केंद्र में नौवीं लोकसभा के बाद (वर्ष 1989) पहली बार 2014 में किसी पार्टी को अकेले बहुमत से ज्यादा सीटें मिलीं और भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई. इसका असर सरकार की तमाम नीतियों के साथ विदेश नीति में भी देखने को मिला.
केंद्र सरकार के मुखिया पीएम नरेंद्र मोदी भारत की विदेश नीति के प्रमुख निर्धारक के तौर पर सामने आए. उन्होंने दुनिया भर के राष्ट्राध्यक्षों के साथ व्यक्तिगत संबंध भी विकसित किए.
इस दौरान भारत की विदेश नीति पड़ोस में ताकतवर चीन को साधने में, दक्षिण एशियाई इलाके में शांति कायम रखने और साझा सांस्कृतिक विरासत वाले देशों को साथ लाने पर रही. भारत को छोटे पड़ोसी देशों का सौभाग्य मिला है, हालांकि उसके समक्ष चीन की प्रतिस्पर्धा भी रही है.
पीएम मोदी ने गद्दी संभालते ही सार्क राष्ट्र प्रमुखों को अपने शपथ ग्रहण में बुलाया, लगभग सभी पड़ोसी देशों का दौरा किया और 'नेबरहुड फर्स्ट का नारा दिया. पीएम मोदी सत्ता में चार साल पूरे कर चुके हैं और उनके सामने पूर्ववर्ती सरकारों जैसी गठबंधन की मजबूरियां भी नहीं रही हैं. ऐसे में जानते हैं कि इन चार सालों में भारत ने अपने पड़ोसी देशों से कैसे संबंध विकसित किए-
1- मालदीव्स
यह भारत का एकमात्र पड़ोसी देश है जहां मोदी नहीं गए. 2015 में मोदी को यहां से होकर जाना था, लेकिन राजनीतिक उथल-पुथल के चलते उनका दौरा टल गया.
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज जरूर 2014 और 2015 में यहां गईं. 2016 में मालदीव्स के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यमीन भारत आए और दोनों देशों के बीच रक्षा, कराधान, पर्यटन और स्पेस रिसर्च के क्षेत्र में समझौते हुए.
बीते सालों में मालदीव्स में चीन का दखल बढ़ा है. 2011 में माले में चीन ने अपना दूतावास खोला. दिसंबर 2017 में मालदीव ने बिना विपक्षी सांसदों की मौजूदगी के आधी रात में चीन के साथ विवादित 'फ्री ट्रेड अग्रीमेंट' (FTA) पारित किया. चीन का दक्षिण एशिया में मालदीव्स के अलावा केवल पाकिस्तान के साथ ही FTA है. यहां से मालदीव्स भारत के बजाए चीन के करीब गया.
भारत ने इस घटनाक्रम पर चिंता जाहिर की. इसके बाद तो दोनों देशों के संबंध और खराब हो गए. मालदीव्स ने बिना पूर्व अनुमति के भारतीय राजदूत से मिलने वाले अपने तीन स्थानीय काउंसिलर्स को सस्पेंड भी कर दिया. दोनों देशों के रिश्तों में ऐसा पहली बार देखने को मिला.
2- भूटान
भारत ने अपने इस हिमालयी पड़ोसी राष्ट्र की काफी मदद की है. कम संसाधनों वाले देशों में से एक भूटान में भारत ने टेलीकम्युनिकेशन और हाइड्रो-इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट के साथ ही अस्पताल, सड़कें और पुल बनाने में भी मदद की है. इस देश से भारत को कोई सिरदर्द नहीं मिला है.
नरेंद्र मोदी ने पीएम बनने के बाद पहला दौरा भूटान का ही किया था. इसके बाद भूटान के पीएम शेरिंग तोग्बे जनवरी 2015 में भारत आए.
