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मौत से कुछ घंटे पहले 'गंगापुत्र' की मान ली गई थीं 80% मांगें, सरकार का दावा

मशहूर पर्यावरणविद जी डी अग्रवाल आईआईटी कानपुर से सेवानिवृत्त प्रोफेसर थे. जिन्होंने अपना जीवन गंगा की निर्मलता और अविरलता सुनिश्चित करने में समर्पित कर दिया.

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प्रोफेसर जीडी अग्रवाल (फाइल फोटो: पीटीआई)
प्रोफेसर जीडी अग्रवाल (फाइल फोटो: पीटीआई)

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गंगा को अविरल बनाने के लिए गंगा एक्ट की मांग को लेकर 22 जून 2018 से अनशन पर बैठे पर्यावरणविद प्रोफेसर जीडी अग्रवाल उर्फ ज्ञानस्वरूप सानंद का गुरुवार को निधन हो गया. प्रोफेसर अग्रवाल पिछले 111 दिन से अनशन पर थे और उन्होंने मंगलवार से जल भी त्याग दिया था. जिसके बाद बुधवार को उन्हें प्रशासन ने जबरन उठाकर ऋषिकेश के एम्स में भर्ती कराया, जहां 86 वर्षीय जीडी अग्रवाल ने अंतिम सांस ली.

गंगा की अविरलता के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले प्रोफेसर जीडी अग्रवाल का अनशन खत्म कराने के लिए पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री उमा भारती उनसे मिलने गई थीं और नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री नितिन गडकरी से उनकी फोन पर बात भी कराई थी. लेकिन प्रोफेसर अग्रवाल ने गंगा एक्ट लागू होने तक अनशन जारी रखने की बात कही थी.

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मान ली गई थीं प्रोफेसर अग्रवाल की अधिकतर मांगें

गौरतलब है कि जिस दिन प्रोफेसर अग्रवाल को अस्पताल में भर्ती कराया गया उसी दिन यानी बुधवार को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बाताया कि गंगा के ई-फ्लो के लिए केंद्र सरकार ने अधिसूचना जारी की है. इसके तहत सभी बैराज को निर्देश दिए गए हैं कि उन्हें साल भर किस तरह से गंगा में पानी छोड़ना है ताकि गंगा का प्रवाह निरंतर बना रहे और गंगा को अविरल बनाए रखने के साथ ही निर्मल भी बनाया जा सके.

प्रोफेसर जीडी अग्रवाल के अनशन संबंधी सवाल पर गडकरी ने कहा कि उनकी 70-80 फीसदी मांगें मान ली गई हैं. गडकरी ने यह भी बताया कि गंगा और उसकी सहायक नदियों पर कुछ पनबिजली परियोजनाओं को रद्द करने की उनकी मांग थी. जिसके लिए सरकार सभी हितधारकों को साथ लाकर मामले को जल्द से जल्द सुलझाने का प्रयास कर रही है. इस संबंध में उन्हें पत्र लिखा गया है और उन्हें भरोसा है कि प्रोफेसर अग्रवाल अपना अनशन खत्म कर देंगे.  

प्रोफेसर जीडी अग्रवाल गंगा को बांधों से मुक्त कराने के लिए कई बार आंदोलन कर चुके थे. मनमोहन सरकार के दौरान 2010 में उनके अनशन के परिणामस्वरूप गंगा की मुख्य सहयोगी नदी भगीरथी पर बन रहे लोहारी नागपाला, भैरव घाटी और पाला मनेरी बांधों के प्रोजेक्ट रोक दिए गए थे, जिसे मोदी सरकार आने के बाद फिर से शुरू कर दिया गया. सरकार से इन बांधों के प्रोजेक्ट रोकने और गंगा की अविरलता बरकरार रखने के लिए गंगा एक्ट लागू करने की मांग को लेकर प्रोफेसर अग्रवाल अनशन पर थे.

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पीएम, उमा ने जताया शोक, तोगड़िया भड़के

प्रोफेसर अग्रवाल के निधन के बाद तमाम राजनीतिक हस्तियों ने शोक व्यक्त किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर लिखा, ''श्री जीडी अग्रवाल जी के निधन से दुखी हूं. सीखने, शिक्षा, पर्यावरण संरक्षण, विशेष रूप से गंगा सफाई की दिशा में उनके जुनून के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा. मेरी श्रद्धांजलि.''

केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने कहा, ''मैं उनके निधन से आहत हूं. मुझे डर था कि ऐसा होगा. मैंने नितिन गडकरी और अन्य लोगों को उनके निधन के बारे में बता दिया है.''

अंतरराष्ट्रीय हिंदू परिषद के अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया ने कहा कि प्रोफेसर अग्रवाल चाहते थे कि प्रधानमंत्री गंगा को अविरल बनाने के उनके प्रोजेक्ट को देखें. उन्होंने कहा प्रोफेसर अग्रवाल पिछले 111 दिन से अनशन पर थे और कमजोर हो चुके थे. फिर भी उन्हें जबरन उठाया गया, ठीक वैसे ही जैसे कुछ दिनों पहले अयोध्या से महंत परमहंस दास को हटाया गया. सरकार से उनसे बेहतर बर्ताव की उम्मीद थी. 

राहुल बोले उनकी लड़ाई हम आगे बढ़ाएंगे

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गुरुवार को पर्यावरण कार्यकर्ता जी डी अग्रवाल की मृत्यु पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उन्होंने गंगा नदी के लिए अपना जीवन त्याग दिया. राहुल ने यह भी कहा कि वह उनकी लड़ाई को आगे बढ़ाएंगे.

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हालांकि विपक्ष ने प्रोफेसर जीडी अग्रवाल के निधन को सीधे सरकार की संवेदहीनता करार देते हुए हमला बोला है. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, "मोदी जी ने कहा था कि मां गंगा ने बुलाया है लेकिन गंगा 2014 से भी ज्यादा प्रदूषित हो गईं. गंगा की सफाई के लिए 22000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए लेकिन उसका एक चौथाई भी खर्च नहीं हुआ. क्या नमामी गंगे भी जुमला है? हो सकता है जीडी अग्रवाल जी की कुर्बानी अंधी सरकार को रोशनी दिखाए."

वहीं पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने प्रोफेसर अग्रवाल के निधन को शहादत करार देते हुए कहा कि वे सिर्फ निर्मल गंगा ही नहीं अविरल गंगा के भी अथक योद्धा थे. ये मेरा सौभाग्य था कि गंगा की अविरलता सुनिश्चित करने के लिए उत्तराखंड में गंगा की सहायक नदियों पर उनके मशवरे को लागू करने का अवसर मिला. मैं उनकी  प्रतिबद्धता, निष्ठा, विश्वास और जुनून को सलाम करता हूं."

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