6 जून को जब मौसम विभाग ने मॉनसून के केरल पहुंचने की घोषणा की थी तो सभी को उम्मीद थी कि चलो देर से ही सही मॉनसून आखिरकार पहुंचा तो. मौसम विभाग ने मॉनसून के केरल पहुंचने की घोषणा कर तो दी, लेकिन 6 जून के बाद मॉनसून आगे बढ़ा ही नहीं.
हर बार की तरह इस बार भी मौसम विभाग खराब मॉनसून को छुपाने के लिए झूठ ही बोल रहा है. केरल पहुंचे हुए दो दिन हो चुके हैं लेकिन मॉनसून एक इंच भी आगे नहीं बढ़ा. मौसम विभाग भले ही झूठी बारिश के किस्से गढ़ रहा हो लेकिन असलियत ये है कि मॉनसून की स्थिति फिलहाल बड़ी खराब है.
6 जून के बाद केरल में मॉनसून जैसी बारिश तो कतई नहीं हो रही है. बारिश का सिलसिला वेस्टर्न घाट के इलाके में देखा जा रहा है और वो भी महज 1 सेमी से लेकर 4 सेमी. जो कि इस इलाके में बहुत आम बात है.
ऐसा अनुमान है कि मॉनसून के लिए प्रतिकूल परिस्थितियां पैदा होने की आशंका बढ़ चुकी है. केरल के पास अरब सागर के ऊपर एक कम दबाव का क्षेत्र जोर पकड़ रहा है.
सैटेलाइट मैप में अरब सागर में दिख रहे ये बादल दरअसल कम दबाव के एक क्षेत्र की वजह से बन रहे हैं. मौसम विभाग के एक मॉडल के मुताबिक ये कम दबाव का क्षेत्र तेजी पकड़ कर सिवियर साइक्लोन में बदलने की आशंका है. अगर ऐसा होता है तो ये साइक्लोन ओमान की तरफ जाएगा. लिहाजा मौसम विभाग इस वेदर सिस्टम पर बारीकी से नजर रखे हुए है. लेकिन अरब सागर में बने कम दबाब के इस क्षेत्र से मॉनसून की रफ्तार पर लगाम लग गई है. अगर साइक्लोन बना तो मॉनसून दोबारा जोर पकड़ने में कम से कम हफ्ते भर का समय लगा देगा. यानी मॉनसून पर जबरदस्त खतरा मंडरा रहा है और इसकी रफ्तार थम गई है.
गौरतलब है कि इस बार मॉनसून के सामान्य से कम रहने की भविष्यवाणी मौसम विभाग पहले ही कर चुका है.
इस अनुमान के मुताबिक मॉनसून मौसम में वर्षा की औसत मात्रा लंबी अवधि में 95 प्रतिशत हो सकती है. जानकारों का कहना है कि मॉनसून की बारिश कमजोर रहने की आशंका के पीछे प्रशांत महासागर में बन रहे अल नीनो का हाथ है. दरअसल, दुनिया भर का मौसम समंदर के पानी और वायुमंडल के बीच होने वाले मेलमिलाप का नतीजा है.
मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक भारत का मॉनसून हजारों किलोमीटर की दूरी पर मौजूद भूमध्यरेखा से चलने वाली हवाओं का नतीजा है. भूमध्येयरेखा से चलने वाली हवाएं दक्षिण अमेरिका के चिली के पास प्रशांत महासागर की सतह के तापमान के ऊपर निर्भर करती हैं. जब यहां पर प्रशांत महासागर की सतह का तापमान सामान्य से ज्यादा होता है तो इस स्थिति को लैटिन में अल नीनो कहते हैं. अल नीनो का मतलब होता है चाइल्ड ऑफ क्राइस्ट. ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहां पर समंदर की सतह दिसंबर के अंत में गरम होनी शुरू होती है. अल नीनो की स्थिति में मॉनसून की हवाओं पर विपरीत असर पड़ता है.
दुनिया भर में तमाम वेदर एजेंसीज इस बात की ताकीद कर चुकी हैं कि अल नीनो डेवलप हो चुका है लेकिन प्रशांत महासागर का तापमान सामान्य के मुकाबले महज आधा डिग्री सेल्सियस ऊपर है. अल नीनो का असर मॉनसून पर दिखने की आशंका ज्यादा है. ऐसे में मॉनसून की देरी से शुरुआत और उसके बाद रफ्तार पर लगाम लगना अच्छे दिनों के संकेत तो कतई नहीं माने जा सकते हैं. लिहाजा अरब सागर में हो रहे एक-एक बदलाव पर मौसम वैज्ञानिक अपनी पैनी नजर रखे हुए हैं.