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मुकेश अंबानी की Z-class सुरक्षा पर सुप्रीम कोर्ट हुआ सख्त

सुप्रीम कोर्ट ने रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के अध्यक्ष मुकेश अंबानी को जेड श्रेणी की सुरक्षा प्रदान करने के केंद्र सरकार के फैसले पर सवाल उठाते हुये कहा कि ऐसे व्यक्तियों को सुरक्षा क्यों प्रदान की जा रही है जबकि आम आदमी खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है.

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सुप्रीम कोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट ने रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के अध्यक्ष मुकेश अंबानी को जेड श्रेणी की सुरक्षा प्रदान करने के केंद्र सरकार के फैसले पर सवाल उठाते हुये कहा कि ऐसे व्यक्तियों को सुरक्षा क्यों प्रदान की जा रही है जबकि आम आदमी खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है.

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कोर्ट ने ऐसे व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करने पर सरकार की खिंचाई करते हुये कहा कि देश में सुरक्षा की कमी के कारण आम नागरिक असुरक्षित हैं. कोर्ट ने कहा कि अगर राजधानी में समुचित सुरक्षा होती तो पांच साल की बच्ची से रेप नहीं होता.

कोर्ट ने कहा कि अमीर लोग निजी सुरक्षाकर्मियों की सेवायें ले सकते हैं. न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अंबानी का नाम लिये बगैर ही कहा, ‘हमने अखबारों में पढ़ा कि गृह मंत्रालय ने एक व्यक्ति को केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल की सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया है. सरकार ऐसे व्यक्तियों को सुरक्षा क्यों प्रदान कर रही है.’

न्यायाधीशों ने कहा, ‘अगर उनकी सुरक्षा को खतरे का अंदेशा है तो उन्हें निजी सुरक्षाकर्मियों की सेवायें लेनी चाहिए. पंजाब में निजी कारोबारियों को सुरक्षा प्रदान की जाती है लेकिन अब यह संस्कृति मुंबई तक पहुंच गयी है.’

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कोर्ट ने कहा, ‘हमारा किसी व्यक्ति विशेष को सुरक्षा प्रदान करने से कोई सरोकार नहीं है लेकिन हम तो आम आदमी की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं.’ यह खंडपीठ सरकार द्वारा लोगों को दी गयी सुरक्षा और लाल बत्ती की गाड़ियों के दुरपयोग के खिलाफ उत्तर प्रदेश निवासी की याचिका पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणियां की.

इससे पहले, अंबानी को जेड श्रेणी की सुरक्षा प्रदान करने के निर्णय की वाम दलों द्वारा तीखी आलोचना के बाद सरकार को सफाई देने पड़ी थी कि यह उद्योगपति खुद ही सुरक्षा का खर्च वहन करेगा. एक अनुमान के अनुसार इस सुरक्षा पर हर महीने 15 से 16 लाख रुपये खर्च होंगे जिसकी गणना सुरक्षाकर्मियों के वेतन के आधार पर की जायेगी.

गृह मंत्रालय द्वारा सुरक्षा के खतरे के मद्देनजर सशस्त्र कमांडों का दस्ता मुहैया कराने के निर्णय के बाद यह उद्योगपति ‘जेड श्रेणी’ की सुरक्षा प्राप्त करने वाले अतिविशिष्टि व्यक्तियों के क्लब में शामिल होने वाले नये सदस्य हैं.

न्यायाधीशों ने जनता की कमाई पर अतिविशिष्ट व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करने पर व्यथित होते हुये कहा कि इन व्यक्तियों को प्राप्त सुरक्षा के आधार पर लोगों की सुरक्षा के खतरे का आकलन करने के लिये नये तरीके पर विचार करना होगा.

न्यायाधीशों ने कहा, ‘यह क्या बकवास है. यह जनता का धन है. आम आदमी की सुरक्षा के बारे में क्या है.’ कोर्ट ने कहा कि आपराधिक मामलों का सामना कर रहे व्यक्तियों को मिली सुरक्षा वापस ली जानी चाहिए और सरकार को लाल बत्ती का दुरपयोग करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए.

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न्यायाधीशों ने कहा, ‘एक बार आप लाल बत्ती रोक दीजिये, उनकी आधी हैसियत खत्म हो जायेगी. लाल बत्ती इस्तेमाल करना अब हैसियत की पहचान बन गया है. यह ब्रिटिश काल जैसा है.’

इससे पहले, शीर्ष कोर्ट ने कहा था कि वह फैसला करेगा कि क्या उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों के अलावा दूसरे व्यक्ति अपने वाहनों में लाल बत्ती और साइरन का इस्तेमाल कर सकते हैं या नहीं.

कोर्ट ने कहा था कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उप राष्ट्रपति, अध्यक्ष, देश के प्रधानन्यायाधीश और सांविधानिक संस्थाओं के मुखिया तथा राज्यों में ऐसे ही पदों पर आसीन व्यक्तियों को तो सुरक्षा प्रदान की जा सकती है लेकिन हर व्यक्ति को लाल बत्ती और सुरक्षा क्यों? कोर्ट ने कहा था कि यहां तक मुखिया और सरपंच भी लाल बत्ती की गाड़ी लेकर घूम रहे हैं.

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