हालांकि इस देश के साथ भारत के संबंध 2017 में अहम मोड़ पर आ गए जब भारत-चीन-भूटान की सीमा पर डोकलाम में तीनों सेनाओं के बीच विवाद हो गया. इस विवाद में पहले भूटान ने भारत को नजरअंदाज किया, जबकि भारत ने कहा था कि उसके सैनिक भूटानी सैनिकों की मदद करने डोकलाम में गए थे. यह चीन के अनुरूप बयान था, क्योंकि चीन कहता रहा है कि डोकलाम में भारत का कोई रोल नहीं बनता है. हालांकि, करीब तीन महीनों बाद दूसरे बयान में भूटान ने भारत को इस विवाद का हिस्सा माना था. यह कूटनीतिक तौर पर भारत के लिए राहत भरा कदम था.
3- म्यांमार
म्यांमार की दोस्ती के लिए भारत और चीन के बीच खींचातान देखने को मिलती रही है. म्यांमार में 50 लाख चीनी और करीब 4 लाख भारतीय मूल के लोग रहते हैं. सैन्य शासन के दौरान दुनिया भर में चीन ही म्यांमार का अकेला दोस्त रहा.
म्यांमार में कुल विदेशी निवेश का एक तिहाई चीन ने किया है. इसके अलावा म्यांमार-चीन का व्यापार म्यांमार-भारत के व्यापार से तीन गुना ज्यादा है. म्यांमार की कोशिश रही है कि वह दोनों देशों से अच्छे संबंध बनाए रखे.
हाल ही में म्यांमार और बांग्लादेश के बीच रोहिंग्या शरणार्थियों का विवाद देखने को मिला. म्यांमार में बसे रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ वहां की सेना ने आक्रामक अभियान चलाया, जिसकी दुनिया भर में निंदा हुई और इस देश पर प्रतिबंध भी लगे.
इस विवाद को सुलझाने में चीन ने बाजी मार ली और एक तीन सूत्रीय सुलह का फॉर्मूला दिया. मोदी ने सितंबर 2017 में म्यांमार की यात्रा की थी और भारत के पास इस विवाद को सुलझाकर अगुआ बनने का मौका था. लेकिन म्यांमार के नाराज होने के डर से भारत चुप्पी साधे रहा. दूसरी ओर एनडीए सरकार ने इसे धार्मिक रंग भी दे दिया.
बांग्लादेश ने भारत के इस रुख पर निराशा जाहिर की तो भारत ने इन शरणार्थियों के लिए मदद की मुहिम 'ऑपरेशन इंसानियत' चलाई, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. भारत न तो बांग्लादेश को साध पाया और न ही म्यांमार को.
4- बांग्लादेश
जुलाई 2014 में भारत और बांग्लादेश ने 'इंटरनेशनल ट्राइब्यूनल ऑफ द लॉ ऑफ द सी' के फैसले को माना और जल विवाद सुलझाया. जून 2015 में मोदी बांग्लादेश गए और दोनों देशों के बीच जमीनी सीमा समझौता हुआ और दोनों देशों के बीच बस सेवाएं शुरू करने पर भी सहमति बनी. अप्रैल 2017 में बांग्लादेशी पीएम शेख हसीना भारत आईं और भारत ने बांग्लादेश को रक्षा उपकरणों की खरीद के लिए अतिरिक्त 50 करोड़ डॉलर के साथ विकास कार्यों के लिए 4.5 अरब डॉलर की नई क्रेडिट लाइन की घोषणा की.
बांग्लादेश में बीते समय में आईएसआईएस और दूसरे आतंकी संगठनों का खतरा बढ़ा है. इससे दोनों देश आतंकरोधी रणनीति पर साथ खड़े नजर आए हैं. बांग्लादेश इस इलाके में भारत के 'बे ऑफ बंगाल इनीशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन' (BIMSTEC) और 'बांग्लादेश-भूटान-इंडिया-नेपाल' (BBIN) जैसे अभियानों का भी माध्यम बना है.
