राफेल सौदे को लेकर मचे घमासान के बीच केंद्र की मोदी सरकार ने अपने बचाव में सफाई पेश की है और कहा कि हमने कोर्ट को गुमराह नहीं किया है, बल्कि हमारी दलील को कोर्ट ने गलत समझा.
केंद्र ने शनिवार को उच्चतम न्यायालय का रुख कर राफेल लड़ाकू विमान सौदे पर शीर्ष न्यायालय के फैसले में उस पैराग्राफ में संशोधन की मांग की है जिसमें नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) रिपोर्ट और संसद की लोक लेखा समिति (पीएसी) के बारे में संदर्भ है. सरकार ने कहा है कि उसके नोट की अलग-अलग व्याख्या के कारण विवाद पैदा हो गया है.
केंद्र ने अपनी याचिका में कहा है कि फैसले के पैराग्राफ 25 में दो वाक्य लगता है कि उस नोट पर आधारित है जिसे उसने मुहरबंद लिफाफे में मूल्य विवरण के साथ जमा किया था लेकिन अदालत द्वारा इस्तेमाल किये गए शब्द से अलग मतलब निकाला जा रहा है.
केंद्र ने साफ कर दिया कि वह यह नहीं कह रहा कि कैग रिपोर्ट का पीएसी ने परीक्षण किया था या संपादित हिस्से को संसद के सामने रखा गया. उसने स्पष्ट किया कि नोट में कहा गया है कि सरकार कैग के साथ मूल्य विवरण को साझा कर चुकी है. यह वाक्य भूतकाल (पास्ट टेन्स) में लिखा गया है और यह ‘‘तथ्यात्मक रूप से सही’’ है.
याचिका में कहा गया है कि उक्त नोट मोटे अक्षरों में लिखा गया है . इसमें मोटे अक्षरों में लिखे गए वाक्य में कहा गया है कि सरकार मूल्य विवरणों को कैग के साथ साझा कर चुकी है. कैग की रिपोर्ट का पीएसी परीक्षण कर रही है . रिपोर्ट का संपादित हिस्सा संसद में रखा गया और यह सबके सामने है.
याचिका के मुताबिक शब्द ‘हैज बीन (हो चुका है)’ भूतकाल में इस्तेमाल हुआ है जिसके बारे में लिखा है कि सरकार कैग के साथ मूल्य विवरण को पहले ही साझा कर चुकी है. यह भूतकाल में है और तथ्यात्मक रूप से सही है .
वाक्य के दूसरे हिस्से में पीएसी के संबंध में है. इसमें कहा गया है कि कैग की रिपोर्ट का पीएसी परीक्षण कर रही है . फैसले में ‘इज’ की जगह ‘हैज बीन’ का इस्तेमाल हुआ है.
केंद्र ने शीर्ष अदालत के आदेश में आवश्यक संशोधन की मांग करते हुए कहा कि इसी तरह फैसले में यह कथन है कि रिपोर्ट का संपादित हिस्सा संसद के सामने रखा गया. इस बारे में कहा गया कि रिपोर्ट का संपादित हिस्सा संसद के सामने रखा गया और यह सार्वजनिक है.
याचिका के मुताबिक, नोट में केंद्र की ओर से यह कहा गया है कि कैग रिपोर्ट का पीएसी परीक्षण कर रही है. यह प्रक्रिया की व्याख्या है जो आम तौर पर अपनायी जाती है लेकिन फैसले में अंग्रेजी में ‘‘इज’’ यानि ‘‘है’’ की जगह ‘‘हैज बीन’’ अर्थात ‘‘कर चुकी है’’ का इस्तेमाल हुआ है.
सरकार ने ऐसे वक्त याचिका दायर की है जब विपक्षी कांग्रेस और अन्य ने मुद्दे पर सवाल उठाए हैं और सरकार पर कैग रिपोर्ट को लेकर शीर्ष न्यायालय को गुमराह करने के आरोप लगाए हैं.
मोदी सरकार को बड़ी राहत देते हुए उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि वह राफेल लड़ाकू विमान सौदे में निर्णय लेने की प्रक्रिया से ‘‘संतुष्ट’’ है. शीर्ष अदालत ने जांच की मांग खारिज कर दी जिसके बाद इस फैसले को लेकर भाजपा और कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया.
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उसे फ्रांस से 36 विमान खरीदने के ‘‘संवेदनशील मुद्दे’’ में हस्तक्षेप का कोई कारण नहीं लगता.
बता दें कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने राफेल सौदे के मामले में केंद्र की मोदी सरकार पर सुप्रीम कोर्ट में झूठ बोलने और कोर्ट व संसद को गुमराह करने का आरोप लगाया है. आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने राज्यसभा के सभापति को पत्र लिखकर अटॉर्नी जनरल को संसद में बुलाए जाने की मांग की है. उन्होंने आरोप लगाया कि राफेल मामले में सरकार ने सिर्फ संसद ही नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट को भी गुमराह करने का प्रयास किया है.
