उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों की घोषणा से ठीक पहले समाजवादी पार्टी ने अपने 325 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है. सपा की इस सूची के जरिए पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने अपने पुत्र मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को तो झटका दिया ही है, राज्य की चौथी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस को भी हैरान कर दिया है. ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच गठबंधन तय माना जा रहा था और सीटों के बंटवारे पर मामला अटका हुआ था. मुलायम ने 325 उम्मीदवारों की सूची जारी कर संदेश दे दिया है कि जो भी बातचीत होगी वो बाकी बची हुई 78 सीटों के आसपास ही होगी. सवाल ये है कि क्या कांग्रेस को मुलायम द्वारा खींची गई ये लकीर मंजूर होगी?
चुनावों को लेकर सबसे पहले एक्टिव हुई थी कांग्रेस
यूपी चुनावों की बात करें तो कांग्रेस पहली पार्टी थी जिसने जोरशोर से इसकी तैयारियां शुरू कीं. रणनीतिकार प्रशांत किशोर को यूपी में जीत दिलाने का जिम्मा दिया गया. 15 साल तक दिल्ली पर राज करने वाली शीला दीक्षित को पूरे गाजे-बाजे के साथ सीएम कैंडीडेट घोषित किया गया. इससे पहले संगठन में फेरबदल कर रीता बहुगुणा जोशी की छुट्टी की गई और राजबब्बर जैसे चर्चित चेहरे को प्रदेश में कांग्रेस का भविष्य सुधारने का जिम्मा दिया गया. राजाराम पाल, राजेश मिश्रा, भगवती प्रसाद और इमरान मसूद को उपाध्यक्ष बनाकर क्रमशः ओबीसी, ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम वोटरों को साधने की कोशिश की. राहुल गांधी किसान यात्रा के जरिए जिले-जिले घूमे. 27 साल-यूपी बेहाल का नारा दिया गया और खाट सभाओं जैसे नए प्रयोग किए गए. एक बारगी ऐसा लगा कि कांग्रेस यूपी के चुनावों में पूरा दमखम दिखाने के लिए तैयार है लेकिन इन सबके बीच नवंबर के पहले हफ्ते में प्रशांत किशोर और सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव की मुलाकात की खबर आई तो सबको हैरान कर गई. तब से कांग्रेस और सपा के गठबंधन की अटकलें जारी थीं और इन्हीं अटकलों के बीच मुलायम ने 325 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी है.
प्रशांत किशोर और मुलायम की मुलाकात से शुरू हुए कयास
प्रशांत किशोर की मुलायम सिंह के साथ बैठक के बाद जब कांग्रेस और सपा के गठबंधन की अटकलें लगीं तो सबसे पहला खंडन कांग्रेस की ओर से आया. कांग्रेस के तमाम नेता ये तर्क देते रहे कि प्रशांत किशोर के किसी नेता से मिलने का अर्थ ये नहीं है कि उस पार्टी से कांग्रेस गठबंधन करेगी लेकिन ऐसी सफाई से इतर घटनाक्रम ऐसा चलता रहा जो गठबंधन के कयासों में दम भरता रहा. दिल्ली में एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ये कहकर सबको हैरान कर दिया कि सपा अपने दम पर सरकार बनाएगी लेकिन अगर कांग्रेस के साथ उसका गठबंधन होता है तो वे मिलकर 300 से ज्यादा सीटें जीत लेंगे. इसके बाद पिछले दिन ही खबर आई कि कांग्रेस, अजित सिंह की राष्ट्रीय लोकदल और समाजवादी पार्टी में महाबंधन तकरीबन फाइनल हो गया है और सपा इन दोनों पार्टियों के लिए तकरीबन सौ सीटें छोड़ देगी. लेकिन इन खबरों के अगले ही दिन खुद अखिलेश यादव ने सभी 403 सीटों पर अपने पसंदीदा उम्मीदवारों की लिस्ट मुलायम को सौंप दी और मुलायम ने अब 325 प्रत्य़ाशियों के टिकट भी फाइनल कर दिए हैं.
एक-दूसरे की तारीफ करते नजर आए अखिलेश-राहुल
बताया जाता है कि मुलायम कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए तैयार तो हैं लेकिन इसके लिए खुद पहल करने का उनका कोई इरादा नहीं है. साथ ही मुलायम गठबंधन अपनी शर्तों पर चाहते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि ऐसा कोई भी गठबंधन समाजवादी पार्टी से ज्यादा कांग्रेस की मजबूरी है. उधर, कांग्रेस भी जानती है कि पिछले कुछ समय से उसे चुनावों में लगातार हार का सामना करना पड़ा है. अगर इस समय की बात करें तो कांग्रेस के पास एकमात्र बड़ा राज्य कर्नाटक ही हैं. उत्तराखंड में भी यूपी के साथ चुनाव होने हैं जबकि हिमाचल में इस साल के अंत में चुनाव होंगे. ऐसे में वो बिहार की तरह बीजेपी के खिलाफ किसी गठबंधन में शामिल होना चाहती है ताकि किसी तरह सत्ता में उसकी भागीदारी सुनिश्चित हो सके. राहुल गांधी भी यूपी की अपनी रैलियों में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की बजाय मोदी सरकार और बीजेपी को निशाने पर ले रहे हैं. ये 2012 के उनके चुनाव प्रचार के बिल्कुल उलट है जब वे अपनी हर सभा में सत्तारूढ़ बीएसपी पर हमला बोलते हुए 'हाथी नोट खाता है' वाली बात दोहराते थे. तब अखिलेश यादव भी राहुल का मजाक उड़ाते नजर आते थे. राहुल के भरी सभा में बहुचर्चित लिस्ट फाड़ने वाली घटना के बाद उन्होंने चुटकी ली थी कि राहुल जोश में कहीं मंच से न कूद जाएं. उसके मुकाबले इस बार अखिलेश यादव और राहुल गांधी एक-दूसरे को अच्छा लड़का करार देते हैं.
कांग्रेस की मजबूरी है, गठबंधन जरूरी है
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक कांग्रेस अखिलेश की साफ छवि और विकास के उनके एजेंडे पर दांव खेलना चाहती है. वो खुद को समाजवादी पार्टी की बजाय अखिलेश यादव की सहयोगी बनकर खड़ी दिखना चाहती है ताकि उनकी इमेज का फायदा उठाया जा सके. यूपी में कांग्रेस ने पिछले दो विधानसभा चुनावों में क्रमशः 22 और 28 सीटें हासिल कीं. लोकसभा चुनाव में तो सोनिया-राहुल के अलावा पार्टी का कोई प्रत्याशी नहीं जीत सका. ऐसे में इस बार वो मौका नहीं खोना चाहती. अखिलेश यादव सरकार के खिलाफ प्रदेश में कोई बड़ा एंटी इंकमबैंसी फैक्टर नजर नहीं आ रहा. ऐसे में अगर पार्टी सपा के साथ गठबंधन करती भी है तो वो उसके लिए सिद्धांतों के साथ समझौते जैसे स्थिति नहीं कही जाएगी. उधर अखिलेश भी सपा में जिस तरह अंदरूनी घमासान से जूझ रहे हैं उन्हें कांग्रेस का बाहर से मिल रहा समर्थन थोड़ी मजबूती देता है. ऐसे में कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि मुलायम की इस लिस्ट में संशोधन हों और विधानसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस एक ही मंच पर नजर आएं.