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फैज की नज्म पर मुनव्वर राना बोले, इंशा अल्लाह-माशा अल्लाह कोई गाली नहीं

पाकिस्तानी शायर फैज अहमद फैज की नज्म हम देखेंगे लाजिम है कि हम भी देखेंगे पर मचे हंगामे के बीच मशहूर शायर मुनव्वर राना ने कहा कि इंशा अल्लाह-माशा अल्लाह कोई गाली नहीं है.

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मशहूर शायर मुनव्वर राना
मशहूर शायर मुनव्वर राना

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  • मशहूर शायर मुनव्वर राना ने आजतक से की खास बातचीत
  • अपनी शायरी के जरिए फैज के नज्म पर रखी आप बात

पाकिस्तानी शायर फैज अहमद फैज की नज्म 'हम देखेंगे लाजिम है कि हम भी देखेंगे' पर मचे हंगामे के बीच मशहूर शायर मुनव्वर राना ने कहा कि इंशा अल्लाह-माशा अल्लाह कोई गाली नहीं है. आजतक से बात करते हुए मुनव्वर राना ने कहा 'रहे नाम अल्लाह का एक मुहावरा है. इसे कोई भी कह सकता है. इसे आजकल नई जुबान में जुमला कहते हैं, हमारे प्रधानमंत्री भी.'

उन्होंने कहा कि जैसे आप राम नाम सत्य हैं कहते हैं, लेकिन अफसोस है कि ये मरने पर कहते हैं. राम नाम का मतलब है कि राम ही सत्य हैं. बाकी देवी-देवताओं के नाम का कोई मतलब नहीं है. उन्होंने तीखे अंदाज में कहा कि बुध का मतलब है चुप. वो हुक्मते  जो एक दम चुप रहें, कुछ ना बोलें. मॉब लिंचिंग देखे और हर तरह का जुर्म देखकर भी चुप रहे. गरीबी, महंगाई और कत्लेआम पर ना बोलें, उन्हें बुध कहा जाता है. उन्होंने कहा कि खुदा, भगवान, गॉड हम बनाए हैं और हम उन्हें बेच रहे हैं.

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मुनव्वर राना ने अपनी एक शायरी के जरिए भी फैज के नज्म पर अपनी बात रखी.

किसी का कद बढ़ा देना किसी के कद को कम कहना

हमें आता नहीं ना-मोहतरम को मोहतरम कहना

चलो मिलते हैं मिल-जुल कर वतन पर जान देते हैं

बहुत आसान है कमरे में बन्देमातरम कहना

बहुत मुमकिन है हाले-दिल वो मुझसे पूछ ही बैठे

मैं मुंह से कुछ नहीं बोलूंगा तू ही चश्मे-नम कहना

बता दें कि फैज की कविता का नागरिकता संशोधन एक्ट (CAA) के खिलाफ जारी प्रदर्शनों में इस्तेमाल हो रहा है. इस बीच आईआईटी कानपुर ने एक जांच कमेटी बनाई है. ये कमेटी इस बात को जांचेगी कि क्या फैज की ये नज्म हिंदू विरोधी है या नहीं? ये जांच नज्म की ‘बस नाम रहेगा अल्लाह का...’ की पंक्ति की वजह से हो रही है. जानें कि फैज ने ये कविता क्यों लिखी थी...

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