दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष मनोज तिवारी ने केजरीवाल सरकार पर बड़ा आरोप लगाया था कि सरकार ने स्कूलों के निर्माण में 2000 करोड़ रुपए का घोटाला किया है. मनोज तिवारी ने सीधे-सीधे उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया पर घोटाले का आरोप लगाया था. घोटाले को लेकर बीजेपी ने संसद मार्ग थाने में शिकायत भी की थी.
पुलिस ने इस मामले को दिल्ली एंटी करप्शन ब्यूरो को भेज दिया था. जिसके बाद सवाल उठे कि आखिर कब से एसीबी इस मामले की जांच शुरू करेगी. यह साफ है कि अब एसीबी इस मामले की जांच करेगी कि क्या दिल्ली में सरकारी स्कूलों में क्लास रूम बनवाने में कोई भ्रष्टाचार हुआ है या नहीं.
बड़ा सवाल है कि क्या ये जांच हो पाएगी? इस पर बड़ा संदेह है और इसका कारण है पिछले साल के मोदी सरकार का फैसला. दरअसल मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में भ्रष्टाचार निरोधक कानून में बदलाव किया था. जिसके तहत अब किसी भी मामले में केंद्र सरकार के मंत्री, अधिकारी या कर्मचारी पर आरोप की जांच के लिए केंद्र सरकार की मंजूरी को जरूरी बना दिया गया था. ठीक उसी तरह से राज्य सरकार के भी मंत्री, अधिकारी या फिर कर्मचारियों की जांच के लिए राज्य सरकार की मंजूरी लेनी होगी.
दिल्ली हाईकोर्ट में बार काउंसिल के अध्यक्ष और वरिष्ठ वकील के सी मित्तल ने बताया की मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार निरोधक कानून में ये बदलाव 26 जुलाई 2018 में किया था. जिसमें साफ शब्दों में कहा गया है कि किसी भी जांच के लिए मंजूरी लेना जरूरी है. सिर्फ इस बात की छूट है कि अगर कोई व्यक्ति किसी मामले में रंगे हाथों पकड़ा जाए तो एजेंसी सीधा करवाई कर सकती है.
मित्तल ने ये भी बताया कि इसके लिए 3 महीने का वक्त मिलता है. यानी जांच को लेकर राज्य या केंद्र सरकार को अनुमति देनी है या रद्द करना है इसका फैसला 3 महीने में करना होगा. साथ ही सरकार को अपना फैसला तय करने के लिए 1 महीने का अतिरिक्त समय मिल सकता है.
एक सवाल ये भी उठा कि दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है तो क्या यहां भी ये नियम लागू होगा. इस पर वरिष्ठ वकील के सी मित्तल ने साफ कहा कि इस नियम में इस बात जिक्र ही नहीं है. सिर्फ केंद्र सरकार और राज्य सरकार का जिक्र है तो इस वजह से एसीबी को जांच के लिए दिल्ली सरकार की मंजूरी लेनी होगी.