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'भूमि युद्ध' में सरकार के खि‍लाफ अन्ना और विपक्ष, शिवसेना और अकाली दल के तेवर तल्ख

बजट सत्र के शुरू होते ही मोदी सरकार भूमि अधि‍ग्रहण बिल को लेकर विपक्ष के निशाने पर है. मंगलवार को केंद्र सरकार ने लोकसभा में बिल पेश किया तो सदन से सड़क तक हंगामा मच गया. रही सही कसर जंतर-मंतर पर अन्ना हजारे ने पूरी कर दी. अन्ना ने साफ किया वह किसानों के हित का हनन होने नहीं देंगे.

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बिल के विरोध में अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल का आंदोलन
बिल के विरोध में अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल का आंदोलन

बजट सत्र के शुरू होते ही मोदी सरकार भूमि अधि‍ग्रहण बिल को लेकर विपक्ष के निशाने पर है. मंगलवार को केंद्र सरकार ने लोकसभा में बिल पेश किया तो सदन से सड़क तक हंगामा मच गया. रही सही कसर जंतर-मंतर पर अन्ना हजारे ने पूरी कर दी. अन्ना ने साफ किया वह किसानों के हित का हनन होने नहीं देंगे.

मंगलवार शाम ढलते-ढलते दिल्ली के सीएम अ‍रविंद केजवरील भी अन्ना के साथ आंदोलन के मंच पर आ गए. सरकार के अंदर भी इस बिल को लेकर खींचतान देखने को मिली. कुल मिलकार भूमि युद्द में अन्ना, विपक्ष और सहयोगियों के आक्रमण से मोदी सरकार थर्रा उठी है. एनडीए की बैठक में सहयोगी शिवसेना और अकाली दल ने साफ कर दिया है कि वह अधिग्रहण से पहले किसानों की सहमति को प्राथमिकता मानते हैं.

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स्थिति स्पष्ट है. भूमि अधिग्रहण बिल पर मोदी सरकार एक छोर पर अकेली है तो दूसरी छोर अन्ना , विपक्ष, किसान और खुद सरकार के कुछ सहयोगी. मंगलवार को बिल पर बवाल यही नहीं रुका. झारखंड, बिहार समेत कई राज्यों में इसके विरोध में किसानों ने प्रदर्शन किया. और जाहिर तौर पर बिल पर यह बवाल अभी लंबा चलेगा!

शिवसेना ने किया विरोध
भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर एनडीए सरकार के भीतर से ही विरोध के स्वर उठने लगे हैं. उसकी महत्वपूर्ण सहयोगी शिवसेना ने मौजूदा स्वरूप में विधेयक का विरोध किया है. हालांकि सरकार ने संकेत दिए हैं कि किसानों की चिंताओं पर गौर करते हुए विधेयक में संशोधन किए जा सकते हैं.

कृषि मंत्री बीरेन्द्र सिंह द्वारा मंगलवार को लोकसभा में लगभग समूचे विपक्ष के वाकआउट के बीच भूमि अधिग्रहण विधेयक को पेश किए जाने के साथ ही सरकार के भीतर और बाहर गहन विचार विमर्श की प्रक्रिया दिनभर जारी रही. इस विधेयक को लेकर राजधानी दिल्ली में दिनभर घटनाएं आकार लेती रहीं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने विधेयक के विरोध में सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के आंदोलन में शिरकत की, वहीं किसानों का कहना है कि विधेयक में परियोजनाओं के लिए जमीन अधिग्रहण करने से पूर्व 70 फीसदी जमीन मालिकों की सहमति का प्रावधान होना चाहिए और साथ ही इसके सामाजिक प्रभाव के आकलन को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए.

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क्या कहती है सरकार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कई मंत्रियों ने इस बात के पर्याप्त संकेत दिए कि किसानों की चिंताओं का संज्ञान लेने के लिए कार्रवाई की जा रही है और विधेयक में बदलाव किए जा सकते हैं. बीजेपी संसदीय दल की बैठक में मोदी ने यह स्पष्ट कर दिया कि कानून पर कदम पीछे नहीं खींचे जाएंगे, लेकिन सरकार किसानों के हितों में सुझावों पर गौर करने को तैयार है.

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राज्यसभा को बताया कि सरकार कोई रास्ता निकालने के लिए सभी पक्षों से विचार विमर्श की इच्छुक है. उधर, गृह मंत्री राजनाथ सिंह से मिलने वाले किसानों के प्रतिनिधियों ने दावा किया कि सरकार ने कानून बनाते समय उनकी चिंताओं को ध्यान में रखने का आश्वासन दिया है. लेकिन बीजेपी की सबसे पुरानी सहयोगी और लोकसभा में 18 सांसदों के साथ एनडीए की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी शिवसेना सार्वजनिक रूप से नए विधेयक के विरोध में उतर आई. राज्यसभा में उसके तीन सांसद हैं.

संसदीय मामलों के मंत्री एम वेंकैया नायडू द्वारा बुलाई गई एनडीए सांसदों की बैठक में शिवसेना के तीन सांसदों के शामिल होने के बीच पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे ने एक बयान में कहा, 'शिवसेना द्वारा ऐसे किसी कानून का समर्थन करने का कोई सवाल ही नहीं उठता, जो किसानों के हितों के खिलाफ हो.' इस बैठक में बीरेन्द्र सिंह भी मौजूद थे.

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'दुष्प्रचार कर रही है विपक्ष'
ठाकरे ने कहा कि शिवसेना किसानों का गला दबाने का 'पाप' नहीं कर सकती. उन्होंने साथ ही बीजेपी से कहा कि ये किसान ही थे जो उसे सत्ता में लेकर आए हैं. बैठक में नायडू ने एनडीए सांसदों को नए कानून के प्रावधानों के बारे में जानकारी दी और उनकी कुछ गलतफहमियों को दूर करते हुए कहा कि इस संबंध में विपक्ष द्वारा दुष्प्रचार अभियान चलाया जा रहा है. इस सारी कवायद का मकसद कानून को अधिक प्रभावी बनाने के लिए सांसदों से सुझाव और प्रतिक्रिया हासिल करना था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टी सांसदों से कहा कि वे इस मुद्दे को लेकर विपक्षी दलों द्वारा फैलाए जा रहे झूठ को बेनकाब करें, वहीं राजनाथ सिंह ने किसान संगठनों के साथ उनकी चिंताओं पर विचार विमर्श का सिलसिला जारी रखा. बैठक के बाद किसानों की शीर्ष संस्था के एक प्रतिनिधि ने दावा किया कि सरकार ने आश्वासन दिया है कि वह भूमि अधिग्रहण कानून को अमली जामा पहनाते समय उनकी चिंताओं को ध्यान में रखेगी.

नायडू ने बाद में बताया कि एनडीए के कई सांसदों ने सुझाव दिया कि ऐसी जमीन जहां परियोजनाओं को मंजूरी दी गई थी, लेकिन अधिग्रहण के 20 साल बाद भी कुछ नहीं हुआ, उसे किसानों को लौटा दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि भूमि अध्यादेश इसलिए लाया गया था क्योंकि 32 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने कानून में संशोधन की मांग की थी क्योंकि कई ढांचागत विकास परियोजनाएं इसके चलते अटकी पड़ी थीं.

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अकाली दल के सांसद सुखदेव सिंह ढींढसा ने कहा कि कुछ गलतफहमियां थीं, जिन्हें नायडू ने दूर कर दिया. वे पार्टी के भीतर विचार विमर्श करेंगे कि इसे समर्थन दिया जाए या नहीं.

-इनपुट भाषा से

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