बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह समेत ज्यादातर नेता गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कराने पर आमादा हैं. लेकिन उम्मीदवार के लिए फैसला करने वाली पार्टी की सर्वोच्च नीति निर्धारक संस्था में नरेंद्र मोदी को बहुमत नहीं है.
जून की गोवा कार्यकारिणी में लालकृष्ण आडवाणी के पुरजोर विरोध के बावजूद नरेंद्र मोदी को केंद्रीय चुनाव अभियान समिति की कमान सौंपी गई थी. लेकिन अब उन्हें राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली के विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री उम्मीदवार प्रोजैक्ट किए जाने को लेकर पार्टी का अंतर्विरोध सतह पर दिख रहा है. हालांकि आडवाणी को मनाने की कोशिश में पार्टी के तमाम नेता जुड़े हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वाकई 13 सिंतबर को संभावित बीजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक में मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने का फैसला हो पाएगा?
मोदी को औपचारिक रुप से पीएम प्रोजैक्ट करने की अटकलें जुलाई महीने से ही लगाई जा रही है, लेकिन सबकुछ तय होने के बावजूद आखिर देरी की वजह क्या है?
सूत्रों की माने तो जिस तरह बीजेपी के मामले में पूरी तरह से संघ का दखल प्रचारित किया जा रहा है, दरअसल वह पार्टी के मोदी समर्थक धड़ों की ही कोशिश है ताकि विरोधी खेमे पर दबाव बनाया जा सके. लेकिन नितिन गडकरी को दूसरी बार अध्यक्ष बनवाने के मसले पर हाथ जला चुका संघ परिवार ऐसा कुछ नहीं करना चाहता कि आखिर में सारा ठीकरा उसके सिर फूटे. गडकरी प्रकरण को संघ की हार और आडवाणी खेमे की जीत के तौर पर प्रचारित किया गया था. ऐसे में मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित कराने के लिए पार्टी के सामने अब तीन विकल्प ही दिखते हैं. जबकि संघ के सामने दो ही विकल्प है या तो वह बीजेपी को सीधा मोदी के नाम का एलान करने का फरमान जारी कर दे या फिर निर्णय पार्टी के संसदीय बोर्ड पर छोड़ दे.
मोदी समर्थक खेमा और खास तौर से राजनाथ सिंह की कोशिश है कि इस मामले में संघ सीधा फरमान जारी कर दे, लेकिन अपनी पंसद जाहिर करने के बाद भी संघ फिलहाल वीटो लगाने से परहेज कर रहा है. ऐसे परिस्थिति में बीजेपी का मोदी समर्थक धड़ा उन्हें पीएम उम्मीदवार बनाने पर अड़ता है तो जाहिर है कि संसदीय बोर्ड में आम सहमति बिना संघ के फरमान के संभव नहीं है. अगर फैसला बोर्ड पर ही छोड़ा गया तो फिलहाल की स्थिति में आडवाणी खेमा आम सहमति पर राजी होता नहीं दिख रहा है.
अब सवाल है कि अगर मोदी की उम्मीदवारी पर संसदीय बोर्ड में वोटिंग की नौबत आती है तो क्या उन्हें बहुमत मिल सकता है? संसदीय बोर्ड में खुद मोदी को मिलाकर कुल 12 सदस्य हैं. अगर उनके नाम पर वोटिंग हुई तो वे वोट नहीं कर पाएंगे, जबकि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सक्रिय नहीं है और अस्वस्थता की वजह से कभी बोर्ड की मीटिंग में शामिल नहीं होते. ऐसे में बचते हैं कुल 10 सदस्य. जिनमें से आडवाणी, सुषमा स्वराज, मुरली मनोहर जोशी, नितिन गडकरी और अनंत कुमार के बारे में माना जाता है कि ये मोदी के खिलाफ वोट करेंगे. यानी 10 में से 5 वोट मोदी के खिलाफ जा सकते हैं.
अब अगर मोदी समर्थकों की लिस्ट देखें तो खुद अध्यक्ष राजनाथ सिंह, वेंकैया नायडू, अरुण जेटली और थावरचंद गहलोत हैं. यानी कुल चार वोट मोदी के पक्ष में पड़ेंगे. अब बचा एक वोट संगठन मंत्री रामलाल का, जिन्हें संसदीय बोर्ड में इसलिए जगह मिली हैं क्योंकि इस पद पर बैठने वाला पूर्णकालिक प्रचारक ही होता है और उन्हें बीजेपी में संघ का दूत माना जाता है. ऐसे में उनका वोट सीधे संघ का वोट माना जाएगा. लेकिन विशेष परिस्थिति में रामलाल को भी वोटिंग करने दिया जाता है तो भी मुकाबली बराबरी पर जाकर अटक जाता है. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि मोदी की उम्मीदवारी के लिए बीजेपी और संघ किस प्रक्रिया को अपनाता है.