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HIV-एड्स की रोकथाम के लिए कंडोम नहीं, इंडियन कल्चर का प्रचार जरूरी: स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन का कहना है कि एचआईवी-एड्स से पार पाने के लिए सरकार को कंडोम के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के बजाए भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार पर जोर देना चाहिए.

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Dr. Harsh Vardhan
Dr. Harsh Vardhan

असुरक्षित यौन संबंधों से होने वाली बीमारी एचआईवी एड्स भारत के लिए बड़ी चुनौती है, लेकिन इससे निपटने का मोदी सरकार का प्लान थोड़ा अलग है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन का कहना है कि इस बीमारी से पार पाने के लिए सरकार को कंडोम के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के बजाय भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार पर जोर देना चाहिए.

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अमेरिकी अखबार 'द न्यूयॉर्क टाइम्स' को दिए इंटरव्यू में स्वास्थ्य मंत्री ने यह बात कहकर संभावित विवाद को जन्म दे दिया है. उन्होंने कहा कि वह चाहेंगे कि एचआईवी-एड्स पर काबू पाने के लिए 'पति-पत्नी के बीच ईमानदार शारीरिक संबंधों' को बढ़ावा दिया जाए, जो 'भारतीय संस्कृति का हिस्सा है.'

'कंडोम के प्रचार से जाता है गलत संदेश'
बीमारी पर बात करते करते स्वास्थ्य मंत्री वैज्ञानिकता का दामन छोड़ 'नैतिकता' का पाठ पढ़ाने लगे. अमेरिकी अखबार से हर्षवर्धन ने कहा, 'कंडोम के इस्तेमाल का प्रचार करने से गलत संदेश जाता है और इसके इस्तेमाल से बनाया जाने वाला हर तरह का संबंध जायज लगने लगता है. इसलिए एड्स कैंपेन का जोर सिर्फ कंडोम के इस्तेमाल पर नहीं होना चाहिए.' याद रहे कि हर्षवर्धन खुद ईएनटी (नाक-कान-गला) के डॉक्टर हैं और दिल्ली में प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं.

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लेकिन मंत्री जी, प्रचार से नतीजे तो अच्छे मिले हैं!
अमेरिकी अखबार के मुताबिक यह टेलीफोनिक इंटरव्यू पिछले हफ्ते किया गया था. गौरतलब है कि 1986 में भारत में एचआईवी-एड्स का पहला मामला सामने आया था. एक समय तो यह डर था कि कहीं यह अफ्रीका की तरह यहां भी महामारी का रूप न ले ले. 1992 में इससे निपटने के लिए नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन बनाई गई. इस संस्था ने कंडोम और सुरक्षित सुइयों के इस्तेमाल के लिए काफी प्रचार किया और इसका सार्थक असर भी देखने को मिला.

21 लाख लोग हैं HIV की चपेट में
संस्था के प्रमुख सुब्बाराज कहते हैं कि हाई रिस्क समूहों में कंडोम के इस्तेमाल का प्रचार रोकना ठीक नहीं होगा. उन्होंने कहा, 'अतिसंवेदनशील समूह के लोगों को हम नैतिकता का पाठ नहीं पढ़ा सकते.'

भारत में एड्स रोकथाम के काम में सरकार और संयुक्त राष्ट्र इकाइयों से पूरा समर्थन मिलता है. नाको की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2000 से 2011 तक नए एचआईवी इंफेक्शन के मामलों में 57 फीसदी की कमी आई है. हालांकि एचआईवी संक्रमित लोगों की संख्या के लिहाज से भारत अब भी दुनिया में तीसरे नंबर पर है. यहां करीब 21 लाख लोग एचआईवी की चपेट में हैं.

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