भारत के चंद्रयान प्रथम समेत हाल के चंद्र मिशनों में चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी की खोज के विपरीत वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उसके अंदरूनी क्षेत्र इतने शुष्क हो सकते हैं कि वहां जीवन संभव नहीं हो सकता.
चद्रयान प्रथम ने हाल ही में चंद्रमा के उत्तरी ध्रूव पर बर्फ का निक्षेप पाया था जबकि अन्य मिशनों में चंद्रमा के खनिजों पर्याप्त पानी होने का दावा किया गया था.
अमेरिकी अनुसंधानकर्ताओं ने अपोलो अंतरिक्ष मिशन द्वारा लाए गए चंद्रमा के चट्टान के क्लोरीन समस्थानिक का विश्लेषण करने के बाद दावा किया कि चंद्रमा के निर्माण के दौरान मैग्मा सागर में हाइड्रोजन नहीं था या था तो अत्यल्प था. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक इसका मतलब है कि धरती का यह प्राकृतिक उपग्रह हमेशा से इतना शुष्क रहा है कि उसपर जीवन हो ही नहीं सकता.
इस नवीनतम अध्ययन की अगुवाई करने वाले न्यू मैक्सिको विश्वविद्यालय के जाचारी शार्प ने कहा, ‘‘यह जलमुक्त है. इसका मतलब है कि जब चंद्रमा बना यानी विकास के प्रारंभिक अवस्था में उसने जल या कार्बन डाइक्साइड संग्रहित नहीं किया.’
वैज्ञानिकों के अनुसार करीब 4.5 अरब वर्ष पहले मंगल ग्रह के आकार वाले आकाशीय पिंड के पृथ्वी के साथ टकराने पर चंद्रमा का निर्माण हुआ. यह तुरंत क्रिस्टल होकर ठंडा हो गया. ऐसा माना जाता है कि इसके ठंडा होने से पहले चंद्रमा की सतह पर पिघले चट्टानों का तथाकथित मैग्मासागर था.
शार्प ने कहा, ‘‘जब धरती ठंडी हुई और इसने क्रिस्टल रूप ग्रहण किया तब उसकी सतह पर ज्वालामुखियों से गेस और भाप निकले. इन अधिकतर सागर और महासागरों का निर्माण हुआ. हमारे सागर चट्टानों में समाहित पानी से बने.’’ शार्प के अनुसार हालांकि चंद्रमा पर भी ऐसी ही घटना घटी लेकिन उसका आकार इतना छोटा और उसका गुरूत्व बल इतना कमजोर था कि वह पानी को रख ही नहीं पाय और वह अंतरिक्ष में विलुप्त हो गया. यह अध्ययन साइंस पत्रिका में छपा है.