नरेंद्र मोदी जबसे प्रधानमंत्री बने हैं, तब से बदलाव की बयार सबको दिख रही है. मंत्रालयों और सचिवालय के अफसरों के कामकाज का तरीका बदल गया है. ये बदलाव केंद्र सरकार के दफ्तरों में नजर आ रहा है, देश ही नहीं, विदेश में भी दिख रहा है.
राष्ट्रभाषा की गौरव के लिए शुरू किया काम
26 मई की शाम नरेंद्र मोदी राष्ट्रभाषा हिंदी में प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे थे और सारी दुनिया टेलीविजन पर ये नजारा देख रही थी. तब किसी को ये अंदाजा नहीं था कि अपनी राष्ट्रभाषा के गौरव के लिए नरेंद्र मोदी पूरा इतिहास ही पलट देंगे. खबरों की मानें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब दुनिया में जहां कहीं भी जाएंगे सिर्फ हिंदी में बात करेंगे. सितंबर में नरेंद्र मोदी अमेरिका जाएंगे तो वहां के राष्ट्रपति बराक ओबामा से हिंदी में बात करेंगे. अपनी राष्ट्रभाषा के गौरव से जुड़े मोदी के इस फैसले पर तो उनके विरोधी भी मुग्ध हो गए.
विदेश में भी नहीं छोड़ेंगे अपनी हिंदी भाषा
ग्लोबलाइजेशन का जमाना है, अंग्रेजी को जहां संपर्क भाषा के तौर पर बनाए रखने पर जोर दिया जा रहा है, उस माहौल में नरेंद्र मोदी ने अपनी राष्ट्रभाषा को गौरव दिलाने की ठानी है. मोदी न सिर्फ विदेश में जाकर हिंदी बोलेंगे, बल्कि विदेशी मेहमान भारत आए तो उनसे भी बातचीत हिंदी में ही करेंगे. एक दूसरे तक भाषा का भाव पहुंचाने का काम दुभाषिया करेगा.
नरेंद्र मोदी ने जब सार्क राष्ट्राध्यक्षों से मुलाकात की तो उनसे भी बातचीत हिंदी में ही की. श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंद्रा राजपक्षे मोदी से मुलाकात के दौरान अंग्रेजी में ही बोल रहे थे, लेकिन मोदी ने अपने जवाब हिंदी में ही दिए, जिसे दुभाषिए ने राजपक्षे को समझाया. ओमान के सुल्तान के विशेष दूत के लिए भी उन्होंने यही प्रोटोकॉल अपनाया. अब इस परंपरा को नरेंद्र मोदी आगे बढ़ाने में जुट गए हैं. प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने के साथ ही नरेंद्र मोदी ने हिंदी के लिए वो कुछ करना शुरू कर दिया, जिसके बारे में कभी किसी ने सोचा भी नहीं था. कंप्यूटर में हिंदी फॉन्ट पड़ गए. इर्द-गिर्द सब कुछ हिंदीमय होने लगा.
अटल बिहारी वाजपेयी ने भी हिंदी को दी थी अहमियत
आपको बता दें कि अटल बिहारी वाजपेयी ने भी कुछ ऐसा ही किया था. 1977 में जनता पार्टी की सरकार के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी जब विदेश मंत्री थे तो उन्होंने संयुक्त राष्ट्रसंघ में हिंदी में भाषण देकर सारी दुनिया को चौंका दिया था. सितंबर 2000 में वाजपेयी प्रधानमंत्री बनकर अमेरिका दौरे पर गए और एक बार फिर उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ को हिंदी में संबोधित किया. अब ये करिश्मा भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करने वाले हैं.
सितंबर में मोदी अमेरिका दौरे पर जाएंगे. नवंबर 2010 में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा जब भारत पहुंचे थे तो संसद में उन्होंने जोरदार तरीके से जयहिंद बोला था. कम से कम एक हिंदी शब्द का मतलब ओबामा को मालूम था. अब सितंबर में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी मुलाकात होगी, तब बराक ओबामा भी हिंदी और हिंदुस्तान के रिश्ते से अच्छी तरह रू-ब-रू होंगे.
नरेंद्र मोदी के हिंदी प्रेम से विपक्ष भी मुग्ध
नरेंद्र मोदी के इस हिंदी प्रेम का असर दूर तक हुआ. उनके मंत्रिमंडल के मंत्रियों ने हिंदी को अपनाया तो असर विपक्ष पर भी पड़ा. यही वजह है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हिंदी में शपथ ली. लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खडगे ने भी हिंदी में ही शपथ ली.
