बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में एक यूनिवर्सल हेल्थकेयर स्कीम शुरू करने का वादा कर जनता को लुभाया था, लेकिन फिलहाल इस बड़ी योजना पर ब्रेक लग गया है. सूत्रों की मानें तो इसकी वजह इस प्लान की अनुमानित लागत है. पांच साल में इस पर 18.5 अरब डॉलर खर्च होने का अनुमान है.
'किसान विरोधी छवि बदले मोदी सरकार'
स्वास्थ्य मंत्रालय ने पिछले साल प्रधानमंत्री कार्यालय के साथ तालमेल करके यूनिवर्सल हेल्थ्केयर पर एक ड्राफ्ट पॉलिसी बनाई थी. राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा मिशन के तहत देश के 1 अरब 20 करोड़ लोगों के लिए मुफ्त दवाइयां, डायग्नोस्टिक सेवाएं उपलब्ध कराने और गंभीर बीमारियों के लिए हेल्थ इंश्योरेंस कराने की योजना है. अक्टूबर में इस प्रोजेक्ट पर चार साल के लिए 25.5 अरब डॉलर की लागत का आकलन किया गया था. लेकिन जब इस प्रोजेक्ट को जनवरी में प्रधानमंत्री मोदी के सामने पेश किया गया तो पांच साल के लिए इसकी लागत 11.6 खबर रुपये (18.5 अरब डॉलर) बताई गई.
नहीं मिली सहमति
स्वास्थ्य मंत्रालय और दूसरे सरकारी सूत्रों के मुताबिक, इनकी लागत देखने के बाद सरकार की तरफ से प्रोजेक्ट पर सहमति नहीं दी गई और स्वास्थ्य मंत्रालय को पॉलिसी में बदलाव करने के लिए कहा गया. अभी तक इसमें बदलाव का काम शुरू नहीं हो पाया है. इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी ने मंत्रालय के साथ जनवरी में बैठक की थी, लेकिन सूत्रों ने मामले की गंभीरता को देखते हुए मोदी और अधिकारियों के बीच बातचीत का और ब्यौरा देने से इनकार कर दिया.
हेल्थ पर कम खर्च
भारत फिलहाल जीडीपी का एक फीसदी हिस्सा हेल्थ सेक्टर पर खर्च करता है, लेकिन इससे सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र की हालत नहीं सुधर पा रही. दिसंबर में स्वास्थ्य मंत्रालय के एक विजन डॉक्यूमेंट में हेल्थ सेक्टर पर जीडीपी का 2.5 फीसदी खर्च करने का प्रस्ताव रखा गया था. हालांकि इसके लिए कोई समय सीमा नहीं बताई गई.
सिर्फ 17 फीसदी भारतीयों का हेल्थ इंश्योरेंस
भारत में अभी सिर्फ 17 फीसदी लोगों का ही हेल्थ इंश्योरेंस है. नैटहेल्थ के अंजन बोस का कहना है कि हेल्थकेयर प्रोग्राम में देरी हेल्थ इंडस्ट्री और जनता दोनों के लिए निराशा की बात है. सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में ज्यादा पैसा खर्च होने से प्राइवेट मेडिकल इंडस्ट्री को ताकत मिलेगी.