नेतृत्व कौन करे पार्टी का, देश का? इस सवाल का जवाब नेतृत्व को देने की आवश्यकता नहीं. जवाब तो जनता ही देती है. लग रहा था कि अभी की सरकार के कुकांडों से त्रस्त जनता भाजपा को सत्ता थाल में सजा कर सौंपेगी. तभी तो भाजपा के अन्दर ही घमासान मच गया है.
जिस राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अगले चुनाव की रणनीतियों पर बहस होनी थी, वहां बहस का केंद्र नरेंद्र मोदी हैं. कांग्रेस ने चुटकी ले ली कि मोदी के नाम से भाजपा के नेताओं को ही बुखार आ जाता है, देश का क्या होगा?
ये मौका क्यों? मोदी को देश स्वीकारेगा या नहीं ये चुनाव में पता चलेगा पर भाजपा में एक धड़े को उन्हें स्वीकारने में आपत्ति क्यों होनी चाहिए? राजनीति से विश्वास का रिश्ता कब का टूट चुका है पर क्या शंका, षड्यंत्र, अनास्था के बीच उभरे इस नाम पर जब देश भर से मांग हो रही है तो भाजपा खुद क्यों ठिठक रही है. और अगर विकल्प हों तो कुछ समझ में आता भी है. मोदी एक राष्ट्रीय व्यक्तित्व के रूप में उभरे हैं. बहुत लोग मानते हैं कि 2002 की उनकी विफलता उन्हें अयोग्य बनाती है, पर उसके बाद के विकास के आंकड़े मोदी के पक्ष में खड़े हैं.
पूरे देश को गुजरात बनाने की बात कहने वाले नरेंद्र मोदी पर एक के बाद एक ना जाने कितने शब्द कहे गए. शंका यह कि मोदी पूरे देश में दंगा कराना चाहते हैं. पर उसके बाद में दंगों के लिए बदनाम गुजरात में भी दंगे नहीं हुए. गुजरात में विकास की कहानी कई बार, कई मंचों से सुनाई गई और अभी भी सुनाई जा रही है. तो क्या पूरे देश को गुजरात बनाने की बात का मतलब विकास से हो, ऐसा नहीं हो सकता?
जो अंध आलोचना मोदी की इस देश में होती है, उस से मोदी के समर्थक दुखी भले हों, मोदी नहीं. वह जानते हैं जितने तीर उनपर छोड़े जाएंगे, उन्हें उतना ही तीव्र समर्थन मिलेगा. क्योंकि जनता की सोच और आलोचकों की सोच में बहुत फर्क है. और मोदी अपने आपको निशाने पर रखते हैं.
मुख्यमंत्रियों के आंतरिक सुरक्षा सम्मेलन में नरेंद्र मोदी ने भरे सभागार में मंच से सीधे प्रधानमंत्री पर खुद को जेल में डालने की साजिश का आरोप लगाकर सभी को सन्न कर दिया था. वह चाहते हैं कि उनकी छवि अकेले शेर की हो, जो वार पर वार सहता है.
मोदी परिवर्तन का वादा नहीं करते. वह तरीके बताते हैं, उदाहरण दिखाते हैं. सरल भाषा में बात करते हैं और अक्खड़ छवि दर्शाते हैं. यह सच लोगों को पचे नहीं पर सच है. मोदी को अभूतपूर्व समर्थन मिल रहा है, और अगर उन्हें नेता घोषित कर दिया जाए तो भाजपा को उसका फायदा मिलेगा. उन्हें नेता नहीं घोषित करने से घटक दलों को. मोदी से नुकसान भी होगा, और फायदा भी. पर भाजपा को फायदा ही फायदा है.
पर भाजपा खुले मंच से इस बात को स्वीकार नहीं करना चाहती. गोवा की उमस और बूंदाबांदी के बीच भाजपा को अपना रास्ता तय करना होगा. मोदी कौन सा चमत्कार करेंगे, यह कोई नहीं जानता. पर मोदी के बिना भाजपा को चमत्कार की ज़रुरत होगी.