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'व्यभिचार विवाह संस्था के खिलाफ', मोदी सरकार ने SC में किया विरोध

इस कानून के खिलाफ तर्क दिया जाता है कि ये एक ऐसा अपराध जिसमें महिला और पुरुष दो लोग लिप्त रहने पर भी केवल पुरुष को सजा दी जाती है, जो लैंगिक भेदभाव है.

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सुप्रीम कोर्ट में धारा 497 के खिलाफ दायर की गई है याचिका
सुप्रीम कोर्ट में धारा 497 के खिलाफ दायर की गई है याचिका

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केंद्र सरकार ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 497 (व्यभिचार) का समर्थन किया है. बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में इस धारा को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सरकार ने अपना पक्ष रखा.

स्त्री-पुरुष के विवाहेतर संबंधों से जुड़ी इस धारा का पक्ष लेते हुए मोदी सरकार ने कहा कि व्यभिचार विवाह संस्थान के लिए खतरा है. सरकार ने ये भी कहा कि परिवारों पर इसका असर पड़ता है.

केंद्र सरकार की तरफ से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पिंकी आंनद ने साफ कहा कि हमें अपने समाज में हो रहे विकास और बदलाव के हिसाब से कानून को देखने की जरूरत है न कि पश्चिमी देशों के नजरिए से ऐसे कानून पर राय देनी चाहिए.

क्या है धारा 497

158 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता की धारा 497 कहती है, 'आईपीसी की धारा-497 के तहत अगर कोई शादीशुदा पुरुष किसी अन्य शादीशुदा महिला के साथ आपसी रजामंदी से शारीरिक संबंध बनाता है तो उक्त महिला का पति एडल्टरी (व्यभिचार) के नाम पर उस पुरुष के खिलाफ केस दर्ज करा सकता है. हालांकि, ऐसा व्यक्ति अपनी पत्नी के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकता है और न ही विवाहेतर संबंध में लिप्त पुरुष की पत्नी इस दूसरी महिला के खिलाफ कोई कार्रवाई कर सकती है.

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इस धारा के तहत ये भी प्रावधान है कि विवाहेतर संबंध में लिप्त पुरुष के खिलाफ केवल उसकी साथी महिला का पति ही शिकायत दर्ज कर कार्रवाई करा सकता है. किसी दूसरे रिश्तेदार अथवा करीबी की शिकायत पर ऐसे पुरुष के खिलाफ कोई शिकायत नहीं स्वीकार होगी.

आपसी सहमति से शादी-शुदा पुरुष महिला के बीच शारीरिक संबंध को अपराध की श्रेणी में रखने वाली इस धारा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है, जिस पर सुनवाई चल रही है और केंद्र सरकार ने याचिका के खिलाफ जाकर मौजूदा धारा का समर्थन किया है.

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

हालांकि, दो अगस्त को इस मसले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि वैवाहिक पवित्रता एक मुद्दा है लेकिन व्यभिचार पर दंडात्मक प्रावधान संविधान के तहत समानता के अधिकार का परोक्ष रूप से उल्लंघन है क्योंकि यह विवाहित पुरूष और विवाहित महिलाओं से अलग-अलग व्यवहार करता है.

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने प्रावधान के उस हिस्से पर भी असहमत जाहिर की थी, जिसमें कहा गया है कि यदि एक विवाहित महिला अपने पति की सहमति से किसी विवाहित व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बनाती है तो उस स्थिति में व्यभिचार का कोई मामला नहीं बनता है.

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