसे इसका अधिकार नहीं था. लेकिन सरकार के लिए असुविधा उत्पन्न करने वाले आंकड़ों को किनारे कर दिया गया. इन घटनाओं की वहज से 108 अर्थशास्त्रियों और समाजशास्त्रियों ने विरोध करते हुए चिंता जाहिर की कि सरकार सांख्यिकीय आंकड़ों के मामले में राजनीतिक हस्तक्षेप कर रही है. इन लोगों ने सांख्यिकी संगठनों की 'सांस्थानिक स्वायत्तता' और 'सत्यनिष्ठा' को बहाल करने के लिए अभियान चलाया.
सांख्यिकीय व्यवस्था की स्वायत्तता
भारत के सांख्यिकी विभाग में कई बातें ऐसी हुई हैं जो इसकी विश्वसनीयता के लिए गंभीर मामला है. जैसे मुख्य सांख्यिकीविद (CSI) के पद पर और राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (NSC) में नियुक्तियां. सरकार ने पदों की नियुक्तियों में बदलाव किया, आंकड़ों की गुणवत्ता, स्वायत्तता, डाटा कलेक्शन और उन्हें प्रसारित करने के मामलों में हस्तक्षेप किया.
मुख्य सांख्यिकीविद और राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग दोनों ही अपनी कार्यपद्धति में स्वतंत्र हैं. वे सरकार की सामान्य नौकरशाही का हिस्सा नहीं हैं, 2001 में रंगराजन कमीशन की रिपोर्ट में की गई सिफारिशों के आधार पर 2006 में इनकी स्वायत्तता और पारदर्शिता को सुनिश्चित किया गया था, लेकिन अब इन्हें केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (एमओएसपीआई) के अंतर्गत ले आया गया है.
फिलहाल अनिश्चितता की स्थिति
यह अनिश्चितता इसलिए है क्योंकि 23 मई को जब पूरा देश चुनाव नतीजों पर निगाह जमाए हुए था, तब एनडीए सरकार ने सांख्यिकी विभाग के पुनर्गठन के लिए आदेश पारित कर दिया. इस आदेश के मुताबिक, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) और इससे जुड़े विभाग जैसे एनएसएसओ, सीएसओ आदि केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (एमओएसपीआई) का अंग होंगे.
एनएसएसओ और सीएसओ का एनएसओ के साथ विलय कर दिया गया और सचिव स्तर के अधिकारी को केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (एमओएसपीआई) के तहत एनएसओ का प्रमुख बना दिया गया.
यह पुनर्गठन की प्रक्रिया सीएसआई और एनएससी दोनों को लेकर मौन है. 2007-10 के बीच पहले सीएसआई रहे प्रणब सेन का कहना है कि सरकार के इस आदेश से कुछ आशंकाएं उत्पन्न हुई हैं. पहला, एनएसएसओ जो राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न सामाजिक-आर्थिक आंकड़े एकत्र करता है, इसका वजूद समाप्त कर दिया गया और इसे सामान्य नौकरशाही का हिस्सा बना दिया गया. दूसरे, इस आदेश में सीएसआई और एनएससी के बारे में कोई जिक्र नहीं है कि इनका काम क्या होगा?
मोहनन की आशंकाएं
डर यह है कि जब सीएसआई और एनएससी स्वायत्त संस्थाएं नहीं रहेंगी तो सांख्यिकी सिस्टम में पूरी तरह राजनीतिक हस्तक्षेप रहेगा, जैसे कि सरकार के दूसरे विभागों में होता है. सरकार के आदेश से ऐसा लग रहा है कि केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (एमओएसपीआई) का सचिव ही सीएसआई की जगह लेगा.
खबरें हैं कि सरकार इसे संवैधानिक दर्जा देने जा रही है. अगर ऐसा होता है तो यह सही दिशा में होगा लेकिन साथ में यह भी सुनिश्चित करना होगा कि यह विभाग राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त रह सके. एनएससी में जनवरी से कोई चेयरमैन या स्वतंत्र सदस्य नहीं है.
आंकड़ों की गुणवत्ता
लंबे समय से आंकड़ों की गुणवत्ता का सवाल बना हुआ है. हाल ही में एनएसएसओ से कई ऐसे आंकड़े जारी हुए जिन्हें लेकर विवाद हो चुका है. ऐसे में यह ख्याल रखना जरूरी है कि आंकड़ों की गुणवत्ता को बेहतर बनाया जाए. एनएससी अपनी गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए और संसाधनों की मांग कर रहा है. लेकिन सरकार ने इस मांग पर ध्यान नहीं दिया है. इस साल जनवरी में इस्तीफा देते समय मोहनन ने ऐसी समस्याओं को उठाया था.
इस गंभीर स्थिति को उलटने और सांख्यिकी विभाग की विश्वसनीयता को बहाल करने के लिए क्या किया जाना चाहिए? इसके लिए प्रणब सेन दो सुझाव देते हैं. पहला, सीएसआई की स्वायत्ता को बहाल किया जाए और इसका एक कार्यकारी प्रमुख नियुक्त हो.
दूसरा, एनएससी को मजबूत किया जाए जो कि एक पार्ट टाइम चेयरमैन के साथ एक पार्ट टाइम विभाग है. कम से कम इसके चेयरमैन और दो सदस्यों को संवैधानिक दर्जा देकर पूर्णकालिक कर्मचारी बनाया जाना चाहिए.
मोहनन का कहना है कि एनएसएसओ और सीएसओ को लेकर एनएससी की जिम्मेदारियों को बढ़ाना चाहिए. जीडीपी, सामाजिक क्षेत्र के आंकड़े और सैंपल सर्वे को कवर करने के लिए इसे विशेषज्ञ मुहैया कराने चाहिए. सभी आंकड़े संबंधी गतिविधियों को तार्किक बनाना चाहिए, ताकि सीएसआई सिर्फ सांख्यिकी पर गौर कर सके.
कुल मिलाकर, बेहतर नीतियों और बेहतर सामाजिक-विकास के लिए अर्थव्यस्था के बारे में और अधिक सर्वे, और अधिक अध्ययनों की जरूरत है.