मेरा नाम उत्कर्ष कुमार सिंह है. मैं बनारस के पास गाजीपुर का रहने वाला हूं. इसी वर्ष मेरा चयन पत्रकारिता के क्षेत्र में देश के सबसे बड़े शिक्षण संस्थान 'भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली में हुआ है. मैं हमेशा से ही होनहार स्टूडेंट रहा हूं. पढाई के साथ ही दूसरे सभी क्षेत्रों में हमेशा अव्वल रहा.
ये बात उस समय की है जब मेरी प्रतिभा को देखते हुए मेरे पिताजी ने हाईस्कूल के बाद आगे की पढाई के लिए बनारस के अच्छे स्कूल में भेज दिया. मैंने बाहर जाने के बाद मिली स्वंत्रता का भरपूर दुरुपयोग किया.विसंगति के कारण पढ़ाई-लिखाई से कोसों दूर हो गया, नतीजतन 12वीं में मैं फेल हुआ. खैर उसके बाद भी एक साल तक झूठ का सहारा लेते हुए दिल्ली और लखनऊ घूमता रहा.
अंत में मेरे पिताजी को यह बात पता चली और थोड़ी बहुत डांट-फटकार के बाद किसी तरह से N.I.O.S. के द्वारा 12वीं पास किया. चूंकि उसके भी नतीजे नवंबर में आते हैं, फलस्वरूप 1 साल और बर्बाद हुआ.
अब बारी आई ग्रेजुएट में दाखिले की और विषय चुनाव की. 12वीं में मैंने पढ़ाई ही नहीं की थी इसलिए मेरे लिए ग्रेजुएट का विषय चुनना बहुत ही कठिन कार्य था. बहरहाल मैंने अपने पिताजी के पदचिन्हों पर आगे बढ़ने की सोची. एक पत्रकार 'jack of all,master of none' होता है और मेरे भी लक्षण कुछ ऐसे ही थे,इसलिए मैंने पत्रकारिता को चुना. किस्मत ने भी साथ दिया और 'महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ',वाराणसी में 12वीं की मेरिट के आधार पर बीए (ऑनर्स) मासकॉम में दाखिला मिल गया.
मैंने ग्रेजुएट की पढाई पूरी की है लेकिन आज जब भी मैं अपने अतीत के बारे में सोचता हूं तो एक ही चीज समझ में आती है. कि पेरेंट्स का सपोर्टिव होना कितना जरूरी होता है. आज अगर मैंने खुद को उस दलदल से निकाल कर इतनी बड़ी जगह लाने में सफल हुआ हूं तो उसमे मेरे पिताजी का योगदान काफी अहम है. उन्होंने हर स्थिति में मेरा साथ दिया और हमेशा अच्छा करने के लिए प्रेरित किया. आज भी मेरे पिताजी और कुछ चुनिंदा दोस्तों को छोड़ कर शायद ही किसी को पता हो कि मैं इंटरमीडिएट में फेल हुआ था.
यह कहानी है उत्कर्ष सिंह की. उन्होंने पढ़ाई से जुड़ा अपना अनुभव हमारे साथ साझा किया है. आप भी हमारे साथ अपने अनुभव aajtak.education@gmail.com पर भेज सकते हैं, जिन्हें हम अपनी वेबसाइट www.aajtak.in/education पर साझा करेंगे.