छत्तीसगढ़ में सरकारी बोनस के अदाएगी के बावजूद किसानों की आत्महत्या थम नहीं पा रही है. हफ्ते भर में पांच किसानों ने आत्महत्या की है जबकि साल भर में 197 किसान आत्महत्याएं कर चुके है. सरकार हैरत में है क्योंकि उसका दावा है कि किसानों के हित में कई कदम उठाए जाने के बावजूद किसान मौत को गले लगा रहे हैं.
जब सरकार ने आत्महत्याओं की पड़ताल की तब पता पड़ा कि ज्यादातर आत्महत्याएं सरकारी कर्ज नहीं बल्कि स्थानीय साहूकारों से कर्ज लेने के चलते हुई है. फिलहाल चोरी छिपे और गैर लाइसेंसी साहूकारों के खिलाफ कार्यवाही किए जाने को लेकर किसान सड़कों पर है. किसानों के मुताबिक, उन्हें बहुत ऊंची ब्याज दरों पर उधार मिलती है. इसके चलते उन्हें अपना खेत खलियान गिरवी रखना पड़ता है और साहूकार इतना दबाव बना देते है कि आत्महत्या के अलावा कोई दूसरा कदम नहीं रह जाता.
छत्तीसगढ़ में किसान साहूकारों के कर्ज के बोझ तले इतना दब चुके हैं कि उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि जिंदगी जिए या फिर जिन किसानों ने मौत को गले लगाया है उन्हीं के नक़्शे कदम में चल पड़े. मसलन वे भी आत्महया जैसा कदम उठा लें. कारण साफ है. किसानो पर कर्ज अदाएगी की दोहरी मार पड़ रही है. एक तो बैंकों और सहकारी संस्थाओं का कर्ज दूसरा गांव कस्बों की साहूकारों का कर्ज. ये वो साहूकार है जिनके पास ना तो वैधानिक तौर पर किसी को कर्ज या उधार देने का लाइसेंस है और ना ही किसी तरह का क़ानूनी अधिकार पत्र. बस उनकी गांठ में मोटी रकम है जिससे वो दिन दूनी और रात चौगुनी कमाई करते है.
ऐसे साहूकारों के लिए किसान ना केवल खास ग्राहक है बल्कि उनकी कमाई का मुख्य जरिया भी है क्योंकि एक का दस करने का मौका इन्हीं किसानो से मिलता है. और तो और सरकारी अफसर हो या फिर पुलिस या थाना हर किसी का इन्हे संरक्षण प्राप्त है. किसानों को मुसीबत पड़ने पर वे ही काम आते हैं क्योंकि किसी एक बैंक या संस्था से कर्ज लेने के बाद उस कर्ज की अदाएगी तक कोई दूसरा बैंक नए सिरे से उन्हें कर्ज नहीं देता. ऐसे हालात में फिर कितनी भी ऊंची ब्याज दर हो, किसानों को गांव-कस्बों के साहूकारों के शरण में जाना होता है. उन्हीं की बदौलत ही वे खाद बीज भी खरीद पाते है और बुआई भी करते है. लेकिन यही साहूकार अब किसानों की मौत के कारण बन गए है. कर्ज पे कर्ज और उस पर ऊँची ब्याज के दरों ने उनका जीना दूभर कर दिया है.
राज्य में गैर लाइसेंसी साहूकार रोजाना पांच फीसदी तक ब्याज ले रहे है जबकि राष्ट्रीयकृत बैंक सालाना दस से बारह फीसदी तक ही कर्ज वसूलते हैं. छत्तीसगढ़ में गैर क़ानूनी ढंग से तीन तरह की कर्ज देने की प्रथा सालों से चली आ रही है. पहली हटकी प्रथा, दूसरी प्रतिदिन की प्रथा और तीसरी माहवारी प्रथा. इन तीनों ही प्रथाओं में किसानो की हालत पतली कर दी है. किसान जिस दिन रकम उधार लेता है उसी दिन साहूकारों की झोली नकदी से भरने लगती है. चक्रवृद्धि ब्याज की दरें इतनी ऊँची है कि गांव कस्बों में यही नारा सुनाई देता है. जब तक सूरज चाँद रहेगा तब तक ब्याज देने वालों का नाम खाता बही में रहेगा.
छत्तीसगढ़ में किसानो के पांच हार्श पॉवर तक के पंपों को मुफ्त बिजली, खाद बीज में रियायत, और मुफ्त कृषि सलाह के अलावा कई तरह की छूट दिए जाने के बावजूद छत्तीसगढ़ में किसान आत्महत्याए कर रहे हैं. आत्महत्याएं उस दौर में भी हो रही है जब राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह किसानो को 21 सौ करोड़ का बोनस देने के लिए गांव की खाक छान रहे हैं.