जिस देश के सिस्टम की सोच में जवाबदेही ना हो, जिस देश के सिस्टम को नागरिकों की जान की परवाह ना हो. जिस देश का सिस्टम बड़े-बड़े हादसों के बाद भी खुद को बचाने में कामयाब हो जाए, उस ज़ीरो जवाबदेही वाले सिस्टम से न्यू इंडिया कैसे बनाया जा सकता है. क्योंकि पिछले 15 दिन में देश ने दो ऐसे हादसे देखे हैं, जिसे हादसा नहीं बल्कि हमारे सिस्टम का क्रूर अपराध ही कहा जा सकता है.
शनिवार को उत्कल ट्रेन हादसा इसका लेटेस्ट उदाहरण है, जहां टूटा रेलवे ट्रैक छोड़कर 100 किलोमीटर की स्पीड से ट्रेन दौड़ा दी गई और इस लापरवाही ने 22 लोगों की जान ले ली. 150 से ज़्यादा लोगों की जान जाने से बची. सच ये तो है कि हम पर रहम थी कि मौत का आंकड़ा 22 ही रहा. नहीं तो हमारे सिस्टम ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी, जिन्हें लोगों की जान की परवाह नहीं है. ऐसी अफसरशाही अपराधी है. लेकिन अफसोस ये है कि जिम्मेदारी और जवाबदेही तय नहीं होती. वहीं गोरखपुर में सिस्टम की लापरवाही की वजह से हफ्तेभर में 60 से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई और फिर जांच के नाम पर कमेटी बना दी गई.
उत्कल रेल हादसे मे 8 अफसरों पर एक्शन तो लिया गया है. लेकिन सस्पेंड, ट्रांसफर और लीव पर भेजने से ही बात नहीं बनेगी, क्योंकि ऐसे लोग फिर सिस्टम में आ जाएंगे. इनका कोई कुछ बिगाड़ नहीं पाता है. सब चलता है, से अगर सब बदलता है, कि सोच लानी है तो ऐसे अपराधी सिस्टम को सज़ा देना ज़रूरी है, नहीं तो हर नारा हर स्लोगन खोखला साबित होगा, जैसा कि अब तक होता चला आया है.
न्यू इंडिया का स्लोगन सुनने में अच्छा लगता है. सब चलता है से सब बदल सकता है की सोच ज़रूरी भी है. लेकिन क्या न्यू इंडिया तब तक बनाया जा सकता है. जब तक उस सिस्टम को ज़ीरो जवाबदेही वाली आदत लगी है, जिसके लिए देश के नागरिकों की जान की कोई कीमत नहीं. कोई सम्मान नहीं है. ये गोरखपुर में बच्चों की मौत से लेकर मुज़फ्फरनगर में ट्रेन हादसे तक सब देख रहे हैं.
खतौली में ट्रेन एक्सीडेंट
ओडिशा के पुरी से हरिद्वार जा रही उत्कल एक्सप्रेस का हादसा ना होता. अगर इस सिस्टम को लोगों की जान की ज़रा-सी भी परवाह होती. 22 लोगों की जान चली गई, 156 लोगों की जान जाते-जाते बची.
टूटी पटरी पर 100 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड से ट्रेन दौड़ रही थी
- रेलवे ट्रैक पर मरम्मत का काम चल रहा था, अधिकारी आंख मूंद कर बैठे थे.
- पटरी काटने के बाद वेल्डिंग किए बगैर कर्मचारी अधिकारी गायब हो गए.
- स्टेशन मास्टर को पता नहीं था कि 700 मीटर आगे ट्रैक खुला पड़ा है.
- प्लेटफॉर्म पर रेल कर्मचारी हरी झंडी लेकर खड़े रहे, और फुल स्पीड में ट्रेन निकल गई.
- आगे हादसा तैयार था, 23 डिब्बों में 13 डिब्बे डिरेल हुए, 6 डिब्बों की बुरी हालत थी. 1 डिब्बा तो पास के घर में जाकर घुस गया.
ये तो रहम थी कि 22 लोग ही शिकार हुए, वरना सिस्टम ने इससे भी ज़्यादा का आंकड़ा बनाने में कमी क्या छोड़ी थी. लोगों को बचाने का काम तो होता रहा. लेकिन खुद को बचाने का काम रेलवे ने पहले ही शुरू कर दिया. जब ट्रैक पर काम की बात ही नहीं मान रहे थे, बिना जवाबदेही सबको बचाने की कोशिश की तो गई. लेकिन हर बार यही होता रहेगा. मौत का मज़ाक बना देने वाले सिस्टम की इस आदत पर चोट की शुरुआत होनी चाहिए.
