राफेल मामले में मोदी सरकार को अब सुप्रीम कोर्ट में प्रोसीजर, प्राइस और पार्टनर (पीपीपी) मॉडल पर जवाब देना होगा. इसका मतलब है कि राफेल डील में मोलभाव, निर्णय लेने की प्रक्रिया और ऑफसेट पार्टनर चुनने की प्रक्रिया पर सरकार को सब कुछ बताना होगा.
बुधवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि राफेल की कीमत और फायदे क्या हैं? इसकी तफसील कोर्ट ने दस दिन के भीतर तलब की है. सरकार को ये सारा ब्यौरा सीलबंद लिफाफे में देना है.
इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इस सौदे में ऑफसेट पार्टनर का ब्यौरा भी मांगा है. यानी सरकार को ये बताना होगा कि अंबानी की कम्पनी क्यों और कैसे इस डील का हिस्सा बनी? कोर्ट ने सरकार की स्थिति भांपते हुए कहा भी कि ये जानकारी या तो याचिकाकर्ताओं को दे सकते हैं और अगर गोपनीयता आड़े आ रही है तो सीधे कोर्ट को भी जानकारी दी जा सकती है.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोइ की बेंच ने राफेल की प्राइसिंग और खासतौर पर इसके फायदे का सिलसिलेवार ब्यौरा सील बंद लिफाफे में देने को कहा है. कोर्ट ने ये भी कहा कि सौदे की प्रक्रिया संबंधी जो गोपनीय रिपोर्ट सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दी है उसे वैध तरीके से सार्वजिनक किया जा सकता है, तो उसकी प्रति याचिकाकर्ताओं को भी दे दें.
अदालत ने कहा कि वैध तरीके से भारतीय ऑफसेट पार्टनर ( अगर कोई है) के बारे में जो भी जानकारी सार्वजनिक की जा सकती है वो भी याचिकाकर्ताओं को दी जाए और अगर इस स्टेज पर इस रिपोर्ट में कोई रणनीतिक या गोपनीयता का मामला है तो इसे कोर्ट में दाखिल किया जा सकता है.
सर्वोच्च न्यायालय में संक्षिप्त सुनवाई के गंभीर माहौल में कुछ हल्के फुल्के लम्हे भी जुड़े. जब प्रशांत भूषण ने इस पूरे मामले की सीबीआई से जांच कराने का आदेश देने की याचिका दोहराई तो चीफ जस्टिस गोगोई ने सीधे कहा कि पहले सीबीआई को अपना घर तो संभाल लेने दीजिए. मामले में अगली सुनवाई 14 नवंबर को है.
गौरतलब है कि याचिका में राफेल मामले में FIR दर्ज कर अदालत की निगरानी में निष्पक्ष जांच कराने की मांग की गई है. साथ ही कहा गया है कि केंद्र को निर्देश दिया जाए कि जांच से जुड़े अफसरों का तबादला न किया जाए या डराया न जाए.