नरेंद्र मोदी के एक नारे से ऐसा सियासी तूफान मचा कि उन्हें सफाई के लिए सबूतों के साथ हाजिर होना पड़ा. ओबामा की चापलूसी के आरोपों से घिरे नरेंद्र मोदी की ओर 9 साल पुराना एक वीडियो जारी किया गया. इस वीडियो के जरिए ये साबित करने की कोशिश हुई की मोदी ने जो नारा दिया वो ओबामा का नहीं बल्कि उनका अपना था.
'यस वी कैन, यस विल डू' नरेंद्र मोदी की युवाओं में जोश भरने की इस कोशिश पर छूटते ही तोहमतों की बौछार हो गयी. नारे में नकल नजर आने लगी. हैदराबाद में दिये गए इस नारे का रिश्ता सात समंदर पार अमेरिका से जुड़ने लगा. याद आया कि पांच साल पहले यही नारा दे कर तो ओबामा दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क की सबसे ऊंची गद्दी हासिल कर ली थी.
अगर बोलने के अंदाज को छोड़ दें, तो दोनो बयानों खास फर्क दिखा नहीं. तो क्या नरेंद्र मोदी चल पड़े है ओबामा की चाल. सवाल लाजमी था. ये भी पूछा जाने लगा कि मोदी ने बीजेपी की चुनावी मिशन की औपचारिक शुरूआत ही उधार के नारे से क्यों की.
क्या ये उनकी अमेरिका परस्त नीति का संकेत है? जिस अमेरिका ने हमेशा मोदी से किनारा किया, उन्हें अपनी सरहदों में दाखिल तक नहीं होने दिया, क्या उसे खुश करने की कोशिश कर रहे हैं नरेंद्र मोदी.
सवालों की फेहरिश्त जब लंबी होने लगी तो मोदी के पिटारे से इन तमाम सवालों का एक काट उछल आया. दावा किया कि ये नारा तो शुद्ध देसी है, खालिस गुजराती. तब का है जब ओबामा अमेरिकी राजनीति में शायद अपना वजूद ही तलाश रहे होंगे. साल 2004 का एक वीडियो जारी किया जिसमें वो मोदी गुजरात कैन और गुजरात विल का नारा देते नजर आए.
इस वीडियों की सच्चाई पर सवाल न उठे इसलिए मोदी के भाषण के साथ ही तब के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण का अंश भी जारी किया गया. जाहिर है जो मोदी रोज नए नए जुमले गढ़ते हों वो भला नारे में नकल के आरोप कैसे जज्ब कर जाते. अब देखना ये होगा कि सियासी मैदान में मोदी की ये सफाई कितनी कारगर रहती है.