नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद मुस्लिम समाज में विवादित तीन तलाक को खत्म करने का बीड़ा उठाया और तीन तलाक अध्यादेश बिल (Triple talaq ordinance bill) को संसद से पास कराने के लिए उनकी सरकार ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया, लेकिन लोकसभा में बिल को आसानी से पास कराने के बाद राज्यसभा में पास कराने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. हालांकि आजतक और कर्वी इनसाइट्स के सर्वे में लोगों ने इसका समर्थन किया और माना कि महिला सशक्तीकरण की दिशा में यह बड़ा कदम है.
तीन तलाक खत्म करने को लेकर मोदी सरकार की कोशिश क्या महिला सशक्तीकरण की दिशा में अगला कदम है, के सवाल पर आजतक और कार्वी इनसाइट्स के सर्वे में यह बात सामने आई कि देश के 63 फीसदी लोग इसे सही मानते हैं, जबकि 26 फीसदी लोगों का कहना है कि यह सही नहीं है. इस सवाल के बारे में 11 फीसदी ऐसे लोग हैं जो इस बारे में अपनी राय दे पाने की स्थिति में नहीं हैं.
इसी सवाल पर उत्तर प्रदेश में कराए गए सर्वे में 71 फीसदी लोग ऐसे हैं जो मानते हैं कि मोदी सरकार का यह काम महिलाओं की सशक्तीकरण की दिशा में बड़ा कदम है. जबकि महज 13 फीसदी लोगों का कहना है कि केंद्र सरकार का यह कदम सही नहीं है. वहीं 16 फीसदी लोगों का कहना है कि वो इस बारे में नहीं जानते या फिर कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं हैं.
आजतक और कर्वी इनसाइट्स का सर्वे देश का मिजाज यानी मूड ऑफ द नेशन बताता है कि लोग तीन तलाक पर सरकार के प्रयास से संतुष्ट हैं. यह सर्वे 2,478 लोगों पर किया गया. 28 दिसंबर से 8 जनवरी के बीच उत्तर प्रदेश के कुल 20 लोकसभा क्षेत्रों में यह सर्वे कराया गया.
तीन तलाक बिल पर 13 जनवरी को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने एक बार फिर से तीन तलाक अध्यादेश बिल (‘द मुस्लिम वीमेन प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स इन मैरिज एक्ट') पर दस्तखत कर अपनी मंजूरी दे दी है. इससे 2 पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक बार में तीन तलाक को अपराध घोषित किए जाने से संबंधित अध्यादेश को फिर से जारी करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी. पहला अध्यादेश पिछले साल सितंबर में जारी किया गया था, जो 22 जनवरी को समाप्त हो गया. लोकसभा से पारित होने के बाद राज्यसभा में यह बिल रोक दिया गया था जिसकी वजह से सरकार को तीन तलाक विरोधी बिल पर फिर से अध्यादेश लाना पड़ा.