- उत्कल ट्रेन हादसे में रेलवे ने प्राथमिक जांच के बाद 8 अधिकारियों पर एक्शन लिया है.
- पहली बार ऐसे हादसे पर सेक्रेटरी लेवल के रेलवे बोर्ड अधिकारी को सस्पेंड किया गया.
- ऐसे तीन टॉप लेवल के अधिकारियों को छुट्टी पर भेज दिया गया.
- जिसमें रेलवे बोर्ड के मेंबर इंजीनियर, उत्तर रेलवे के जनरल मैनेजर, डिविज़नल मैनेजर शामिल है.
- इसके अलावा असिस्टेंट इंजीनियर मेरठ, सेक्शन इंजीनियर मुजफ्फरनगर, जूनियर इंजीनियर खतौली को सस्पेंड किया गया.
- चीफ ट्रैक इंजीनियर को ट्रांसफर कर दिया गया है.
सिस्टम की जवाबदेही ऐसे कड़े एक्शन से ही तय होगी, और अगर ये जवाबदेही तय नहीं होती तो फिर चाहे सरकारें बदल जाएं. कोई भी आ जाए. ऐसी लापरवाहियां नहीं रुकेंगी. ऐसे हादसे नहीं रुकेंगे और ऐसी गैर जवाबदेही वाली सोच से कम से कम न्यू इंडिया तो कभी नहीं बनेगा.
ये बात ज़रूर है कि जितना बड़ा रेल सिस्टम है, उस हिसाब से हमारे यहां हादसे फिर भी अंतर्राष्ट्रीय ट्रैक रिकॉर्ड के हिसाब से कुछ ही ज़्यादा हैं. लेकिन बात मिशन ज़ीरो एक्सीडेंट की है. ऐसा सिस्टम बनाने की है जहां एक भी हादसा ना हो, ऐसा सिस्टम बनाने की है, जहां हादसे के जिम्मेदार बच ना सकें. राजनैतिक आलोचना से बचने के लिए अपनी कमियों पर जब तक परदा डालने की कोशिश होती रहेगी. जिम्मेदार लोग हादसों के बाद भी बचे रहेंगे. तब तक सिस्टम ठीक करना बहुत मुश्किल है. यही वजह है कि हमें रेल हादसों की आदत-सी हो गई है.
- पिछले 5 साल में 586 रेल हादसे हो चुके हैं, जिसमें 53 फीसदी हादसे डिरेल होने से हुए.
- डिरेलमेंट की वजह से नवंबर 2014 के बाद से छोटे-बड़े करीब 20 ट्रेन हादसे हो चुके हैं.
- रेल मंत्रालय ने ये दावा किया है कि पिछले 3 साल में ट्रेन एक्सीडेंट में कमी आई है.
- 2014-15 में 135 हादसे हुए, जो 2015-16 में 107 और 2016-17 में 104 रह गए.
- रेल मंत्रालय का दावा है कि यूपीए-1 के तीन साल में 759, यूपीए-2 के तीन साल में 938 और मोदी सरकार के तीन साल में 652 हादसे हुए हैं.
- मंत्रालय का दावा है कि ट्रैक सुधारने से लेकर डिटेक्शन सिस्टम बनाने और टक्कररोधी कोच लगाने तक के सुरक्षा उपाय किए जा रहे हैं.
- पिछले साल के बजट में मिशन ज़ीरो एक्सीडेंट का ज़िक्र था जिसमें दो पहलू पर काम किया जा रहा है, जिसमें 2020 तक unmanned level crossings को पूरी तरह से हटाना और टक्कर-डिरेलमेंट से बचाना का सिस्टम तैयार करना फोकस है.
- अगले पांच साल में सेफ्टी फीचर से लैस 40 हज़ार Linke Hofmann Busch कोच से रेलवे को लैस करने की बात है.
जैसा कि गोरखपुर में बच्चों की मौत पर हुआ, जहां सिर्फ़ अस्पताल स्तर पर ही एक्शन लिया गया. जैसा कि उत्कल ट्रेन हादसे में शुरुआत में हादसे की वजह पर परदा डालने की नाकाम कोशिश की गई. सिस्टम को जवाबदेह तब ही बनाया जा सकता है. जब लापरवाही और अनदेखी से होने वाले नागरिकों के साथ सिस्टम के अपराध को छुपाया ना जाए. खुद को आलोचना से बचाने के लिए जिम्मेदार लोगों को बचाया ना जाए.