इन सबके बावजूद दोनों देशों के बीच तीस्ता जल समझौता नहीं हो सका है. दोनों देश इस पर राजी हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को इस पर आपत्ति हैं. बांग्लादेश में इस साल के अंत तक आम चुनाव होने हैं और शेख हसीना इसे लागू करवाना चाहेंगी.
बांग्लादेश ने रोहिंग्या शरणार्थियों के मुद्दे पर म्यांमार के खिलाफ खड़े नहीं होने पर भारत से नाराजगी जाहिर की. हालांकि भारत ने बाद में शरणार्थियों के लिए मदद मुहैया कराई.
5- श्रीलंका
श्रीलंका दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. हालांकि, भारत के इस पड़ोसी के भी हाल में चीन से संबंध प्रगाढ़ हुए हैं. इसकी वजह है कि जब पश्चिमी देशों ने श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे पर लिट्टे के साथ अंतिम संघर्ष में मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया, चीन ने उसे अरबों डॉलर का लोन देकर वहां निर्माण किया और श्रीलंका को वित्तीय मुश्किलों से उबारा.
हालांकि, श्रीलंका में मैत्रीपाला सिरिसेना के राष्ट्रपति बनने के बाद यह देश भारत के करीब आया है. सिरिसेना गद्दी संभालने के तुरंत बाद 2015 में भारत आए. मार्च 2015 में ही भारतीय पीएम 28 सालों बाद श्रीलंका जाने वाले पीएम बने और वहां की संसद को भी संबोधित किया. मई 2017 में मोदी फिर श्रीलंका गए.
मई 2017 में श्रीलंका के पीएम रानिल विक्रमसिंघे चीन के 'बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव' (BRI) सम्मेलन में हिस्सा लेने पहुंचे और उनके देश को 24 अरब डॉलर का अतिरिक्त लोन मिला. इसके बाद दिसंबर 2017 में श्रीलंका ने हंबनटोटा बंदरगाह को 99 साल के लिए चीन को लीज पर दे दिया. इस बंदरगाह का बीआरआई में अहम रोल हो सकता है. भारत की चिंताओं के बाद 2018 में श्रीलंका ने आश्वासन दिया कि इस पोर्ट का सैन्य गतिविधियों में इस्तेमाल नहीं होगा. इसके अलावा श्रीलंका की ओर से हंबनटोटा में भारतीयों को निवेश का न्योता भी दिया गया. ऐसा हुआ तो इससे भारत को चीन पर नजर रखने में आसानी होगी.
6- नेपाल
नेपाल के साथ भारत के रिश्ते अच्छे रहे हैं. पीएम मोदी 2014 में नेपाल गए और हाइड्रोपावर और इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए क्रेडिट लाइन 1 अरब डॉलर की. उनके दौरे पर पर्यटन, दवाई के क्षेत्र में समझौते हुए और जनकपुर-अयोध्या बस सेवा पर सहमति बनी जो मोदी के 2018 में हालिया दौरे पर शुरू भी हो गई.
2015 में भूकंप के बाद भारत ने नेपाल की मदद की और 75 करोड़ डॉलर की क्रेडिट लाइन की घोषणा की. इस तरह मोदी के आने के बाद दोनों देशों के बीच शुरुआती संबंध अच्छे रहे.
नेपाल में नए संविधान निर्माण के बाद तराई क्षेत्र में मधेशियों की उपेक्षा के बाद से दोनों देशों के संबंधों में खटास आई. विरोध कर रहे मधेशियों ने भारत से नेपाल जाने वाला व्यापारिक मार्ग बंद कर दिया. नेपाल ने भारत पर अघोषित आर्थिक नाकेबंदी का आरोप लगाया. मई 2016 में नेपाल ने राष्ट्रपति बिद्यादेवी भंडारी का दौरा रद्द कर अपने राजदूत को भी वापस बुलाया. यहां दोनों देशों के संबंध निम्नतर स्तर पर पहुंच गए थे.
