पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर पर एक ऐसी कार के इस्तेमाल का आरोप लगा है जिसे वन विभाग के भुवनेश्वर स्टाफ के लिए खरीदा गया था. सवाल उठ रहे हैं कि जब इस महंगी कार को ओडिशा विभाग के लिए मंगवाया गया था तो भला ये नई दिल्ली कैसे पहुंची.
क्या है मामला?
इस साल फरवरी में पर्यावरण और वन मंत्री ने ओडिशा में स्टील ऑथोरिटी ऑफ इंडिया लिमिटिड(सेल) को बरसुआ आइरन माइन्स के लिए फॉरेस्ट क्लीयरेंस दी थी. उस वक्त मंत्रालय ने कंपनी से एक कार की मांग की थी, जिसमें बैठकर भुवनेश्वर स्टाफ फील्ड का इंस्पेक्शन कर सके.
ऑफीशियल रिकॉर्ड से पता चला है कि चार महीने के अंदर सेल ने मंत्रालय के लिए 20 लाख रुपये की टोयोटा फोर्च्यूनर कार खरीदी लेकिन इस एसयूवी को फील्ड के अधिकारियों को नहीं भेजा गया. इस कार की डिलीवरी नई दिल्ली में की गई, जहां फिलहाल वन और पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर इसका इस्तेमाल कर रहे हैं.
इससे पहले भी दी गई हैं कारें
मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालयों या वन विभाग के अधिकारियों की तरफ से इस तरह कार मांगने का ये पहला वाक्या नहीं है. सेल की बरसुआ माइन्स 2011 से लेकर अब तक ओडिशा वन विभाग को 6 कारें भिजवा चुका है, जिनमें पांच बोलेरो और एक स्कॉर्पियो शामिल है. लेकिन इस तरह की फॉर्च्यूनर जैसी एसयूवी कार पहली बार भेजी गई है और इस बार इसे फील्ड में न भेजकर दिल्ली भेजा गया है.
अंग्रेजी अखबार 'इंडियन एक्सप्रेस' ने फॉर्च्यूनर की खरीद के समय बरसुआ माइन्स के जनरल मैनेजर रहे और अब सेवानिवृत हो चुके एच बारा से संपर्क किया तो उन्होंने कहा, 'फॉरेस्ट क्लीयरेंस की शर्त के मुताबिक SAIL की तरफ से ओडिशा माइन्स के लिए एक एसयूवी का प्रपोजल रखा गया था, जिसका इस्तेमाल दिल्ली में जावड़ेकर कर रहे है. इस कार को कोलकाता हेडक्वार्टर्स में एनवायरमेंट एंड लीज डिविजन भेजा गया था.'
जब बारा से पूछा गया कि सिर्फ फॉर्च्यूनर को ही क्यों चुना गया और इसे बरसुआ भेजने की बजाए दिल्ली क्यों भेजा गया, तो इसपर उन्होंने कुछ भी कहने से इंकार कर दिया.
इंडियन एक्सप्रेस ने वन मंत्रालय और SAIL के अधिकारियों से फोन और ई-मेल के लिए जरिए कई बार संपर्क करने की कोशिश की लेकिन सिर्फ प्रकाश जावड़ेकर की तरफ से ई-मेल पर रिप्लाई आया. उन्होंने कहा कि वो फिलहाल बैंगलोर में हैं और इसके लिए डायरेक्टर जनरल(फॉरेस्ट) से संपर्क साधा जाए लेकिन उनकी तरफ से भी कोई जवाब नहीं आया.