कार्य संस्कृति बदलने की मुहिम
इस बदलाव के अलाव सबकी नजर मोदी के गुजरात मॉडल की तरह और मॉडल पर है. देश को गुजरात मॉडल नरेंद्र मोदी पहले ही दिखा चुके हैं और अब बारी पूरे देश की है. मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद कार्य संस्कृति बदलने की मुहिम चला दी. मंत्रियों को सौ दिन का एजेंडा बनाने और उस पर अमल करने का काम सौंप दिया. मोदी ने नौकरशाही की लगाम भी अपने हाथों में ले ली. अफसरों से कह दिया कि मेहनत कीजिए, आइडिया लाइए, जब जी चाहे मिलिए, बात कीजिए. दरवाजे खुले हैं.
प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने अपने पहले भाषण में कहा था, 'अच्छा करने की मंशा से, निष्ठा से प्रयास किया तो देश कभी नाकाम नहीं रखेगा. भारत की जनता का विश्वास टूटना नहीं चाहिए. कांग्रेस से तो जनता 1967 में ही विमुख होने लगी थी, लेकिन दूसरों ने और भी ज्यादा निराश किया. हमें इसका ध्यान रखना होगा.'
भाई भतीजावाद नहीं चलेगा
ये बदलते भारत के बदलते इतिहास की बानगी थी. प्रधानमंत्री बनने के साथ ही नरेंद्र मोदी ने ये साफ कर दिया कि वो अपने और पार्टी के लिए एक नया रास्ता बनाने के काम में लग गए हैं. वो पिटी-पिटाई लीक पर चलने वाले नहीं हैं. नई लकीर खुद खींचेंगे. और इसी दिशा में उन्होंने सांसदों से कह दिया कि भाई भतीजावाद नहीं चलेगा. कोई सांसद-मंत्री न तो अपने रिश्तेदारों को ठेका देगा या दिलाएगा. बल्कि सांसद प्रतिनिधि रखते हुए भी ध्यान दे कि वो उनका रिश्तेदार न हो.
ब्यूरोक्रेसी को अपने कंट्रोल में लिया
मंत्रियों से भी मोदी ने कह दिया कि सौ दिन का एजेंडा बनाकर काम करें. तो अपने बारे में भी कहा कि पांच साल बात वो जनता को अपनी रिपोर्ट सौंपेंगे.
मोदी जानते हैं कि ब्यूरोक्रेसी को भरोसे में लिए बिना बात बनेगी नहीं. लिहाजा उन्होंने तमाम विभागों के सचिव स्तर के 77 अधिकारियों के साथ बैठक की. ढाई घंटे तक चली इस बैठक में मोदी ने अधिकारियों की सुनी तो उन्हें बदले हुए माहौल में काम करने का मंत्र भी दिया.
नरेंद्र मोदी ने न सिर्फ ब्यूरोक्रेसी को अपने कंट्रोल में लिया है, बल्कि 17 मंत्रालयों को सात मंत्रालयों में मिलाकर अनोखा करिश्मा दिखाया है. मोदी ने विदेश मंत्रालय के साथ ही प्रवासी भारतीय मंत्रालय को जोड़ा और जिम्मेदारी सुषमा स्वराज को सौंपी. वित्त मंत्रालय के साथ कंपनी मंत्रालय को जोड़कर जिम्मेदारी अरुण जेटली को सौंपी. मोदी ने सड़क परिवहन, राजमार्ग और जहाजरानी को एक साथ मिलाकर नितिन गडकरी को इसका जिम्मा सौंपा. ऊर्जा-कोयला-अक्षय ऊर्जा को एक साथ लाकर स्वतंत्र प्रभार वाले पीयूष गोयल को इसका भार सौंपा गया है. मोदी ने शहरी विकास, आवास एवं गरीबी उन्मूलन मंत्रालय को एक छत के नीचे लाकर एम वेंकेया नायडू को इसका मंत्री बनाया.
मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान विकास और गुड गवर्नेंस का अपना एजेंडा रखा था. प्रधानमंत्री बनने के बाद वो उसी पर चल रहे है. उनका मंत्र ही है- मैक्सिमम गवर्नेंस, मिनिमम गवर्नमेंट.