इसके बाद मोदी इसी महीने नेपाल गए और वहां के मंदिर में पूजा की. वैसे नेपाल में लेफ्ट फ्रंट की जीत के बाद भारत के सामने चुनौती है कि वह नेपाल को चीन के करीब जाने से कैसे रोके. भारत को नेपाल की राजनीति में आए युवा राजनेताओं को भी साधना है. चीन इस मौके का फायदा उठाने की कोशिश में है. नेपाल भी चीन के 'बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव' (BRI) प्लान में शामिल है.
7- अफगानिस्तान
अगानिस्तान से संबंध सुधारने के मामले में भारत को सफलता मिली है. सितंबर 2014 में अशरफ गनी के राष्ट्रपति बनने के बाद वह अप्रैल 2015 में भारत आए. इसके बाद मोदी दिसंबर 2015 में अफगानिस्तान गए. भारत ने अफगानिस्तान को तालिबान से निपटने के लिए चीतल हेलिकॉप्टर दिए, वहां की संसद के निर्माण में मदद की, दिल की बीमारी से पीड़ित अफगानी बच्चों के लिए 50 लाख डॉलर का राहत कोष बनाया और 'इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशंस' (ICCR) स्कॉलरशिप को भी 2020 तक बढ़ाया.
जून 2016 में मोदी फिर अफगानिस्तान गए, इस दौरान भारत ने पड़ोसी देश के पुनर्निमाण के लिए 2 अरब डॉलर का लोन दिया. यह अफगानिस्तान ने पड़ोसी देशों की ओर से सबसे ज्यादा है. दोनों देशों ने ईरान के चाबहार पोर्ट से ट्रांसपोर्ट कनेक्टिविटी सुधारने की कोशिश की. पाकिस्तान व्यापार के लिए अपने यहां से रास्ता देने से इनकार करता रहा है. चाबहार के बाद ईरान से भी संपर्क की स्थिति बेहतर होगी.
अफगानिस्तान ने पाकिस्तान को धमकी भी दी थी कि अगर उसे वाघा-अटारी से भारत के साथ व्यापार करने नहीं दिया गया तो वह पाकिस्तान का सेंट्रल एशिया से संपर्क काट देगा. अफगानिस्तान के जरिए भारत सेंट्रल एशिया में सड़क और रेलमार्ग तक पहुंच बनाकर चीन-पाक के गठजोड़ के प्रभाव को कम करने की कोशिश में है. भारत ने अक्टूबर 2017 में चाबहार के जरिए अफगानिस्तान में गेहूं की खेप भी पहुंचाई.
इसके अलावा, भारत-अफगानिस्तान ने जून 2017 में 'एयर फ्रेट कॉरिडोर' लॉन्च किया और दिसंबर तक दूसरा कॉरिडोर भी लॉन्च कर दिया. यह दोनों देशों के बीच व्यापार के अलावा लोगों के आवागमन का भी माध्यम बनेगा. भारत लगातार अमेरिका के साथ मिलकर अफगानिस्तान में शांति लाने को भी प्रयासरत है.
8- पाकिस्तान
भारत और पाकिस्तान के संबंध 2008 मुंबई हमलों के बाद से ही खराब हैं. हालांकि पीएम मोदी ने इन संबंधों को सुधारने की भरपूर कोशिश की. पाक पीएम नवाज शरीफ मोदी के शपथ ग्रहण में भारत आए. इसके बाद दिसंबर 2015 में मोदी अफगानिस्तान से लौटते समय अचानक लाहौर जाकर पीएम नवाज शरीफ से मिले.