खड़गे ने कहा- सरकार ने कोर्ट में सही तथ्य पेश नहीं किए
सर्वोच्च न्यायालय की ओर से राफेल मामले में फैसला सुनाने के एक दिन बाद, लोक लेखा समिति (पीएसी) के अध्यक्ष मल्लिकाजुर्न खड़गे ने शनिवार को कहा कि वह महान्यायवादी और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) को तलब करने का दबाव बनाएंगे और उनसे पूछेंगे कि कब सीएजी की रपट पेश की गई और कब पीएसी ने उसकी जांच की. वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने यहां मीडिया से कहा कि सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष सही तथ्य पेश नहीं किए और अदालत में 'झूठ' बोला है.
उन्होंने कहा, 'सरकार ने वहां दिखाया कि कैग रपट पेश की गई है और पीएसी ने उसकी जांच की है.' खड़गे ने कहा, 'सरकार ने अदालत में यह झूठ बोला कि कैग रपट को सदन और पीएसी में पेश किया गया है. उन्होंने अदालत में यह भी कहा कि पीएसी ने इसकी जांच की है. उन्होंने दावा किया कि रपट सार्वजनिक(पब्लिक डोमेन में) है. यह कहां है? क्या आपने इसे देखा है? मैं पीएसी के अन्य सदस्यों के समक्ष इस मामले को ले जाने वाला हूं.'
कोर्ट खारिज कर दी थी जांच संबंधी याचिका
सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को राफेल सौदे की अदालत की निगरानी में जांच कराने की मांग वाली याचिकाएं खारिज कर दी थी. अदालत ने कहा था कि विमान की कीमत कैग के साथ साझा की गई और कैग की रपट की जांच पीएसी ने की. अब रपट का केवल संपादित भाग ही संसद में पेश किया गया है और यह सार्वजनिक है.'
कोर्ट को गुमराह करने के लिए सरकार मांगे माफी
सरकार पर सर्वोच्च न्यायालय को 'गुमराह' करने का आरोप लगाते हुए उन्होंने सरकार से इसके लिए माफी की मांग की. उन्होंने कहा, 'रपट को अबतक संसद में पेश नहीं किया गया है. सर्वोच्च न्यायालय में गलत सूचना पेश की गई. सर्वोच्च न्यायालय में कैग रपट पर गलत तथ्य पेश कर अदालत को गुमराह करने के लिए सरकार को माफी मांगनी चाहिए.'
खड़गे ने यह भी कहा कि वह सर्वोच्च न्यायालय का आदर करते हैं, लेकिन यह जांच एजेंसी नहीं है और केवल संयुक्त संसदीय समिति(जेपीसी) राफेल मामले में कथित भ्रष्टाचार की जांच कर सकती है.
क्या बोले संजय सिंह?
संजय सिंह ने कहा कि जब सीएजी की कोई जांच रिपोर्ट आई ही नहीं तो सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कैसे कहा कि ऐसी कोई जांच रिपोर्ट है. सरकार के अटॉर्नी जनरल ने भी सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि सील बंद लिफाफे में जो कुछ भी दिया गया वह उन्होंने नहीं पढ़ा है तो अब उन्होंने करेक्शन का हलफनामा कैसे दिया? उन्हें वह सीलबंद रिपोर्ट कहां से मिली?
आप सांसद ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश में जिक्र है कि एयरफोर्स प्रमुख ने कीमतों के खुलासे पर आपत्ति की थी. एयरफोर्स चीफ ने यह बयान कब दिया या ऐसा कोई एफिडेविट कब दिया था? नए एफिडेविट में भी सरकार कह रही है कि सीएजी को कीमतों के बारे में जानकारी दे दी गई है लेकिन सीएजी की रिपोर्ट तो जनवरी के बाद आएगी.
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के हलफनामे के मुताबिक यह माना कि सीएजी और पीएसी कीमतों को लेकर पहले ही जांच कर रही है. शायद इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट ने राफेल घोटाले में जांच के आदेश नहीं दिए. अगर कोर्ट को यह पता होता कि ऐसी कोई जांच नहीं हुई है तो शायद इस मामले में जांच के आदेश दिए जाते.
सिब्बल बोले- केंद्र ने बोला झूठ
राफेल पर शनिवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने राफेल के मामले में गलत जानकारी दी है. हम चाहते हैं कि पीएसी (लोक लेखा समिति) में अटॉर्नी जनरल को बुलाया जाना चाहिए, जिससे यह साफ हो सके कि एफिडेविट क्यों जमा कराए गए, जिसका वास्तव में कोई जिक्र नहीं है. यह बेहद संवेदनशील मामला है, जिस पर संसद में भी चर्चा होनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि कांग्रेस इस मामले में हमेशा स्पष्ट रही है कि इस मामले के लिए सुप्रीम कोर्ट सही जगह नहीं है, यहां पर हर तरह की फाइल का खुलासा नहीं किया जा सकता. यह सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में भी नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट के हर फैसले में प्रेस रिपोर्ट और सरकार के हलफनामे का हवाला दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि अनुच्छेद 32 के तहत कोर्ट के न्यायाधिकार के कारण वो फैसला नहीं कर सकते.