चीन और म्यांमार दौरे के आखिरी दिन गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत लौटने से पहले म्यांमार के यांगून शहर में बने बहादुर शाह जफर की मजार पर जाएंगे. आपको बता दें कि मुगल शासन के अंतिम बादशाह बहादुर शाह जफर ने 1857 के गदर में हिस्सा लिया था और ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह किया था. अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार करके म्यांमार भेज दिया था जिसे उस समय बर्मा कहा जाता था.
लंबे समय तक इस बात को लेकर विवाद चलता रहा कि बहादुर शाह जफर की मौत असल में बर्मा में किस जगह पर हुई थी. लेकिन आखिरकार 1994 में यांगून शहर में उनकी मजार बनाई गई. उनके मजार को भारत लाने की मांग भी लंबे समय से होती रही है. 2013 में विपक्ष के नेता के तौर पर सुषमा स्वराज ने यह मांग रखी थी कि बहादुर शाह जफर की मजार को भारत वापस लाया जाए.
यांगून में मजार बनने के बाद म्यांमार के दौरे पर जाने वाले लगभग हर भारतीय महत्वपूर्ण व्यक्ति ने वहां जाकर श्रद्धांजलि जरुर दी है. मोदी से पहले तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, विदेश मंत्री जसवंत सिंह और सलमान खुर्शीद सभी भारतीय नेता बहादुर शाह जफर की मजार पर जाकर श्रद्धा सुमन अर्पित कर चुके हैं.
लेकिन क्या आपको पता है कि नरेंद्र मोदी ने एक बार बहादुर शाह जफर की तुलना पूर्व प्रधानमंत्री और कांग्रेस नेता नरसिम्हा राव से क्यों की थी?
लोकसभा चुनाव के समय प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर प्रचार करते हुए नरेंद्र मोदी ने 1 मई 2014 को आंध्र प्रदेश के गुंटूर में एक चुनावी सभा में बहादुर शाह जफर की तुलना पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से की थी. मकसद था लोगों को यह समझाना कि कांग्रेस में गांधी नेहरु परिवार के अलावा किसी और की कद्र नहीं है.
मोदी ने चुनावी सभा में कहा था कि बहादुर शाह जफर ने हिंदुस्तान की आजादी की जंग में हिस्सा लिया था. ठीक वैसे ही जैसे आंध्र प्रदेश के नरसिम्हा राव ने देश को आर्थिक आजादी दिलाने की जंग लड़ी थी. जिस तरह से अंग्रेजों ने बहादुर शाह जफर को दिल्ली में 2 गज जमीन नहीं दी वैसे ही मां और बेटे की सरकार ने नरसिम्हा राव के निधन के बाद उन्हें भी दिल्ली में 2 गज जमीन मुहैया नहीं होने दिया. दरअसल नरसिम्हा राव के परिवार ने मांग की थी कि दिल्ली में उनका मेमोरियल बनाया जाए.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बहादुर शाह जफर की मजार पर जाना खास इसलिए है क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मुगल शासन काल को भारत की गुलामी का हिस्सा मानता रहा है.