हालांकि, जनवरी 2016 में पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमले और आईएसआई को इसकी जांच के लिए देश में बुलाने से मोदी सरकार विवादों में घिर गई. सितंबर 2016 में जम्मू-कश्मीर के उड़ी सेक्टर में सेना के बेस पर हुए आतंकी हमले के बाद संबंध और खराब हो गए. दोनों देशों के बीच राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के स्तर की बातचीत भी बंद हो गई. दोनों देश एक-दूसरे पर सीजफायर उल्लंघन का आरोप लगाते रहे हैं.
उड़ी हमले के तुरंत बाद सितंबर 2016 में भारत ने पाकिस्तान की जमीन पर मौजूद आतंकी कैंपों पर सर्जिकल स्ट्राइक भी की. इसमें भारत ने करीब 40 आतंकियों को मारने का दावा किया. हालांकि, पाकिस्तान इससे इनकार करता रहा.
इस दौरान भारत की पाकिस्तान को अलग करने की रणनीति कुछ हद तक सफल रही. अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली सैन्य मदद रोकी तो हाफिज सईद के राजनीति में आने का भारत का विरोध रंग नहीं ला सका. पाकिस्तान को इस दौरान चीन, रूस और ईरान का साथ मिला.
पाकिस्तान इस बीच भारत के दोस्त रूस को अपनी ओर खींचने में सफल रहा. कई मसलों पर दोनों साथ आए. रूसी सेना ने पहली बार पाकिस्तानी सेना के साथ अभ्यास भी किया.
दोनों देशों के बीच संबंध अब भी खराब हैं. भारत दूसरे देशों के हस्तक्षेप का लगातार विरोध करता आया है. दोनों देशों के बीच क्रिकेट संबंध बहाल नहीं हो सके.
9- चीन
पाकिस्तान के अलावा चीन ही भारत की विदेश नीति का प्रमुख निर्धारक तत्व रहा है. चीन से ही भारत को पड़ोस और दुनिया भर में चुनौती मिलती रही है. चीन अपने 'बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव' (BRI) के जरिए भारत के पड़ोसी देशों में अहम निर्माण कर रहा है. भारत ने चीन के 'वन बेल्ट वन रोड' से जुड़ना स्वीकार नहीं किया, क्योंकि 'चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर' नामक यह प्रोजेक्ट पीओके से होकर जा रहा है.
भारत को चीन की इस कोशिश से अलग-थलग पड़ने और चीन से सहयोगी देशों से घिरने की चिंता है. चीन का पाकिस्तान के करीब जाना भी भारत के लिए चिंता की बात है. चीन की कोशिश है कि पाकिस्तान, नेपाल और मालदीव्स में वह अपनी मौजूदगी दर्ज कराए और भूटान के साथ संबंध सुधारने की कोशिश में है.
इन चार सालों के दौरान शी जिंनपिंग ने भारत का दौरा किया, मोदी ने हाल ही में चीन का अनौपचारिक दौरा किया. सीमा विवाद को लेकर डोकलाम में दोनों देशों के बीच तनाव बना रहा. दलाई लामा को लेकर भारत और चीन के रिश्ते बनते-बिगड़ते रहे. हाल ही में भारत ने चीन की आपत्ति पर दलाई लामा के एक कार्यक्रम को हिमाचल प्रदेश शिफ्ट किया था और उसमें केंद्रीय सरकार के अहम मंत्रियों ने हिस्सा भी नहीं लिया.
हालांकि, संयुक्त राष्ट्र में भारत को फिर से चीन के सामने मजबूर होना पड़ा. दिसंबर 2016 में भारत पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद के मुखिया मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करना चाहता था. यूएन में चीन के वीटो से यह नहीं हो सका.
चीन और भारत के बीच प्रतिद्वंद्विता में इनकी अर्थव्यवस्था का अहम रोल है. चीन की अर्थव्यवस्था भारत के मुकाबले पांच गुनी है, इसलिए पड़ोसी देशों की आर्थिक मदद करने के मामले में भारत उसकी बराबरी नहीं कर सकता है. ऐसे में उसे बेहतर कूटनीतिक रास्ते तलाशने होंगे.