कालेधन को सफेद करने के जुगाड़ में लगे लोग किस हद तक गिर सकते हैं, इसकी शर्मनाक मिसाल कोलकाता से सामने आई है. महानगर में रहने वाले पाल दंपति बीते 9 साल से बेटी सुमोना पाल के इलाज में दिन-रात जुटे हैं. सुमोना विल्सन डिसीज से पीड़ित हैं जिसमें नर्वस सिस्टम के प्रभावित होने की वजह से मस्तिष्क से शरीर के अन्य अंगों को निर्देश नहीं जा पाते.
सुमोना के इलाज में हर महीने डेढ़ लाख रुपए खर्च आता है. सुमोना के पिता एक छोटी प्रिंटिंग प्रेस चलाते हैं जिससे हर महीने मुश्किल 20,000 रुपये की ही आमदनी हो पाती है. पाल
दंपति बेटी के इलाज में अपनी सारी बचत लगा चुके हैं. इसके अलावा करीबियों और अन्य से मिलने वाली मदद भी पाल दंपति के लिए बड़ा सहारा है.
सुमोना के इलाज के लिए 100 कैप्सूल की बोतल 600 पाउंड की आती है. हर महीने दो बोतल की आवश्यकता होती है. जो कंपनी ये कैप्स्यूल बनाती है वो पाल परिवार को इसे निशुल्क उपलब्ध कराती है. लेकिन इसके अलावा भी सुमोना के इलाज पर बड़ी रकम खर्च होती है.
पाल दंपति की मुश्किलें 8 नवंबर को नोटबंदी के फैसले के बाद और बढ़ गई हैं. अब उन्हें बेटी के इलाज के लिए नकदी के संकट का सामना करना पड़ रहा है. पाल परिवार परेशान है,
वहीं इस परेशानी में भी कुछ लोगों को अपना काला धन सफेद करने का जरिया नजर आने लगा. जिन अनजान लोगों ने कभी सुमोना की सुध नहीं ली थी वो पाल परिवार के पास मदद की
पेशकश लेकर आए. लेकिन इस मदद में भी उनका अपना स्वार्थ छुपा था. उन्होंने कहा कि पाल परिवार उनका काला धन ले कर रख ले और उसे सफेद में बदल कर बाद में वापस कर दे.
इसके बदले में सुमोना के इलाज के लिए कमीशन के तौर पर इस रकम का एक निश्चित हिस्सा अपने पास रख ले.
पाल परिवार ने ऐसे लोगों को घर का दरवाजा दिखाने में एक मिनट की भी देर नहीं लगाई. पाल परिवार हैरान है कि कुछ लोग अपने फायदे को लेकर कितना गिर सकते हैं और दूसरों की भावनाओं का भई उन्हें कोई ध्यान नहीं रहता.
तमाम परेशानियों के बावजूद सुमोना के माता-पिता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की काला धन के खिलाफ मुहिम को देश के लिए अच्छा बताते हैं. उनका कहना है कि इस मामले में वो पूरी तरह प्रधानमंत्री के साथ हैं. हालांकि उन्होंने प्रधानमंत्री से ये अपील भी कि सुमोना जैसे देश में जो बच्चे भी असाध्य बीमारियों से जूझ रहे हैं, उनके लिए कोई कदम उठाएं. ऐसा करने से उनके परिवारों को बड़ा बल मिलेगा.