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एक आईआईटीएन के हिंदी प्रेम ने अंग्रेजी के खिलाफ खड़ा किया आंदोलन

यूपीएससी की सिविल सर्विसेज परीक्षा में CSAT के विरोध को अभी तो जैसे-तैसे दबा दिया गया, पर हो सकता है कि आने वाले दिनों में यह फिर से एक गंभीर मसला बन जाए. ऐसा मानने के पीछे कुछ ठोस वजहें हैं. एक वजह तो यह है कि हिंदी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओं से परीक्षा देने वाले छात्र फिर से एकजुट होकर अपनी मांगें उठाएंगे. दूसरी वजहों में एक ऐसे शख्स भी शुमार हैं, जिन्होंने कई सरकारी सेवाओं में अंग्रेजी की अनिवार्यता के ख‍िलाफ मुहिम छेड़ रही है.

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CSAT के खि‍लाफ आंदोलन को दबाती पुलिस
CSAT के खि‍लाफ आंदोलन को दबाती पुलिस

यूपीएससी की सिविल सर्विसेज परीक्षा में CSAT के विरोध को अभी तो जैसे-तैसे दबा दिया गया, पर हो सकता है कि आने वाले दिनों में यह फिर से एक गंभीर मसला बन जाए. ऐसा मानने के पीछे कुछ ठोस वजहें हैं. एक वजह तो यह है कि हिंदी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओं से परीक्षा देने वाले छात्र फिर से एकजुट होकर अपनी मांगें उठा सकते हैं. दूसरी वजहों में एक ऐसे शख्स भी शुमार हैं, जिन्होंने कई सरकारी सेवाओं में अंग्रेजी की अनिवार्यता के ख‍िलाफ मुहिम छेड़ रखी है.

वैसे तो मुकेश कुमार जैन आईआईटियन हैं, पर CSAT के ख‍िलाफ आंदोलन में उनका भी योगदान है. आईआईटी, रुड़की से पास 52 साल के मुकेश जैन अखिल भारतीय अंग्रेजी अनिवार्य विरोधी मंच के मुख्य कर्ताधर्ता हैं. यह देश के हर हिस्से में अंग्रेजी की जगह हिंदी को लागू करने के लिए काम कर रहा है. इस काम के लिए हिंदू महासभा का दफ्तर उपयोग में लाया जा रहा है, जो बिड़ला मंदिर कॉम्प्लेक्स के निकट ही है. इस ऑफिस में आरएसएस की शुरुआती शाखाएं लगाई जाती थीं. एक बार नाथूराम गोडसे ने इसके कमरों का इस्तेमाल किया था.

1986 से ही जैन और उनके करीब दोस्त एकजुट होकर इंग्लिश की जगह हिंदी को लागू करने के लिए मु‍हिम चला रहे हैं. इस बारे में एक रिपोर्ट अंग्रेजी अखबार 'इकनॉमिक टाइम्स' ने छापी है.

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मुकेश जैन चाहते हैं कि आईआईटी की परीक्षा हो या फिर एनडीए-सीडीएस, बैंक एग्जाम हो या फिर किसी सरकारी कंपनी की परीक्षा, हर जगह इंग्लिश की बजाय हिंदी को जगह मिले.

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