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यह शाहनवाज हुसैन की शहादत है या मजबूरी?

शाहनवाज अब पार्टी के भीतर खुद कहने लगे हैं कि भागलपुर से सुशील मोदी को लड़ाया जाए.

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शाहनवाज हुसैन
शाहनवाज हुसैन

बिहार में राजनैतिक उथल-पुथल के बीच बीजेपी के लिए अपनी मौजूदा लोकसभा सांसदों की संख्या बरकरार रखते हुए जेडी-यू को मात देने की गंभीर चुनौती है. गठबंधन में बीजेपी लोकसभा की 40 सीटों में से 17 सीट पर लड़ती आई है, जिसमें से अभी पार्टी के पास 12 सांसद है. लेकिन बदले राजनैतिक समीकरण में उसे अपनी सीट बरकार रखना मुश्किल लग रहा है.

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वैसे भी बीजेपी को नरेंद्र मोदी का इफैक्ट बिहार में दिख रहा है, लेकिन फिर भी पार्टी कोई जोखिम उठाने के मूड में नहीं है. हर लोकसभा सीटों के लिए पार्टी अंदरुनी तौर से समीकरण और नफा-नुकसान का आकलन करने में जुट चुकी है. इसमें से अब भागलपुर लोकसभा सीट पर पार्टी की राह आसान नहीं दिख रही. यहां से फिलहाल बीजेपी के मुस्लिम चेहरा शाहनवाज हुसैन सांसद हैं, जबकि उनसे पहले बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी सांसद थे, जिन्होंने राज्य में उपमुख्यमंत्री बनने के बाद इस्तीफा दे दिया था.

जेडी-यू से गठबंधन होने की वजह से भागलपुर में शाहनवाज हुसैन की राह आसान हो गई थी, लेकिन अब स्थिति सहज नहीं है. भागलपुर से इस बार खुद सुशील कुमार मोदी चुनाव में उतरने का मन बना चुके हैं. ऐसे में सबसे ज्यादा मुश्किल शाहनवाज हुसैन की है, जिनके लिए कोई आसान सीट नजर नहीं आ रही. भागलपुर से स्थिति सहज नहीं देख शाहनवाज पूर्णिया सीट से चुनाव लडऩे की योजना बना रहे थे, लेकिन वहां अभी बीजेपी से उदय सिंह सांसद हैं. इस सीट से इस बार कांग्रेस संभवतया बाहुबलि पप्पू यादव को चुनाव में उतार सकती है, ऐसे में पूर्णिया सीट भी उनके लिए मुफीद साबित नहीं हो रही.

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सो शाहनवाज अब पार्टी के भीतर खुद कहने लगे हैं कि भागलपुर से सुशील मोदी को लड़ाया जाए. सूत्रों के मुताबिक, इसके पीछे शाहनवाज की दलील है कि पार्टी को किसी भी सीट पर जोखिम नहीं लेना चाहिए क्योंकि भागलपुर वैसे भी प्रतिष्ठा वाली सीट बनने जा रहा है. इन दलीलों के जरिए शाहनवाज पार्टी हित में भागलपुर सीट सुशील मोदी के लिए छोडऩे की बात कर ‘शहीद’ दिखाने की कोशिश कर रहे हैं. जबकि सच्चाई यह है कि वहां से उनको चुनाव लड़ाने पर पार्टी में असमंजस है, तो सूबे में उन्हें जीतने लायक अदद सीट नहीं मिल पा रही.

अब शाहनवाज अपनी शहादत के जरिए राज्यसभा की सीट सुनिश्चित करने की फिराक में हैं, ताकि एनडीए की सरकार बनने की स्थिति में मुस्लिम चेहरे के तौर पर केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिल सके. लेकिन पार्टी में उनके विरोधी नेता अब चुटकी ले रहे हैं, ‘वाकई ये शहादत है या मजबूरी?

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