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Opinion: संसद में पतन की पराकाष्ठा

यह वह संसंद है जिसे भारत की शान कहा जाता है और जो दुनिया भर में लोकतंत्र की एक मिसाल है.लेकिन गुरुवार को वे तमाम मान्यताएं खत्म हो गईं. यह दिन संसदीय लोकतंत्र के लिए एक काले दिनके रूप में याद रखा जाएगा.

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संसदीय इतिहास में काला दिन
संसदीय इतिहास में काला दिन

यह वह संसंद है जिसे भारत की शान कहा जाता है और जो दुनिया भर में लोकतंत्र की एक मिसाल है. लेकिन गुरुवार को वे तमाम मान्यताएं खत्म हो गईं. यह दिन संसदीय लोकतंत्र के लिए एक काले दिन के रूप में याद रखा जाएगा.

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आन्ध्र प्रदेश के बांटवारे के नाम पर सांसद अब तक जो नौटंकी कर रहे थे वह हिंसा मे तब्दील हो गई. एक सदस्य ने सदन में चाकू निकाला तो दूसरे ने काली मिर्च का स्प्रे किया तो तीसरे ने राज्य सभा में माइक उखाड़कर पेट में घुसेड़ने की कोशिश की. संसद के इतिहास में ऐसा न तो कभी सुना गया और न ही देखा गया. राज्यों की विधान सभाओं से अभद्रता, उपद्रव और मारपीट की खबरें तो आती थीं लेकिन देश की राजधानी में स्थित इस भवन में जहां कभी दिग्गज अपनी विद्वतापूर्ण बातें कहा-सुना करते थे, अभद्रता की बातें शायद ही कभी सुनाई पड़ती थीं. लेकिन अब सब खत्म हो गया.

हिंसा और उपद्रव की इन घटनाओं ने 15वीं लोकसभा को अब तक की सबसे निराशाजनक सभा बना दिया. इसके सदस्यों ने इसे कलंकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. तेलांगना के मुद्दे पर जो अराजकता देखी गई उसे हमेशा याद रखा जाएगा. इसने भारतीय संसद की गरिमा को ठेस पहुंचाई और उसे शर्मसार कर दिया. कुछ वर्षों से देखा जा रहा था कि भारतीय लोकतंत्र की परंपराओं में गिरावट आने लगी है. विधायक और सांसद अपने आचरण से सभी को लज्जित करते जा रहे हैं लेकिन आज की घटना ने तो सबको शर्मसार कर दिया है.

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अपनी मांगों को रखने और बहस करने के लिए तो संसद से बढ़िया कोई मंच ही नहीं है लेकिन इन सदस्यों ने जो किया उससे सभी के सिर झुक गए. यह साफ है कि यह सब अगले चुनाव में वोट पाने की रणनीति की यह सोची समझी रणनीति के तहत किया गया.

भारत में पहले भी कई राज्यों का विभाजन हुआ और कहीं भी ऐसी उग्रता देखने को नहीं मिली. इसका जनता के हित से कोई लेना-देना नहीं है. इसलिए ऐसे सदस्यों की सदस्यता तत्काल खत्म कर देनी चाहिए और उन पर यह प्रतिबंध लगाना चाहिए कि वे कम से कम दस साल तक चुनाव न लड़ सकें. और ऐसा करने वालों को एक सबक मिले. ऐसे लोगों की संसदीय राजनीति में कई जगह नहीं है. उन्हें तो गली-मुहल्लों की राजनीति करनी चाहिए. वोट के भूखे इन सांसदों ने यह सोचा नहीं कि संसद की गिरती साख को उन्होंने कितना बट्टा लगाया. देश के नागरिक और आने वाले पीढ़ियां उन्हें इसके लिए कभी माफ नहीं करेंगी.

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