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इन 5 नाकामियों पर कसे लगाम, वरना संकट में आ जाएगी मोदी सरकार

वैसे तो अगले लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार को विपक्षी गुट खास चुनौती देते नहीं दिख रहे हैं, लेकिन सरकार के सामने कुछ ऐसी नाकामियां दिख रही हैं जिसमें सुधार नहीं किया गया तो उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)

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इंडिया टुडे के सर्वे के अनुसार अगर आज चुनाव कराया जाए तो नरेंद्र मोदी की सरकार अगले साल फिर से सत्ता में आ सकती है. लेकिन हकीकत में अभी चुनाव होने में करीब 8 महीने बचे हैं और जिस तरह से उसकी 5 नाकामियां बनी हुई हैं उससे धरातल पर मोदी एंड टीम को खासी मशक्कत करनी पड़ सकती है.

इंडिया टुडे और कार्वी इनसाइट्स की ओर से मूड ऑफ द नेशन जुलाई 2018 (MOTN, जुलाई 2018) सर्वे 97 संसदीय क्षेत्रों और 197 विधानसभा क्षेत्रों के 12,100 लोगों में 18 जुलाई 2018 से लेकर 29 जुलाई 2018 के बीच कराया गया था.

देश का मिजाज सर्वेक्षण में शामिल लोगों के बीच नरेंद्र मोदी सरकार की 5 सबसे बड़ी नाकामियों के बारे में राय मांगी गई तो उन्होंने रोजगार की कमी को सबसे बड़ी नाकामी बताया. इसके बाद लोगों ने जरूरी जिंसों की कीमतों में वृद्धि, नोटबंदी, किसानों की आत्महत्या और कृषि संकट सरकार की 4 अन्य सबसे बड़ी नाकामियों के रूप में गिनाया.

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खास बात यह है कि 6 महीने पहले जनवरी में हुए मूड ऑफ द नेशन सर्वे में रोजगार की कमी का आंकड़ा 22 फीसदी था जो अब 7 फीसदी बढ़कर 29 फीसदी तक पहुंच गया. इसके अलावा जरूरी चीजों की कीमतों में वृद्धि दूसरी सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरी है. हालांकि जनवरी की तुलना में इसमें एक फीसदी यानी 24 फीसदी का ही इजाफा हुआ है.

नोटबंदी, किसानों की आत्महत्या और कृषि संकट अभी भी मोदी सरकार की बड़ी नाकामियों में शुमार है. हालांकि पिछले सर्वे की तुलना में सरकार ने किसानों की आत्महत्या और कृषि संकट पर थोड़ा अंकुश जरूर लगाया है.

दूसरी तरफ, सर्वे में मोदी सरकार के लिए यह सकारात्मक हो सकता है कि भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के प्रयास को मोदी की सबसे बड़ी कामयाबी के तौर पर देखा जाता है. सरकार को काले धन के खिलाफ कड़े एक्शन (16%), भ्रष्टाचार मुक्त सरकार (15%) और नोटबंदी (13%) को मिलाकर 44 फीसदी का समर्थन मिला है.

इसके अलावा जीएसटी लाने, स्वच्छ भारत और बुनियादी ढांचे के विकास कार्यक्रमों के लिए जहां मोदी सरकार की पीठ थपथपाई गई है, वहीं एनडीए सरकार की कई दूसरी योजनाओं को ठंडी प्रतिक्रिया मिली है जिनमें बहुत जोरशोर से प्रचारित जन धन योजना, डिजिटल इंडिया और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण शामिल हैं.

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महंगाई पर काबू पाने के बारे में सर्वे दिखाता है कि उनके लिए परेशानी बढ़ रही है, क्योंकि धारणा यह है कि कीमतों में बढ़ोतरी खतरे का निशान पार कर गई है.

जहां तक नोटबंदी का सवाल है तो यह सरकार के लिए आत्मघाती साबित हुई क्योंकि बड़ी संख्या में लोगों को लगता है कि इसने अनौपचारिक क्षेत्र को तबाह कर दिया. ऐसे लोगों की भी संख्या में खासी बढ़ी है जो यह मानते हैं कि नरेंद्र मोदी का 'अच्छे दिन' का वादा बस एक चुनावी जुमला था. जनवरी 2017 में 24 फीसदी लोग ऐसा मानते थे, फिलहाल 43 फीसदी लोगों की प्रधानमंत्री के बारे में ऐसी ही धारणा बन चुकी है.

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