हर अच्छी पहल उम्मीदें बढ़ा देती है. नागालैंड समझौता भी इस हिसाब से खास हो गया है. यही वजह है कि जम्मू कश्मीर में भी ऐसी ही पहल की उम्मीद की जाने लगी है. बात चली है नॉर्थ-ईस्ट से और पहुंच गई है कश्मीर की वादियों तक.
कश्मीर में क्यों नहीं
जम्मू कश्मीर की सत्ता में बीजेपी की साझेदार पीडीपी के प्रवक्ता डॉ. महबूब बेग कश्मीर समस्या को भी नागालैंड जितनी ही पुरानी बताते हैं - और कहते हैं उसी तर्ज पर इसका भी हल निकाला जा सकता है. लगे हाथ बेग सलाह भी देते हैं कि समस्या को हल करने के लिए कश्मीरियों की भावनाओं का सम्मान करते हुए केंद्र को चाहिए कि वो सभी पक्षों को बातचीत की प्रक्रिया में शामिल करे. सभी पक्षों का मतलब हमेशा पाकिस्तान होता है. बेग का आशय भी उसी से है.
अगले ही पल बेग राय देते हैं कि आगरा वार्ता के दौरान चर्चा में आए मुशर्रफ के चार सूत्री फार्मूले को शुरुआती आधार मानकर इस दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है. बेग जिस फॉर्मूले की बात कर रहे हैं उसमें सीमा पर तैनात भारत और पाकिस्तान के सैनिकों को हटाया जाना, नियंत्रण रेखा पर यथा स्थिति बनाए रखना, स्थानीय सरकारें और हरेक चीज पर निगरानी के लिए भारत, पाकिस्तान और कश्मीरियों की एक संयुक्त समिति बनाना शामिल है.
विधान सभा चुनावों के बाद बीजेपी और पीडीपी को सत्ता की दहलीज छूने में वक्त तो लगा लेकिन वे पहुंचने में कामयाब जरूर रहे. विपरीत राहों के मुसाफिर इन दोनों पार्टियों के बीच समझौता ऐतिहासिक रहा.
मसले अपनी जगह हैं, लेकिन सरकार चल रही है. मौजूदा हालात में ये भी कम नहीं माना जा सकता. तब भी और अब भी.
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