दारल उलूम देवबंद ने फतवा जारी किया है कि मुस्लिम महिलाओं को न्यायाधीश नहीं बनना चाहिए क्योंकि इस्लाम में इसकी मनाही है. दारल उलूम देवबंद ने इस मुद्दे पर एक सवाल आने के बाद अपनी वेबसाइट पर यह फतवा जारी किया है.
दारल उलूम देवबंद के इस नये फतवे पर विभिन्न हलकों से तीखी प्रतिक्रियाएं आई हैं. वकील और महिला मामलों पर सक्रिय मुमताज़ अख्तर ने कहा कि किसी की योग्यता उसकी शिक्षा से आंकी जानी चाहिए न कि उसके लिंग के आधार पर, यह पक्षपात है.
मुमताज़ ने कहा कि ऐसे फतवे जारी करने से पहले समुदाय की भलाई की बात ध्यान में रखी जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि एक महिला दूसरी महिला की दशा बेहतर तरीके से समझती है. ऐसे फतवे उन तमाम मुस्लिम महिलाओं का अपमान है जिन्होंने न्यायपालिका में काम किया है.
उल्लेखनीय है कि वर्ष 1989 में केरल की एम फातिमा बीवी भारत की ऐसी पहली महिला न्यायाधीश बनी थीं, जिन्हें उच्चतम न्यायालय में नियुक्त किया गया था. इसके बाद वर्ष 2006 में सीमा अली खान को पटना उच्च न्यायालय में स्थायी न्यायाधीश बनाया गया था.
उच्चतम न्यायालय में वकील कमलेश जैन के मुताबिक, ऐसे फतवे लोगों के दिमाग पर असर डालते हैं और उन मुस्लिम महिलाओं की राह में रोड़े अटकाते हैं जो इस पेशे को चुनना चाहती हैं.