भूटान के डोकलाम में भले ही भारत और चीन की सेना महीने भर से आमने-सामने डटी हुई है, लेकिन भारत स्थिति को शांत करने के लिए अपनी तरफ से कोशिश कर रहा है. माहौल को ठंडा करने के लिए कूटनीतिक रास्तों का इस्तेमाल किया जा रहा है. मंगलवार को संसद में विदेश मामलों की स्थाई समिति के सामने यह बात खुद विदेश सचिव एस जयशंकर ने सदस्यों को बताई. स्थाई समिति की बैठक 2 घंटे से ज्यादा चली और इसमें विस्तार से चीन के साथ तनातनी पर चर्चा हुई. इस समिति के अध्यक्ष कांग्रेस के नेता शशि थरूर हैं और राहुल गांधी भी इसके सदस्यों में से एक हैं.
मंगलवार की बैठक में सदस्यों ने विदेश सचिव से यह जानना चाहा कि आखिर डोकलाम में स्थिति क्या है और क्या चीन के साथ टकराव की स्थिति बन रही है. विदेश सचिव ने सदस्यों को विस्तार से मौके पर स्थिति के बारे में बताया और कहा कि टकराव जैसी स्थिति नहीं है लेकिन स्थिति को शांत करने के लिए कोशिश की जा रही है. विदेश सचिव ने कहा कि स्थिति उतनी खतरनाक नहीं है जितनी बताई जा रही है.
विदेश सचिव ने सदस्यों को बताया कि चीन पहले भी घुसपैठ की कोशिश करता रहा है लेकिन इस बार फर्क सिर्फ यह है कि चीन आक्रामक तेवर दिखा रहा है इस मुद्दे का मीडिया में जोर शोर से प्रचार कर रहा है.
बैठक में सदस्यों के सामने विदेश सचिव को कई सवालों का सामना करना पड़ा. राहुल गांधी ने पूछा कि क्या चीन भूटान पर इसलिए दबाव बना रहा है ताकि यह संदेश जाए कि वह भारत के भरोसे नहीं रह सकता? राहुल गांधी ने कश्मीर का मुद्दा भी उठाया. यह भी पूछा कि आखिर क्या वजह है कि परंपरागत रूप से भारत के मित्र रहे रूस ईरान और टर्की जैसे देश मजबूती से हमारे साथ नहीं खड़े हैं.
कुछ सदस्यों ने यह सवाल उठाया कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि अचानक चीन के साथ हमारे संबंध खराब होने लगे क्योंकि कुछ सालों पहले तक चीन से संबंध बेहतरी की ओर बढ़ रहे थे.
बैठक में सीपीआई के नेता मोहम्मद सलीम ने ममता बनर्जी के उस बयान का जिक्र किया जिसमें उन्होंने कहा था कि बंगाल में अशांति के पीछे भी चीन का हाथ हो सकता है. इस सवाल पर विदेश सचिव एस जयशंकर ने बैठक में मौजूद तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुगाता बोस से कहा कि इस तरह की बातों से स्थिति को सुधारने में मदद नहीं मिलती है.
विदेश सचिव ने सभी सदस्यों से कहा कि यह एक बेहद ही संवेदनशील मामला है और इस पर सबको एक स्वर में बोलना चाहिए. इस पर सभी सांसदों ने भरोसा दिलाया कि देश के मुद्दे पर सब लोग एक हैं और कहीं कोई राजनीतिक मतभेद नहीं है.