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मूडीज की रेटिंग्स की संघ से जुड़े संगठनों ने ही निकाली हवा, कहा- रोजगार की हालत बदतर

संसद मार्ग पर  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुडे संगठन भारतीय मजदूर संघ और स्वदेशी जागरण मंच के हजारों समर्थक सरकार की आर्थिक नीतियों के खिलाफ नारे लगाकर  चेतावनी दे रहे थे कि गरीबों की अनदेखी  अब नहीं चलेगी.

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

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केंद्र सरकार और इसके मंत्री गद्गद् हैं. आखिर हो भी क्यों ना? ग्लोबल रेटिंग्स एजेंसी मूडीज ने मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की तारीफ करते हुए 13 साल बाद भारत की रेटिंग्स सुधार दी है. वर्ल्ड बैंक की हाल में जारी ‘ease of doing business’ लिस्ट में भी भारत ने 30 पायदान ऊपर की छलांग लगाई थी.

अब अमेरिका स्थित रेटिंग्स एजेंसी मूडीज ने भारत की सॉवरन क्रेडिट रेटिंग्स को स्टेबल आउटलुक देते हुए एक पायदान ऊपर यानी ‘Baa3’ से ‘Baa2’  कर दिया. गुजरात चुनाव से पहले मूडीज ने आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार के प्रदर्शन को सराहा तो मंत्री भी अपनी सरकार और इसके मुखिया की जमकर तारीफ करने के मूड में आ गए. कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश का ही नहीं बल्कि दुनिया का सबसे लोकप्रिय नेता बता डाला.  

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कृषि मंत्री सिंह ने कहा कि इस सरकार ने गांव और गरीबों के बेहतरी के लिए जिस तरह के कदम उठाए हैं वैसा आजादी के बाद पहली बार हुआ है. हालांकि ये बात दूसरी है कि सिंह जिस वक्त अपने मंत्रालय कृषि भवन में जब ये बयान दे रहे थे ठीक उसी वक्त वहां से चंद कदम की दूरी पर संसद मार्ग पर अलग ही नजारा दिख रहा था. संसद मार्ग पर  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुडे संगठन भारतीय मजदूर संघ और स्वदेशी जागरण मंच के हजारों समर्थक सरकार की आर्थिक नीतियों के खिलाफ नारे लगाकर  चेतावनी दे रहे थे कि गरीबों की अनदेखी  अब नहीं चलेगी.

मूडीज की रेटिंग के  बारे में पूछे जाने पर जाने पर स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह- संयोजक अश्विनी महाजन ने तपाक से कहा, ‘ये रेटिंग तो बडे बिजनेस घरानों के लिए और बड़े लोगों के लिए है. सच्चाई ये है कि रोजगार की हालत बदतर हुई है.’ महाजन के मुताबिक सरकार को जीडीपी की बात करने से पहले रोजगार की बात करनी चाहिए. पहले मजदूरों,  ठेके पर काम करने वालों श्रमिकों और आंगनवाडी के लोगों की बात करनी चाहिए, जिनकी हालत में सुधार नहीं हुआ है. महाजन कहते हैं कि अफसोस की बात ये है कि नीति आयोग की बैठकों में जाकर कॉरपोरेट जगत के लोग तो अपनी बात कह लेते हैं लेकिन मजदूरों की सुनने वाला कोई नहीं.

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महाजन इसके लिए नौकरशाहों और सरकार के सलाहकारों को दोष देते  हैं. जब महाजन से कहा गया कि सरकार तो बीजेपी की है तो अपनी बात के लिए सडक पर धरना प्रदर्शन क्यों?, इस सवाल के जवाब में महाजन कहते हैं, ‘सरकार तो सरकार होती है,  चाहे किसी की भी हो- वर्ना सडक पर बैठने की जरूरत क्यों पडती?’

भारतीय मजदूर संघ के अध्यक्ष सी के सजी नारायण भी मूडी और वर्ल्ड बैंक की सरकार को शाबाशी से कुछ खास प्रभावित नहीं है. वो कहते हैं कि ‘ease of doing business’ के साथ साथ ‘ease of living’  भी होनी चाहिए. सजी नारायण कहते हैं कि विदेशी निवेश की तरफदारी करने वाली आर्थिक नीतियों की वजह से मजदूरों का और गरीबों का जीवन और ज्यादा मुश्किल हो गया है. आर्थिक सुधारों के नाम पर लोगों के रोजगार खत्म हो रहे हैं.

भारतीय मजदूर संघ का भी ये मानना है कि सरकार जो कुछ कदम गरीबों के हितों के लिए उठा भी रही है उसका भी फायदा जरूरतमंद लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है. इसके लिए सरकार से सलाहकार और तथाकथित विशेषज्ञ जिम्मेदार हैं. भारत में करीब चालीस करोड मजदूर असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं और भारतीय मजदूर संघ का मानना है कि चाहे विदेशी निवेश हो या फिर ई कामर्स, इनसे लोगों की नौकरियां और रोजगार छिन रहे हैं .

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सजी नारायण कहते हैं कि भले ही सरकार ने न्यूनतम मजदूरी तय कर रखी है लेकिन सिर्फ 7  फीसदी श्रमिकों को ही न्यूनतम मजदूरी मिल पाती है और बाकी 93  प्रतिशत मजदूर न्यूनतम से भी कम मजदूरी में काम करने को मजबूर हैं.

भारतीय मजदूर संघ और स्वदेशी जागरण मंच का ये रुख सरकार को जरूर खला होगा कि गुजरात चुनाव के बीच मूडीज की शाबाशी से जो रंग जमा था, उसकी अपने ही लोग हवा निकालने में लगे थे. शुक्रवार को धरने के बाद भारतीय मजदूर संघ को वित्त मंत्रालय से बातचीत के लिए बुलावा मिला है.

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